बाराबंकी: बाराबंकी प्रशासन ने शहर में एक सौ साल पुरानी मस्जिद को गिरा दिया है, और दावा किया है वो एक ‘अवैध’ निर्माण था, जबकि मुस्लिम संगठनों ने कहा है, कि ये कार्रवाई क़ानून के खिलाफ है, चूंकि वो मस्जिद उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड की संपत्ति थी.
सुन्नी वक़्फ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने, इस मामले में न्यायिक जांच की मांग की है.
वक्फ बोर्ड ने कहा कि ये कार्रवाई ‘अतिक्रमण-विरोधी अभियान के नाम पर सत्ता का दुरुपयोग’ थी, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसके लिए, ज़िम्मेवार अधिकारियों के निलंबन की मांग की है.
लेकिन प्रशासन ने मस्जिद गिराए जाने को उचित ठहराया है, और ज़िला मजिस्ट्रेट आदर्शा सिंह ने दावा किया है, कि 2 अप्रैल को इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने, इस सिलसिले में एक याचिका को ख़ारिज कर दिया था, और साबित कर दिया था, कि निर्माण अवैध था.
सफेद दीवारों और हरे दरवाज़ों से बनी ये एक मंज़िली इमारत, लंबे समय से एक मस्जिद के रूप में, बाराबंकी के राम स्नेही घाट पर खड़ी थी, जो राज्य की राजधानी लखनऊ से 75 किलोमीटर दूर, बाराबंकी-अयोध्या मार्ग पर स्थित है. दिप्रिंट से बात करने वाले, ज़्यादातर स्थानीय निवासियों ने कहा, कि उन्होंने अपने ‘बचपन से’ मस्जिद को देखा था.
क़रीब 2,000 वर्ग फीट में फैले इस ढांचे, और इसके सामने बने एक कुंए को, सोमवार शाम को ध्वस्त कर दिया गया.
सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड ने भी, मस्जिद को बहाल किए जाने की मांग की, और कहा कि इस कार्रवाई के खिलाफ, वो अदालत का दरवाज़ा खटखटाएगा.
इस बीच विपक्षी समाजवादी पार्टी ने, एक नौ-सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जो बाराबंकी जाएगी और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को एक रिपोर्ट पेश करेगी. एक बयान में पार्टी ने कहा, कि अखिलेश ने मस्जिद गिराए जाने की निंदा की थी, और बीजेपी सरकार पर, यूपी की ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब को बिगाड़ने का आरोप लगाया था’.
‘वक्फ संपत्तियों को नहीं गिरा सकते’
मस्जिद की देखरेख करने वाली एक कमेटी के सदस्य, मोहम्मद अनीस ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये मस्जिद सुन्नी वक़्फ बोर्ड संपत्ति के तहत, 1968 में राम स्नेही घाट तहसील वाली मस्जिद के नाम पर पंजीकृत की गई थी. इसका रजिस्ट्रेशन नंबर 198 है. वक़्फ संपत्तियों को गिराया नहीं जा सकता, लेकिन सोमवार को ‘अतिक्रमण-विरोधी अभियान’ के नाम पर, उन्होंने मस्जिद को गिरा दिया.
उन्होंने आगे कहा: ‘उन्होंने पूरे परिसर की घेराबंदी कर दी और मस्जिद को गिरा दिया’.
अनीस ने कहा कि उनके परिवार के सदस्य, और इलाक़े के दूसरे लोग नमाज़ पढ़ने के लिए, नियमित रूप से मस्जिद में जाते थे.
दिप्रिंट से बात करते हुए, बाराबंकी निवासी और समाजवादी पार्टी नेता अदनान हुसैन ने भी कहा, कि ये मस्जिद सुन्नी वक़्फ बोर्ड प्रॉपर्टीज़ के तहत पंजीकृत थी.
‘ये गिराया जाना पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी है, ये सत्ता का दुरुपयोग है. ये मस्जिद सौ साल पुरानी थी, और हम सब वहां नमाज़ पढ़ने जाते थे. स्नेही घाट इलाक़े और यहां तक कि शहर (बाराबंकी) में भी, हर किसी ने बचपन से इस मस्जिद के बारे में सुना है’.
डीएम सिंह ने ये भी कहा था कि इस बारे में एक मामला, सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट दिव्यांशु पटेल की कोर्ट में दर्ज था, और 17 मई को इस कोर्ट के आदेशों की तामील की गई.
