नही रहे छत्तीसगढ़ के अनमोल कोहिनूर हीरा, महान वरिष्ठ वैज्ञानिक, समाजसेवी, मातापिता के प्रेम में समर्पित बेटा , कोरबा जिले के पवन कुमार कौशिक

त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम रमेश बैस भी उनके प्रतिभा और व्यवहार के कायल थे, उनके ईलाज में उन्होंने सहायता भी की और प्रतिदिन अपडेट लेते रहे

कलयुग के “श्रवण कुमार” उनका यह माता-पिता के प्रति प्रेम युगों तक याद किया जाएगा, एक ओर कोरोना काल में माँ बाप को बेसहारा छोड़ देना आम बात थी, वही पवन कौशिक ने जब सुना की उनके माता पिता की तबियत खराब हो रही वह त्रिपुरा से तत्काल कोरबा लौटे और 25 दिन की मेहनत से उन्हें पूर्ण स्वस्थ करके लौटे

बिलासपुर गुरुघासीदास विश्वविद्यालय से पढ़े कौशिक फॉरेस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित थे एवं उनके रिसर्च और डेवलोपमेन्ट ने सैकड़ों पुरस्कार एवं परिवर्तन समज को दिए, देश मे जहाँ भी रहे उन्होंने अपनी मातृभूमि और अपनी जन्मभूमि से जुड़े रहे, समाजिक स्तर पर भी हर कार्य मे सहयोग एवं हर कार्यक्रम आना आम बात थी

चरामेति फाउंडेशन को “चरामेति” नाम देने वाले पिता थे पवन कौशिक, चरामेति के लगभग सभी प्रोजेक्ट्स के नामकरण से लेकर उसके कॉन्सेप्ट को तैयार करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान

24 मार्च 1968 को बांकीमोंगरा में उनका जन्म हुआ था, वे खास तरदा ग्राम से थे, 1988 में CMD कॉलेज से गणित में बीएससी की पढ़ाई, 1990 में गुरुघासीदास विश्वविद्यालय से उन्होंने एमएससी Forestry, Environment, Wildlife life &Ecodevelopment से पूर्ण की, 1992 से 2001 तक वे ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट जबलपुर रिसर्च अफसर के रूप में कार्यरत रहे, 2001 से 2012 रेन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट- जोरहट में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत रहे, 2012 से अब तक सेंटर फॉर फॉरेस्ट बेस्ड लाइवलीहुड एंड एक्सटेंशन में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं रीजनल डायरेक्टर के पद पर कार्यरत रहे

उन्हें फॉरेस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान ब्रांडिस अवार्ड से सम्मानित किया गया था, उनके व्यवहार और कार्यकुशलता ने लाखों लोगों को रोजगार से जोड़ा, पूर्वोत्तर राज्यों में उनके नाम का डंका बजने लगा, उनके रिसर्च ने बम्बू उत्पादन एवं उससे जुड़े व्यवसाय को बहोत बड़ी पहचान मिली, अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री कर चुके है सरहाना, उनके जाने से एक बहोत बड़ा स्थान आज रिक्त हो गया है

हकीकत में हुआ क्या था

कोरोना की जब दूसरी लहर शुरू हुई सामान्यतः प्रतिदिन हमारी बात होती थी, एक दिन जब ऑक्सिजन सिलेंडर की पोस्ट ग्रुप्स में मैने डाली थी तो उन्होंने4 सिलेंडर तरदा पहुंचाने कहा एवं आवश्यक दवाइयां भी के कभी उनके माता पिता को आवश्यकता हो तो भटकना न पड़े, इसमे संस्था के भैया हरीश साहू जी ने लॉक डाउन के शुरुआती दिनों में 15 अप्रेल को उनके घर दवाइयां पहले से छोड़ दी थी, अचानक 25 को मुझे उनका कॉल आया कि उनके माता पिता को बुखार आ रहा है, तो मैंने टेस्ट की सलाह दी, 26 को फिर सुबह कॉल आया कि दादी की स्थिति बिगड़ रही है, हमने चरामेति की एम्बुलेंस भेजी एवं तत्काल राणा मुखर्जी भाई की मदद से उनका टेस्ट हमने करवाया रिपोर्ट का इंतजार करने के पहले ही वह त्रिपुरा से छत्तीसगढ़ के लिए निकल गए,और रिपोर्ट शाम को पॉजिटिव आयी थी, रायपुर से टैक्सी का प्रबंध मैंने कर दिया था, रात करीब 2 बजे वो तरदा पहुंच चुके थे,

