कोरबा : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, छत्तीसगढ़ किसान सभा और सीटू के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासी, किसान, मजदूर और अन्य नागरिक 4 जनवरी को प्रदर्शन करेंगे और वनाधिकार, बिजली, बालको के मुद्दे सहित अन्य जनसमस्याओं पर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा के कोरबा जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा है कि वनाधिकार के सवाल पर जिले में केवल बतकही की जा रही है और असल में वर्षों से वनभूमि पर काबिज आदिवासी व गैर-आदिवासी पात्र लोगों को वन भूमि से जबरन बेदखल किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि ताज़ा मामला जिले के कटघोरा विकासखण्ड के ग्राम उड़ता का है, जहां वनाधिकार का पट्टा प्राप्त आदिवासियों को भी वन विभाग ने जबरन बेदखल करके उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया है। यह गैर-कानूनी हरकत भी उस समय की गई है, जब पूरे देश में लॉक डाउन था और आम जनता अपने जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रही थी। माकपा नेता ने कहा कि वन भूमि से बेदखली के अपने स्वयं के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा रखा है, लेकिन कोरबा जिले में वन विभाग इसकी अवमानना कर रहा है और राज्य सरकार का अपने अधिकारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है।
झा ने कहा कि कोरबा निगम क्षेत्र के अंतर्गत वन भूमि पर हजारों परिवार पीढ़ियों से बसे हैं, लेकिन उन्हें वनाधिकार देने की अभी तक कोई प्रक्रिया भी शुरू नहीं की गई है, जबकि वनाधिकार कानून में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में शामिल वन भूमि में कोई अंतर नहीं किया गया है। इसी प्रकार जिले में हजारों आदिवासी परिवार हैं, जिनसे वनाधिकार के दावे नहीं लिए जा रहे हैं या बिना किसी पावती और छानबीन के रद्दी की टोकरी में डाल दिये गए हैं।
माकपा नेता ने कहा कि वामपंथ के दबाव में संप्रग सरकार के समय आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए यह कानून बनाया गया था। इसे लागू करने में रमन सिंह सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन कांग्रेस सरकार के बनने के दो साल बाद भी सरकार के दावों के खिलाफ प्रशासन यदि आदिवासियों को बेदखल कर रहा है, तो यह स्पष्ट है कि आदिवासियों के लिए कांग्रेस और भाजपा राज में कोई अंतर नहीं है।
झा ने कहा कि मुख्यमंत्री के आगमन पर 4 जनवरी को सैकड़ों लोग अपने आवेदन पत्र हाथों में लेकर वनाधिकार के सवाल पर प्रदर्शन करेंगे और मुख्यमंत्री को ज्ञापन देंगे।