रायपुर,29 सितम्बर 2021। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि भारत के ई-कॉमर्स व्यापार पर विदेशी धन से पोषित कंपनियों द्वारा नियम एवं कानूनों के उल्लंघन तथा ई-कॉमर्स पर अपना कब्ज़ा जमाने की साजिश के विरुद्ध चल रहे संघर्ष को एक नया आयाम देते हुए कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज देश के विभिन्न नामचीन उद्योगपतियों एवं व्यापार से जुड़े अनेक प्रमुख संगठनों को एक पत्र भेज कर इस संघर्ष को एक व्यापक अभियान बनाने के लिए उनका समर्थन माँगा है। कैट ने अपने पत्र में कहा है की भारत में कई प्रमुख विदेशी वित्त पोषित ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा देश के अधिनियम और कानून की खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही है, इससे भारत के छोटे व्यवसायों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया हैं। ये सर्विदित है की ये कंपनियां लागत से भी कम मूल्य पर माल बेचना, गहरी छूट, हानि वित्तपोषण, विभिन्न ब्रांड की एक्सक्लूसिव बिक्री , तरजीही विक्रेता सहित एफडीआई नीति, 2018 के प्रेस नोट संख्या 2 द्वारा सख्ती से प्रतिबंधित नियमों का खुले आम उल्लंघन कर देश के निर्माताओं और विक्रेताओं के व्यापार को धक्का पहुंचा रही हैं।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने बताया की कैट ने आज देश के प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा,मुकेश अम्बानी,हर्ष गोयनका, करसन भाई पटेल, अजय पीरामल, ललित अग्रवाल,किशोर बियानी,राधाकिशन दामानी, एवं संजीव मेहता सहित अन्य अनेक उद्योगपतियों एवं स्वदेशी जागरण मंच, लघु उद्योग भारती, आल इंडिया ग्राहक पंचायत, फेडरेशन ऑफ़ स्माल इंडस्ट्रीज, फिक्की, सीआईआई , एसोचैम, पीएचडी चैम्बर, आल इंडिया ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन सहित अन्य प्रमुख संगठनों को एक पत्र भेजकर एक बड़ा फोरम बनाने का आग्रह किया है जिससे देश के ई-कॉमर्स एवं रिटेल व्यापार को विदेशी कंपनियों द्वारा बंधक न बनाया जा सके।
पारवानी एवं दोशी ने कहा की चूंकि वे ठीक उसी तरह से काम कर रहे हैं जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा व्यावसायिक प्रथाओं को अपनाया गया था, ये हमे यह सोचने पर मजबूर करता है कि वे खुद को ईस्ट इंडिया कंपनी के दूसरे संस्करण के रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं। यह एक ज्ञात तथ्य है कि ये कंपनियां अविश्वसनीय छूट पर सामान बेच रही हैं जो सामान्य व्यावसायिक प्रथाओं में नहीं होता है जिससे उपभोक्ता को सस्ते सामान खरीदने की आदत हो जाती है। इस व्यवसाय प्रथा से असमान स्तर की प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे व्यवसायी बर्बादी की कगार पर है और ये कंपनियां अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रहे हैं और अपना एकाधिकार जमा रहे हैं जो कभी भी अर्थव्यवस्था और देश के बड़े हित में नहीं है। यह निश्चित रूप से विदेशी निवेश का मामला नहीं है बल्कि विशुद्ध रूप से एक नकदी जलाने वाला मॉडल है जो की एक अनुचित व्यावसायिक प्रथा है।
पारवानी एवं दोशी ने कहा की यह किसी से छुपा नही है, कि न केवल भारत में बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में, ये वैश्विक कंपनियां कानूनों के उल्लंघन में माहिर हैं और कई देशो में उन्हें सजा दी गई है या जांच और पूछताछ का सामना करना पड़ रहा है जो दर्शाता है कि वे आदतन कानून की अपराधी है। उन्होंने कहा की देश का व्यापारी ई-कॉमर्स के खिलाफ नहीं हैं बल्कि व्यापारी तेजी से ई-कॉमर्स को अपने व्यवसाय के साथ एक अतिरिक्त व्यापारिक अवसर के रूप में अपना रहे हैं और भारत में ई-कॉमर्स के “फिजिटल मॉडल“ को बढ़ावा दे रहे हैं।
पारवानी एवं दोशी ने कहा की एक लम्बे संघर्ष के बाद और देश में ई-कॉमर्स नियमों की आवश्यकता पर जोर देते हुए, केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत कई ई-कॉमर्स नियम प्रस्तावित किए हैं जिन्हें अभी अधिसूचित किया जाना है। ये नियम विदेशी या भारतीय मूल के सभी प्रकार की व्यावसायिक संस्थाओं पर लागू होंगे है जो या तो सामान बेच रहे हैं या किसी भी डिजिटल मोड के माध्यम से सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा की ई-कॉमर्स के प्रस्तावित नियम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के “आत्मनिर्भर भारत“ के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए हैं। मीडिया में देखा होगा कि ये वैश्विक कंपनियां एक तरफ दावा करती हैं कि वे ई-कॉमर्स से संबंधित हर नियम का पालन कर रही हैं, फिर भी वे सभी हर प्रकार की बाधा खड़ी कर रही है जिससे कि सीसीआई द्वारा उनके व्यापार मॉडल के खिलाफ जांच न हो पाए। इसके अलावा, वे छोटे व्यापारियों को सशक्त बनाने के लिए बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं जो एक खुला झूठ है और खुद को बचाते हुए वे लोगों को बेवकूफ बनाने का प्रयास निरंतर कर रही है। कैट इस मुद्दे पर किसी भी सार्वजनिक मंच पर आमने-सामने बहस करने के लिए तैयार हैं।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की इन कंपनियों के द्वारा केवल व्यापारियों का ही नुक्सान नहीं होगा बल्कि बड़े उद्योग, उनके वितरकों, स्वयं के स्वामित्व वाले उद्यमों, किसानों, ट्रांसपोर्ट तथा अन्य कशतेरों को भी व्यापार का बड़ा नुक्सान होगा। यदि ई-कॉमर्स और खुदरा व्यापार इन वैश्विक कंपनियों के कब्जे में जाता है, तो इसका भारतीय निर्माताओं और उत्पादकों पर भी बहुत प्रभाव पड़ेगा।दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा की भारत के खुदरा व्यापार की सभी ताकतों के एक बड़े मंच को मजबूत करने की इच्छा से कैट न्याय की इस लड़ाई में सभी उद्योगपतियों एवं संगठनों का सहयोग चाहती है जिससे एक जुट होकर सरकार को प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों को लागू करने और ई-कॉमर्स नीति के कार्यान्वयन के लिए प्रेरित किया जा सके।