सुबह सभी आवश्यक सामग्री लेने वे स्वयं चरामेति के एम्बुलेंस में गए और चरामेति के डॉ कमल मानिक की सलाह पर होम्योपैथी दवा एवं अन्य सामग्री ले आये, 27 अप्रेल से वे सतत घर का हर काम करके माता पिता की सेवा में जुट गए, मैं फोन पर अपडेट लेता रहा, 2 दिन में ही उनकी माताजी जिनकी हालत काफी खराब थी स्वस्थ हो गयी इसके पीछे शायद बड़ी वजह थी माँ की ममता वे अपने बेटे को ज्यादा काम करते हुए देख नही पा रही थी,

जब दो दिन में उनकी माँ की हालत सुधरी तो उसी दिन से उनके पिताजी की हालत बिगड़ गयी, रात में ऑक्सिजन लेवल 77 पर चला गया, मैं उन्हें रात 12 बजे अस्पताल शिफ्ट करने की तैयारी में लग गया था, हमारी एम्बुलेंस बाहर थी तो छत्तीसगढ़ हेल्प वेलफेयर सोसायटी एवं अन्य संस्थानों में बात कर ही रहा था कि 12.30 में उनका कॉल आया कि वो अब ठीक है, उन्हें किसी तरह से उल्टा पेट के बल लेटाकर स्टीम देने से उनका ऑक्सिजन 92 पर लौट आया लगभग 3 घण्टे लगातार स्टीम देने से वे सुबह नॉर्मल थे, लेकिन खतरा टला नही था

अगले दिन से दादी ने रसोई संभाल ली और हर काम मे मदद करने लगी, इसी बीच मे तरदा गया था और करीब 1 घण्टे उनके घर पर रुका भी था, तब हालचाल ठीक था, सभी से बातचीत भी हुई और स्थिति को देख मैं भी संतुष्ट था कि वो नही आते तो शायद हमारे लिए दादा दादी को बचाना मुश्किल हो जाता, दादी का प्रेम ऐसा की वो उस मौके पर भी चाय पानी, खाने इत्यादि की लिए पूछती रही, लेकिन कोरोना के समय बाहर निकलते ही मैं अपना पार्सल भोजन साथ लेकर ही चलता हूँ इसलिए मना कर गया,

अचानक दादाजी को खांसी आने लगी तो मेडरोल दवा हमने कोरबा से भेजी जो काफी राहत दी वह दवा 5 दिन तक फीवर आने के बाद अक्सर प्रयुक्त की जाती थी, 6 वे दिन रात में स्थिति फिर गम्भीर होने लगी खांसी से तब रात में सेंधा नमक एवं अजवाईन की पोटली से छाती की सेंकाई से सुबह तक वह फिर स्वस्थ होने लगे और ऐसा सिलसिला चलता रहा

अचानक मेरे पिताजी भी पॉजिटिव आ गए मैं तत्काल अस्पताल लेकर उन्हें चला गया, अस्पताल के भागदौड़ में कुछ दिन विशेष संपर्क में हम नही रहे वो पिताजी का हालचाल ही लेते थे, लगभग 5 तारीख के आसपास हमारी बात हुई तब तक दोनो स्वस्थ थे हल्की खांसी ही दादाजी को थी, ये पहली दफा थी जब वे इतने लंबे समय अपने मातापिता के साथ गुजार सके, होम आइसोलेशन की गाइड लाइन के मुताबिक उन्हें और रुकना था इसलिए उन्होंने अपनी छुट्टियां बढ़ा ली, और तरदा में ही थे

चूक शायद यह हुई, उनके घर मे एक ही कमरा था जहां उनके माता पिता रहते है, और कमरे अभी निर्माणाधीन था, वो छोटी से गली जितनी जगह में वहां रहकर उनकी सेवा कर रहे थे, जब तेज बारिश बीच मे हुई तो उन्हें ठंड बहोत ज्यादा लग गयी थी, और पानी के छीटें से वह हल्का भीग भी गए थे, वो रात शायद उनकी प्रतिरोधकता को भेद गया, दूसरा उन्हें खांसी कि समस्या पहले से थी वो साल भर से खांस रहे थे पहले सभी टेस्ट सामान्य थे लेकिन खांसी की वजह स्पष्ट नही थी

फिर भी वह दवा लेकर ठीक थे, 14 मई को जब उन्हें लगा उनकी स्थिति शायद ठीक नही और वे बीमार पड़ रहे हैं तत्काल वो 15 मई को वापसी के लिए निकल गए, उनकी माता जी को आभास शायद हो गया था कि उनकी तबियत ठीक नही लेकिन वो टालते हुए चले गए, उन्होंने मुझे बताया कि रुकता तो उनकी स्थिति बिगड़ने से फिर वापस उनके माता पिता बीमार हो सकते थे, और सभी को संभालना मुश्किल हो सकता था, उन्होंने 15 मई को तस्वीर भेजी तो मैंने कॉल किया वो निकल चुका हूं बोले, उनसे निवेदन किया कि आपने जो भी प्रयोग करके दादा दादी को ठीक किया वह अवश्य बताइएगा ताकि दूसरों के भी काम आए, क्योंकि दादा दादी की स्थिति ऐसी थी के उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़े, लेकिन मेहनत एवं आयुर्वेद, होम्योपैथी पद्धति के प्रयोग से उन्हें घर मे ही ठीक कर दिए

