रायपुर ! छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के गणना हेतु सर्वे कार्य 1 सितंबर से प्रारंभ किया गया है। लेकिन इसमें छत्तीसगढ़ सरकार एवं प्रशासन की उदासीनता तथा ढीला रवैया एवं घोर लापरवाही सामने आ रही है।
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग के हितों, अधिकारो व सामाजिक न्याय देने की मंशा से आरक्षण संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी प्रदान की गई है।
इस विधेयक में राज्यों को ओबीसी की सूची तैयार करने का अधिकार देने का प्रावधान है । प्रदेश कांग्रेस सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की गणना हेतु छत्तीसगढ़ क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने मोबाइल ऐप और वेब पोर्टल लॉन्च किया है किंतु प्रदेश के अधिकांश आबादी मोबाईल में अपना डाटा अपलोड नही कर सकती है। इस हेतु सरकार की ओर से कोई वैकल्पिक प्रावधान नही किये गये है।
छत्तीसगढ़ शासन इसके लिए सही तरीके से प्रचार भी नहीं कर रही है न हीं मुनादी इत्यादि की जा रही और न हीं सर्वे दल ठीक से भेज रही है। पूरे प्रदेश में 5549 सुपरवाइजर नियुक्त किए गए हैं जिनमें शहरी क्षेत्रों में लगभग 1103 तथा ग्राम पंचायत में 4446 सुपरवाइजर की नियुक्ति की गई है। इसके बावजूद राजधानी रायपुर सहित संपूर्ण छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग की गणना में कोई पारदर्शिता और प्रगति दिखाई नहीं दे रही है । ऐसा कर कांग्रेस सरकार निश्चित ही पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय कर रही है । पिछड़े वर्ग की अनुमानित संख्या प्राप्त कर खानापूर्ति ही कर रही है । सीमित समय 12 अक्टूबर तक अन्य पिछड़ा वर्ग व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग एप में डाटा अपलोड कर सकते हैं। इस तरह धीमी रफ्तार से कार्य चलता रहा तो डाटा एकत्र करना असम्भव है ।
भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा ज़िलाध्यक्ष सुनील चौधरी ने मांग की है कि इस कार्य का पर्याप्त रूप से प्रचार प्रसार किया जाए ताकि सभी वर्ग को इसकी जानकारी मिल सके साथ ही उन्होंने सरकार को आगाह किया है की यदि प्रदेश में पिछड़ा वर्ग समाज के हितों की अनदेखी कर इस तरह से कुठाराघात किया गया तो हम सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करेंगे।