अब पहले जैसे सायकल में ऊ न की गठरियां लिए फेरी वाले नहीं दीखते..और रंग-बिरंगी ऊ न भी देखने को नहीं मिलते..पर जब घर,आंगन,सड़कों पर खेलते बच्चों को देखता हूं..जीवन में रंगों की कमी पूरी हो जाती है बहाना कोई सा भी हो पर ..जीवन में रंग भरने वाले अहसासों को जिंदा रखना ही है..ऐसे में जाड़े का मौसम आया है..यह बहाना भी अच्छा है आइए मिलकर ऊनी प्रेम के धागों से ..रिश्तों का स्वेटर बुनते हैं..या फिर घर,आंगन में अलाव..अंगीठी जलाते हैं..
और इसके चारों तरफ बैठ कर पुरानी यादों के किताबों से किस्से ,कहानियां निकालते हैं.. यह नहीं तो ठंड में किसी अपने के हाथों से बनी गर्म–गर्म चाय ,किसी के हाथों की गर्म रोटियां,किसी के हाथों की दुलार भरी थपकियाँ..किसी हाथों के छुवन से एहसासों के रंगीन तितलियों को उड़ने देते है आसमान में..बिखरने देते हैं धरती से बादलों तक इंद्रधनुष.सम्भावना बहुत है..अगर हम कुछ कर गुजरने तैयार हो जाये तो. सेहद में संतुलन का संदेश लेकर आये ठंड के इस मौसम में आइए सारे अशुद्धियों का विसर्जन करते हैं और इस समाज में ,धरती में अपने आस पास प्रेम की ऊष्मा लिए..जीवनीशक्ति को शंखनाद करने देते हैं(जारी..)