नई दिल्ली .: कारोना महामारी से जब देश भर में लाखों लोग जिंदगी ओर मौत के बीच एक-एक सांस के लिये संघर्ष कर रहे हैं तो उनकी सेवा और हौसला बढ़ाने का काम नर्सें कर रही हैं। अपने समर्पण और सेवा भाव से हमारी नर्सों ने लाखों की सेवा और उनका हौसला बढ़ाकर कोरोना से जंग जीतने में मदद की है। इस काम को करते-करते कई नर्सों ने कोरोना से अपनी जान गंवा दी है। पर संक्रमण के खतरे के बावजूद फलोरेंस नाइटिंगेल की मरीजों की सेवा की परंपरा को उसी शिद्दत और जज्बे से निभा रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर आज हम ऐसी ही कुछ नर्सों की प्रेरणादायक कहानियां बताएंगे जिनकी सेवा भी एक मिसाल है। पीपीई किट, दास्ताने और मास्क पहनकर कोरोना काल में कठिन ड्यूटी करती हैं और हमेशा संक्रमण के खतरे के साए में रहती हैंं।
यूपी के सोनभद्र जिले के दुद्घी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के बघाड्रू-अमवार केन्द्र की एएनएम रीता श्रीवास्तव कोरोना मरीजों की सेवा करते-करते कोरोना संक्रमित होकर ही चल बसीं। सीएचसी में वार्ड ब्वाय के पद पर कार्यरत उनके पति राजेन्द्र श्रीवास्तव बताते हैं कि उनकी पत्नी के लिये ड्यूटी उनका फर्ज थी जिससे उन्होंने कभी मुंह नहीं मोड़ा। कोरोना काल में वह ड्यूटी छोड़ना नहीं चाहती थीं। बल्कि उनकी सोच थी कि महामारी में अगर हम भी भाग खड़े होंगे तो मरीजों की जान कौन बचाएगा। अमवार पीएचसी वह लोगों कोरोना कवच देने के साथ ही उन्हें इसके प्रति जागरूक भी करती थीं। युवा छोटे भाई अधिवक्ता राम प्रकाश सिन्हा के निधन से सदमा लगा पर इससे खुद को संभालकर वह फिर मरीजों की सेवा में जुट गईं। बीते 24 अप्रैल को वह कोरोना पाॅजिटिव पाई गईं। होम आईसोलेशन में इलाज के दौरान सांस लेने में तकलीफ के बाद अस्पताल में आॅक्सीजन पर रखा गया। फिर वह लोढ़ी कोविड अस्पताल में भर्ती करायी गयीं जहां सात मई को कोराना के चलते उनका निधन हो गया।
ऐसी कई नर्सें और महिला चिकित्साकर्मी भी सामने आयीं हैं जिन्होंने गर्भवती होने के बावजूद कोरोना में ड्यूटी कर बता दिया कि वह कर्तव्य का निर्वहन उनके लिये अहम है। कानपुर के देहात के रसूलाबाद सीएचसी पर कार्यरत नर्स विनीता दो माह की गर्भवती होने के बावजूद ड्यूटी करती रहीं और संक्रमित भी हुईं। पर फर्ज निभाने का ऐसा जुनून की 12 दिन में ठीक होकर फिर ड्यूटी पर लौट आयीं। बीते साल 22 हुलाई को संक्रमित हुई थीं। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और नबीपुर कोविड अस्पताल में भर्ती हो गईं। गर्भवती होने के चलते दवाएं और काढ़ा लेने में परेशानी हुई, पर मजबूत हौसले और अपनों की प्रार्थना ने उन्हें फिर से स्वस्थ कर दिया। ठीक होकर वह फिर काम पर लौट आईं। इसी साल फरवरी में उन्हें चांद जैसा बेटा हुआ है। वह मातृत्व अवकाश से लौटकर जल्द ही फिर मरीजों की सेवा करना चाहती हैं।
बरेली के 300 बेड वाले कोविड अस्पताल की संविदा पर तैनात नर्स रीता सचान को तो उनके पति ने गर्भवस्था का हवाला देते हुए उन्हें कोरोना वार्ड से छुट्टी लेने को कहा। पर वह इसके लिये तैयार नहीं हुईं और गर्भवती होने के बावजूद कोविड वार्ड में ड्यूटी करती रहीं। तीन मई को वह भी कोरोना संक्रमित हो गईं। पर होम आइसोलेशन में भी अपना नंबर जारी कर वह लोगों को इलाज और बचाव के तरीके बताती रहीं। रीता का मानना है कि कोरोना संक्रमितों को दवा के साथ ही उनका मनोबल बढ़ाने और मानसिक तौर पर मजबूत रखना बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य कर्मी और डाॅक्टरों से बेहतर यह कौन कर सकता है। वह संक्रमा केा हराकर जल्द ही दोबारा अस्पताल पहुंचेंगी।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने सेवा और की जो मशाल रोशन की उसे मरीजों की सेवा से जुड़ीं नर्सों ने आज भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी जला रखा है। मिर्जापुर जिले की कंचन जायसवाल का नाम भी उन्हीं में से एक है। वाराणसी के जिला महिला चिकित्सालय में उनकी तैनाती 1956 में स्टाफ नर्स के रूप में हुई थी। अब वह सहायक नर्सिंग अधीक्षिका हैं और कोविड वार्ड का सुपरविजन करती हैं। संक्रमण के खतरे के बीच कर्तव्य का निर्वहन बखूबी कर रही हैं। घर जाने के बाद वह खुद को बिल्कुल अलग-थलग कर देती हैं। सेनेटाइज करने के बाद ही घरवालों से बीतचीत करती हैं। दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल में कार्यरत पाण्डेयपुर के गायत्री नगर कालोनी निासी नर्स मंजू चौरसिया भी संक्रमितों के बीच रहकर उनकी सेवा में लगी हैं। वह घर जाने के बाद स्नान और खुद को सेनेटाइज करने के बाद ही कमरे में जाती हैं। वेा कहती हैं कि खतरा तो है और शुरू-शुरू में डर भी लगता था, पर अब यह जिंदगी का हिस्सा बन गया है।
वाराासी के बड़ागांव प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर कोविड 19 ड्रयूटी पर तैनात एएनएम दीपिका पाण्डेय का बेटा महज 14 माह का है, लेकिन उसे वह अपनी मां के पास छोड़कर फर्ज निभाने ड्यूटी पर आती हैं। दीपिका मूल रूप से आजमगढ़ की रहने वाली हैं और उनके पति कानपुर में प्राइवेट कंपनी में जाब करते हैं। दीपिका डेढ़ साल से घर नहीं गईं। कोविड ड्यूटी के दौरान परसीपुर रामेश्वर गांव के पास उनकी स्कूटी को बाइक ने टक्कर मार दी। हाथ पैर में चोट आई और एक महीने तक प्लास्टर लगा। ठीक होने के बाद वह फिर मरीजों की सेवा में जुट गईं। दीपिका रोजाना अपने बेटे को किराए के कमरे में रह रही मां के पास छोड़कर ड्यूटी करने आती हैं। वह अपने बच्चे का सिर्फ पांच घंटे का समय दे पाती हैं।