कॉमरेड लाल का संघर्ष पृथ्वी को बचाने का संघर्ष था : बादल सरोज

धमतरी। लालच और असीमित मुनाफे की हवस ने पूरी दुनिया को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। यदि दुनिया को बचाना है, तो आम जनता के शोषण पर टिकी पूंजी की ताकत से लड़ना होगा। असंगठित मजदूरों को संगठित करते हुए, उनके संघर्षों को आगे बढ़ाते हुए कॉमरेड लाल इस पृथ्वी को बचाने के संघर्ष में ही लगे थे।

उक्त विचार अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज ने माकपा नेता अजीत लाल की स्मृति में आयोजित एक स्मरण सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि कॉमरेड लाल उनके गुरु थे और मध्यप्रदेश के जमाने में जब असंगठित मजदूरों के बीच में सीटू ने काम करने का फैसला किया था, तो उन्होंने देखते ही देखते बीड़ी, मण्डी, हमालों व अन्य असंगठित मजदूरों की 18 यूनियनें खड़ी कर दीं थीं। इनमे भी हरेक के नेता उन्ही उद्योगों, उद्यमो के मजदूर थे, लाल साहब नहीं।

यूनियनें भी ऐसी कि इनमें से सात ने खुद के पैसे से अपने दफ्तर बना लिये थे। उन्होंने कहा कि उनसे जाना कि भाषणवीर होना किसी काम का नही है। हर काम की अपनी विधा है, क्रिया है, कानून हैं। इन्हें समझना, याद करना, आत्मसात करना होता है। बात मनवाने के लिए आवाज की तेज हुंकार से कहीं ज्यादा निर्णायक होते हैं तर्क और तथ्य। मजदूर को समझाने के लिए भी और निगोशिएशन की टेबल पर बात मनवाने के लिए भी। इनकी तैयारी करनी होगी। उन्हीं से जाना कि सार्वजनिक जीवन, विशेषकर मजदूर आंदोलन में विनम्र और भाषा संयमी होना कितना अनिवार्य है।

उल्लेखनीय है कि अजीत कुमार लाल माकपा के वरिष्ठ नेता और राज्य सचिवमंडल के सदस्य थे, जिनका निधन एक लंबी बीमारी के बाद पिछले वर्ष 6 जुलाई को हो गया था, लेकिन कोरोना संकट के चलते पार्टी कोई श्रद्धांजलि सभा नहीं कर पाई थी। पार्टी द्वारा आयोजित कल की स्मरण सभा में माकपा राज्य सचिव संजय पराते, सीटू के राज्य महासचिव एम के नंदी, सीपीआई के सत्यवान यादव, सपा के सादिक अली हुसैन, सीटू जिला अध्यक्ष मणिराम देवांगन, आर पीटर, अमरचंद जैन, महेश शांडिल्य, सीटू यूनियनों से जुड़े स्थानीय नेताओं और दिवंगत अजीत लाल के परिवारजनों के अलावा अनेकों लोग शामिल थे। इस स्मरण सभा का संचालन माकपा जिला सचिव समीर कुरैशी ने किया।

सभा को संबोधित करते हुए माकपा नेता संजय पराते ने कहा कि कॉमरेड लाल उन बिरले नेताओं में से एक थे, जिन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े नेता बनने का मोह त्यागकर समय की धारा के खिलाफ चलते हुए असंगठित क्षेत्र के मजदूर आंदोलन का निर्माण करने का बीड़ा उठाया। वे हंसमुख थे और सहज तर्कशीलता के धनी, जिसके कारण विरोधी विचारधारा के नेता भी उनका आदर करते थे। उन्होंने मार्क्सवादी विचारों को आत्मसात किया और अपने व्यवहार में उतारा। मजदूरों से उनकी समझदारी के स्तर पर उतरकर बात करने में उन्हें महारत हासिल थी।

सीटू नेता एम के नंदी ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए धमतरी में दो साल तक चले चावल मील मजदूरों के आंदोलन को याद किया। उन्होंने कहा कि बीड़ी मजदूरों के बीच तब जारी जोड़ी प्रथा में अंतर्निहित शोषण के तथ्य को उन्होंने उजागर किया और इसे अवैध घोषित करने के लिए तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार को बाध्य किया। स्वप्निल लाल और अन्य वक्ताओं ने भी उन्हें याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर एक कैलेंडर का भी विमोचन किया गया।

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