तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सिंधु बार्डर पर जारी क्रमिक अनशन में छत्तीसगढ़ से अमरीक सिंह हुए शामिल

  • नेतृत्वकारी नेताओं गुरनाम सिंह चढूनी और बलदेव सिंह सिरसा के साथ बैठक कर की आंदोलन के बारे में चर्चा

काले कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली के विभिन्न सीमाओं में जारी किसान आंदोलन के समर्थन में छत्तीसगढ़ से दिल्ली पहुंचे किसानों का जत्था 11 जनवरी को लगातार दूसरे दिन सिंधु बार्डर पर डटे रहे। ज्ञात हो कि 7 जनवरी को रायपुर से रवाना हुए किसानों का जत्था दिल्ली के निकट पलवल बार्डर पर 8 जनवरी को देर रात पहुंचा जहां हरियाणा पुलिस द्वारा किसानों के काफिले को रोक लिया गया था। वहीं किसानों ने हाइवे पर ही 9 तारीख को रैली निकाल धरना प्रदर्शन किया था। किसानों ने अपने सूझ बूझ से सिंघु बार्डर की ओर रात में रवाना हुए जो रात 2 बजे सिंघु बार्डर पहुंचे जहाँ जारी धारना सभा में एकजुटता निभा रहे हैं।
21 किसानों द्वारा जारी क्रमिक भूखहड़ताल में छत्तीसगढ़ के साथी अमरीक सिंह अनशन में बैठकर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया है।

दूसरे दिन धरना सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के राज्य सचिव और छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संचालक मंडल सदस्य तेजराम विद्रोही ने कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार कॉरपोरेट परस्त तथा किसान , कृषि और आम उपभोक्ता विरोधी कानून को चीख चीख कर किसान हितैषी बताने का प्रयास कर रही है। जबकि किसान ही नहीं बल्कि आम उपभोक्ता भी समझ चुके हैं कि यह कानून चंद पूंजीपतियों के लिए असीमित मुनाफा बटोरने के लिए सुविधा तथा अमन पसंद व लोकतंत्र प्रेमी जनता, किसानों व आम उपभोक्ताओं के लिए कब्रगाह साबित होने वाला है। उन्होंने आगे कहा कि किसानों ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप फसल का डेढ़ गुणा न्यूनतम समर्थन कीमत घोषित करने और मंडी व्यवस्था की खामियों को दूर कर बारहों माह सभी कृषि उपजो की समर्थन मूल्य में खरीदी चाहते थे। लेकिन मोदी ने व्यवस्थागत खामियों को दूर करने के बजाय पूरी व्यवस्था ही कॉरपोरेट घरानों को बेचने का कानून ला दिया है।

दलबीर सिंह ने कहा कि अच्छे दिन का वायदा कर सत्ता में आये मोदी नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह अचानक, नोटबन्दी लागू कर किसानों, मजदूरों, ट्रांसपोर्टरों और छोटे व्यवसायियों का रोजी रोजगार छीनकर आर्थिक संकट पैदा किया ठीक वैसे ही कोरोना काल मे अघोषित लॉक डाउन लगाकर इसके आड़ में देश की सार्वजनिक संपत्ति को पूंजीपतियों को बेचने के साथ साथ कृषि क्षेत्र को भी बेचकर देश की जनता के सामने आर्थिक व खाद्यान्न संकट पैदा करने का रास्ता तैयार किया है।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नवाब जिलानी ने अपने संबोधन में कहा कि भाजपा – आरएसएस की सरकार ने जिस तरह श्रम कानूनों में बदलाव कर मजदूरों से उनका संगठित होने का अधिकार छीन लिया है ठीक उसी प्रकार ठेका खेती और मुक्त बाजार के जरिये किसानों का खेत और खेती छीनना चाहते हैं तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर खाद्यान्नों की कालाबाजारी को वैधानिक मान्यता दिया है अर्थात चोरों के लिए लूट का रास्ता साफ कर दिया है।

सभा पूर्व छत्तीसगढ़ के किसान प्रतिनिधियों तथा सिंधु बार्डर पर नेतृत्वकारी किसान नेताओं गुरनाम सिंह चढूनी और बलदेव सिंह सिरसा के साथ आंदोलन के बारे में व्यापक चर्चा हुई है।

जिसमें किसानों के जत्थे का नेतृत्व कर रहे तेजराम विद्रोही, दलबीर सिंह, गजेंद्र कोसले, नवाब गिलानी, ज्ञानी बलजिंदर सिंह, अमरीक सिंह, सुखविन्दर सिंह सिद्धू, दलबीर सिंह, सुखदेव सिंह सिद्धू आदि शामिल रहे।

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