नई दिल्ली : आजाद भारत में पहली बार फांसी की सजा पाने वाली महिला शबनम के डेथ वारंट अभी तक नहीं आया है, वह भी आ सकता है. शबनम के साथ उसके प्रेमी सलीम को भी फांसी की सुनाई गयी है. अब सवाल यह आ रहा है कि इनके बाद इनके बेटे का क्या होगा. क्योंकि शबनम के बेटे ने ताज ने राष्ट्रपति से अपनी मां की फांसी की सजा को माफ करने के लिए कहा है.
गौरतलब है कि शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर साल 2008 में अपने ही परिवार के सात लोगों की टांगी से काटकर बेरहमी से हत्या कर दी थी. जिसमें उसका 10 माह का भतीजा भी शामिल था.
जानकारी के अनुसार अमरोहा की रहनेवाली शबनम को मथुरा जेल में फांसी की सजा दी जायेगी. पर शबनम के बेटे ने अपने मां को माफ करने की गुहार लगाई है. उसने कहा कि राष्ट्रपति अंकल मेरी मां को माफ कर दो. ताज का 13 दिसंबर 2008 को हुआ था. शबनम का बेटा ताज बुलंदशहर के सुशील विहार कॉलोनी में रहने वाले उस्मान सैफी के पास रहता है.
बता दे की कुछ दिन पहले ही उस्मान सैफी ताज को जेल में बंद उसकी उसकी मां शबनम से मिलाने के लिए उसे रामपुर जेल ले गये थे. उस्मान सैफी के मुताबिक जब शबनम ने अपने बेटे को देखा तो वो फफक कर रोने लगी और काफी देर तक अपने बेटे ताज से लिपटी रही. साथ ही वह अपने बेटे को बार बार चुम रही थी. शबनम बार बार अपने बेटे से कह रही थी कि पढ़ लिख कर अच्छा इंसान बनना, मैं बुरी मां हूं मुझे कभी याद मत करना.
रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 21 फरवरी को शबनम से उसके बेटे ताज और उसके संरक्षक उस्मान से मुलाकात की थी. मुलाकात के दौरान शबनम ने बेटे को टॉफी और कुछ रुपये भी दिए. शबनम के बेटे को गोद लेने वाले उस्मान सैफी ने कहा कि ताज को गोद लेने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी, इसके लिए जेल में उन्होंने शबनम से 24 बार मुलाकात की थी. शबनम और उस्मान सैफी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. शबनम उस्मान से दो साल सीनियर थी. उस्मान को काफी कोशिशों के बाद बच्चे ताज की परवरिश की जिम्मेदारी मिल पाई.
मिडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शबनम और सलीम के केस में 100 तारीखों तक बहस हुई थी. इसमें 29 गवाहों ने शबनम सलीम के खिलाफ गवाह दिया है. इस मामले की सुनवाई 27 महीनों तक चली थी. इसके बाद 14 जुलाई 2010 शबनम और सलीम दोषी करार दिए गए . 15 जुलाई 2010 को दोनों को सुनाई फांसी की सजा गई. इस केस में गवाहों से 649 सवाल किये गये थे. 160 पेज में सजा सुनाई गयी है. शबनम सलीम के केस की सुनवाई तीन जिला जजों के कार्यकाल में पूरी हुई. कहा जाता है कि जिला जज एसएए हुसैनी ने 29 सेंकेड में फांसी की सजा सुनाई थी.