वैज्ञानिकों की चेतावनी : अगर तेजी से टीकाकरण नहीं किया गया, तो 6 से 8 महीने में तीसरी लहर की आशंका है

नई दिल्ली: कोविड-19 संक्रमण संबंधी अनुमान जताने के लिए गणित का इस्तेमाल करने वाले सूत्र मॉडल से जुड़े वैज्ञानिक एम विद्यासागर ने कहा कि यदि देश में टीकाकरण अभियान तेज नहीं किया गया और कोविड-19 से निपटने के लिए आवश्यक नियमों का पालन नहीं किया गया, तो आगामी छह से आठ महीने में कोविड की तीसरी लहर आने की आशंका है.

विद्यासागर ने इसके साथ ही कहा कि सूत्र मॉडल में किसी तीसरी लहर की संभावना नहीं जताई गई हैं और इस पर काम किया जा रहा है.

आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा, ‘यदि एंटीबॉडी समाप्त हो जाती है, तो प्रतिरोधी क्षमता कम होने की आशंका है. ऐसे में टीकाकरण बढ़ाया जाना चाहिए और कोविड-19 को फैलने से रोकने में मददगार नियमों का पालन किया जाना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है, तो छह से आठ महीने में तीसरी लहर आने की आशंका है.’

कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर से देश का एक बड़ा हिस्सा गंभीर रूप से प्रभावित है और यह महामारी अब तेजी से ग्रामीण इलाकों में भी पांव पसार रही है. कुछ विशेषज्ञ इस महामारी की तीसरी लहर को लेकर भी आगाह कर रहे है.

तीन चौथाई आबादी का टीकाकरण जरूरी
पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव का कहना है कि तीसरी लहर कब आयेगी, इसके बारे में सटीक रूप से कुछ नहीं कह सकते. वायरस की तीसरी लहर, बच्चों पर उसके प्रभाव की आशंका व बचाव के लिये रणनीति पर हो रही चर्चा की बीच सुजाता राव ने तीसरी लहर का सबसे अधिक असर बच्चों को प्रभावित किए जाने के सवाल पर कहा, ‘ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं आई है जिसमें वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर यह बात कही गई हो कि कोविड-19 का नया स्वरूप बच्चों के लिये अधिक हानिकारक है.’

‘ ऐसा स्पष्ट हो रहा है कि वायरस का बी.1.617 स्वरूप अधिक संक्रामक है. निगरानी, नियंत्रण, इलाज एवं जांच संबंधी बताए गए दिशा-निर्देशों का पालन करने से वायरस के प्रसार को रोका जा सकता है. हमें स्वास्थ्य व्यवस्था को तैयार रखने की जरूरत है .’

राव ने आगे कहा, ‘कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई गई है, लेकिन हम यह सटीक रूप से नहीं कह सकते हैं कि यह कब आएगी और कितनी गंभीर होगी. अगर लोग कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन करें और हम बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगा सकें तो तीसरी लहर कम गंभीर हो सकती है.’

‘कोरोनावायरस के फैलाव को रोकने और उसे पराजित करने की कुंजी काफी हद तक टीकाकरण की तीव्र रफ्तार पर निर्भर करती है और यह ऐसा क्षेत्र हैं जहां सरकार लक्ष्य से पीछे है. किफायती टीकाकरण के लिए सरकार को भारतीय और विदेशी विनिर्माताओं से टीकों की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए. केंद्र सरकार को टीके की खरीद करनी चाहिए और राज्यों को वितरित करना चाहिए.’

हम अभी कोविड-19 की दूसरी लहर के मध्य में है, ऐसी स्थिति में यहां से टीकाकरण अभियान को गति प्रदान करना महत्वपूर्ण है.’ दूसरी लहर का प्रभाव कम होने के दौरान हमारे पास एक छोटी अवधि रहेगी और इस अवधि में हमें यह सुनिश्चित करना है कि हम अपनी 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण कर दें.

देश के हर जिले में करनी होगी तैयारी
तीसरी लहर से पहले हमें ऐसा करना ही होगा. इसके लिये विकेंद्रीकरण महत्वपूर्ण सूत्र हैं. हमें जिला स्तर पर सूक्ष्म योजना तैयार करनी होगी और इस अभियान में नागरिक समाज, ग्राम पंचायतों एवं अन्य पक्षकारों को शामिल करना होगा. टीकाकरण में शिक्षकों, ड्राइवरों, घरों में सामान पहुंचाने वालों, औद्योगिक कर्मियों तथा कामकाज में नियमित सम्पर्क में रहने वालों को त्वरित रूप से टीका लगाना होगा. तभी हम आने वाले समय में वायरस का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकते हैं .

हर वायरस शरीर में अपनी प्रति (कॉपी) बनाने के दौरान बदलाव करता है, लेकिन उसकी प्रतियों में खामियां होती हैं और वायरस की हर प्रति उसकी सटीक प्रति नहीं हो सकती हैं. कोई भी बदलाव ‘म्यूटेशन’ कहलाता है तथा वायरस के स्वरूप में छोटा या बड़ा हो सकता है. एक वायरस में ऐसे बड़ी संख्या में बदलाव होते हैं. ऐसे में जब तक बड़ी आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता है, हमें कोविड-19 प्रोटोकाल के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए.

‘वायरस का हर बदलाव चिंताजनक नहीं होता है और वायरस का जीनोम अनुक्रमण इसलिए किया जाता है ताकि वायरस में आए उन बदलावों पर नजर रखी जा सके जो उसे अधिक खतरनाक बना सकते हैं. ऐसे में वैज्ञानिक वायरस में हो रहे या होने वाले बदलाव पर सतत नजर रखते हैं .’

सुजाता राव आगे कहती हैं. ‘आने वाले समय में कोरोनावायरस का कोई भी प्रारूप आए, इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिये दो ही रास्ते है…..पहला टीकाकरण और दूसरा मास्क पहनना एवं सामाजिक दूरी बनाये रखना. इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिये भारत सरकार को टीके के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर देना चाहिए और आधे दर्जन अधिक कंपनियों को टीका उत्पादन से जोड़ना चाहिए .भारत में इसके लिये आधारभूत ढांचा और क्षमता है.

भाषा के इनपुट्स के साथ

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