लेकिन, हुसैन का कहना था: ‘वक़्फ बोर्ड प्रॉपर्टी के मामलों की सुनवाई, पहले ट्रिब्युनल कोर्ट में होती है, मजिस्ट्रेट की कोर्ट में नहीं, लेकिन प्रशासन ने इसे ‘सरकारी संपत्ति पर अवैध निर्माण’ दिखाकर नोटिस भेज दिया. उन्होंने इसे मस्जिद नहीं कहा’.
कुछ स्थानीय लोगों का कहना था, कि ये घटनाक्रम सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट ऑफिस, और मस्जिद प्रशासन के बीच, एक ‘पुरानी खींचतान’ का नतीजा है.
एसडीएम ऑफिस उस प्लॉट के ठीक सामने स्थित है, जहां सोमवार तक मस्जिद खड़ी थी.
इस साल मार्च में, इस धार्मिक ढांचे को लेकर हुए एक विवाद में कथित रूप से स्थानीय लोगों और पुलिस के बीच टकराव हुआ था. ख़बर आई थी कि अपने ऊपर पथराव होने के बाद, पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा था.
दिप्रिंट ने एक टिप्पणी के लिए एसडीएम ऑफिस का दौरा किया, लेकिन वो वहां बोलने के लिए उपलब्ध नहीं थे. कॉल्स और लिखित संदेशों से भी, उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला.
लेकिन, मंगलवार को उन्होंने फोन पर दिप्रिंट को बताया, कि वो ढांचा अवैध था.
उन्होंने कहा, ‘वो संपत्ति अवैध थी, इसीलिए कार्रवाई की गई है. इस बारे में ज़्यादा विस्तृत जानकारी, ज़िले के डीएम और एसएसपी ही साझा कर सकते हैं’.
एक बयान में डीएम आदर्शा सिंह ने कहा: ‘15 मार्च को संबंधित लोगों को एक नोटिस जारी किया गया था, और स्वामित्व को लेकर उन्हें अपने विचार रखने का अवसर दिया गया था, लेकिन नोटिस मिलने के बाद, वहां रहने वाले लोग वहां से भाग गए’.
उन्होंने कहा कि 18 मार्च को, तहसील प्रशासन ने संपत्ति का क़ब्ज़ा ले लिया था.
मुस्लिम इकाइयों ने की न्यायिक जांच की मांग
सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड ने कहा है, कि इस कार्रवाई के ख़िलाफ, वो अदालत का दरवाज़ा खटखटाएगा.
मंगलवार को जारी एक बयान में, बोर्ड अध्यक्ष ज़फर अहमद फारूक़ी ने कहा: ‘मैं तहसील और ज़िला प्रशासन की अवैध, और कठोर कार्रवाई की कड़ी निंदा करता हूं… जिसके ज़रिए उन्होंने एक 100 साल पुरानी मस्जिद को गिरा दिया है’.
मस्जिद की बहाली की मांग करते हुए उन्होंने कहा, कि ये कार्रवाई ‘सत्ता का दुरुपयोग’ थी, और ‘24 अप्रैल के हाईकोर्ट के आदेशों का उल्लंघन थी’.
वो 24 अप्रैल को इलाहबाद उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के एक आदेश का हवाला दे रहे थे, जिसमें राज्य में कोविड स्थिति के मद्देनज़र, मई के अंत तक डिमोलिशन, और ऐसी किसी भी दूसरी कार्रवाई पर, रोक लगा दी गई थी.
बोर्ड ने ये भी कहा कि वो तुरंत हाईकोर्ट जाकर, मस्जिद की बहाली, एक उच्च-स्तरीय न्यायिक जांच, और दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ कार्रवाई की मांग करेगा.
पीटीआई की ख़बर के अनुसार, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ने ये भी मांग की है, कि किसी सिटिंग हाईकोर्ट जज द्वारा, मामले की न्यायिक जांच की जाए, और कार्रवाई के लिए ज़िम्मेवार अधिकारियों को निलंबित भी किया जाए.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के कार्यकारी महासचिव, मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक बयान में दावा किया, ‘प्रशासन ने राम स्नेही घाट तहसील में, सौ साल पुरानी ग़रीब नवाज़ मस्जिद को, बिना किसी क़ानूनी औचित्य के, सोमवार रात पुलिस की मौजूदगी में गिरा दिया’.