वो जब त्रिपुरा पहुंचे तो उनसे करीब 1.30 घण्टे बातचीत हुई उस दौरान वे ठीक थे, दवा इत्यादि शुरू हो चुकी थी, स्टीम इत्यादि लेने को उनसे कहा था, जब मैंने कारण पूछा कि तबियत कैसे आपकी बिगड़ी तो हालात बताया उन्होंने, उस दौरान उन्होंने एक बात कही मैं नही पहुंच पाता अपने माँ बाप के पास तो हमेशा के लिए मुझे इसका मलाल रह जाता, उन्हें कुछ हो जाता तो मैं अंदर से मर जाता, अपने आप को कोसता,

और आज जब वे स्वस्थ है तो मुझे आत्मिक शांति है, आज अगर मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नही क्योंकि मैंने अपने माँ बाप की सेवा करके जान दी इस बात का गर्व हमेशा रहेगा

तीन दिन मैं अन्य कामों में व्यस्त था उनसे बात नही हो पाई, अचानक रात 10 बजे टीकम साव जी का फोन आया हालचाल पूछते मुझे उन्होंने जानकारी दी के पवन भैया को अस्पताल में भर्ती किये है, तत्काल उन्हें कॉल करने पर पता चला दो दिन से ऑक्सिजन लेवल कम हो रहा था, उन्हें अपने ऊपर विश्वास था कि वे ठीक हो जाएंगे इसलिए रुके रहे, 89 ऑक्सिजन पर उन्हें भर्ती किया गया था, बात भी कर पा रहे थे, इस दौरान स्थिति बिगड़ते बिगड़ते संभल गयी थी, हम खुश थे फिर अचानक सेकंडरी इंफेक्शन ने अपना काम तेजी से किया बीच मे उन्हें एम्स या अन्य अस्पताल एयर एंबुलेंस से शिफ्ट करने की भी तैयारी थी लेकिन स्थिति सम्भल न सकी और आज वो हमारे बीच नही है

वो मुझसे अक्सर कहते थे मैं अपने माँ बाप से इतनी दूर हूँ अच्छा नही लगता, रिटायरमेंट मेरा तरदा में ही बीतेगा और मैं तुम्हारे साथ चरामेति मे सेवा का काम पूरी तन्मयता से करूंगा, मेरी इच्छा है कि ज्यादा से ज्यादा श्रमदान में सहयोग करूँ

चरामेति के अधिकांश कार्यकर्ताओं ने तो प्रशांत महतो को देखा है लेकिन उसके पीछे खड़े थे पवन कौशिक, मैं शुरुआत से हर एक प्रस्ताव, हर एक प्रोजेक्ट, हर कॉन्सेप्ट पर उनसे चर्चा करता था,वो हमेशा प्लान करके बताते की आपका काम कैसे ज्यादा एफ्फेक्टिव हो सकता है, हर एक प्रोजेक्ट का नामकरण उन्ही का किया हुआ है,वे कहते प्रशांत ईमानदार है इसलिए आगे बढ़ गए और जीवन पर्यंत बढोगे, जो क्षमता तुममे है वह किसी में नही, लक्ष्य से कभी हटना नही।

वे कहते चरामेति कभी इतनी आगे बढ़ जाएगी ये मैं भी नही सोचा था, लेकिन तुममे वो जादू है जो कोई भी काम कर सकती है, मैं कहता आपका आशीर्वाद है तो हर मुकाम चरामेति हांसिल करेगी

ऐसा कोई क्षेत्र नही था जिसमें उनका अनुभव न रहा हो, युवाओं के मार्गदर्शक एवं अद्भुत सलाहकार थे, उनके बारे में एक किताब लिखी जा सकती है, अनुभव का सदैव सदुपयोग ऐसा और उनकी ईमानदारी ऐसी के विशेष कोई प्रॉपर्टी भी नही, लेकिन जो नाम और ईज्जत देशभर में उसका मोल नही

आज चरामेति के सर उसके पिता छिन गए लग रहा है, जब भी डिप्रेशन में रहता तो वही उबारते आज के इस परिस्थिति से कौन उबरेगा?

हमारा सपना था एक चैरिटेबल अस्पताल एवं स्कूल शुरू करने का, वह जरूर पूरा होगा

आपकी कमी हमेशा रहेगी सर, मुझे कमी हमेशा खटकेगी, मैं सौभाग्यशाली भी था आपका आशीष मुझे हमेशा मिला🙏🌹

प्रशांत महतो
चरामेति फाउंडेशन

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