रायपुर। बड़े दिनों के बाद छत्तीसगढ़ी फिल्मों की चिठ्ठी दर्शकों के नाम आई हैं। दो साल कोरोना काल में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का अभाव रहा लेकिन अब धड़ाधड़ फिल्में प्रदर्शित हो रही हैं और उतनी ही तेजी से बन भी रही है। बताया जा रहा है आने वाले समय में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का यह सिलसिला हिंदी फिल्मों को भी पीछे छोड़ सकता है छत्तीसगढ़ के संदर्भ में । गौरतलब है कि कभी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को सिनेमाघर के अभाव का सामना करना पड़ता था।
बड़ी मुश्किल से सिनेमाघर छत्तीसगढ़ी फिल्मों को मिल पाते थे और कभी-कभी तो यह भी हुआ कि चलती हुई छत्तीसगढ़ी फिल्म को उतारकर सिनेमाघर मालिको ने हिंदी फिल्म लगा दिया था। कई अवसरों पर विवाद हुआ है और छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता-निर्देशक सड़क पर उतर कर प्रदर्शन भी किए हैं . अब हालात विपरीत हो गए हैं। सिनेमा घर के मालिक भी यह जान गए हैं कि बिना छत्तीसगढ़ी फिल्मों के उनका व्यवसाय निरंतर नहीं चल सकता।
जब हिंदी फिल्में रिलीज नहीं हो रही थी तब सिनेमाघर मालिकों को मजबूरी में पुरानी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रदर्शित कर सिनेमा घर चलाना पड़ा था। वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार तपेश जैन कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्में आने वाले समय में और जाता बेहतर होगी और राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान होगी क्योंकि छत्तीसगढ़ में लोहे और कोयले की ही खदान ही नहीं कलाकारों की भी खदान है और कई अवसरों पर छत्तीसगढ़ी कलाकारों ने विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। सावन में निर्देशक उत्तम तिवारी की मिस्टर मजनू , शोमैन और बडे बजट की फिल्म बनाने वाले निर्माता ,अभिनेता बॉबी खान की मोर मया ला राखे रहिबे , उदयकृष्णन की कुरुक्षेत्र , शेखर चौहान की मया होगे रे , धर्मेंद्र चौबे की दुल्हन पिया की , छत्तीसगढ़ी फिल्म टाकिजों में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करेंगी।
बहुत पुरानी बात नहीं है कुछ महीने पहले तक या स्थिति रही कि नहीं हिंदी फिल्म प्रदर्शित नहीं होने पर छत्तीसगढ़ी फिल्मों से सिनेमा मालिकों को काम चलाना पड़ा। अब हालात यह है कि हर हफ्ते नई छत्तीसगढ़ी फिल्म प्रदर्शित हो रही हैं। सावन के पूरे महीने में लगातार छत्तीसगढ़ी फिल्मों का प्रदर्शन होगा और इसके चलते हैं सिनेमाघरों में दर्शकों की बहार और हरियाली देखने को मिलेगी। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ में ही नहीं पूरे देश भर में सावन के महीने से ही त्योहारों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है छत्तीसगढ़ में तो हरेली के बाद तिहार शुरू हो जाते हैं और यह सिलसिला दीपावली तक निरंतर चलता रहता है।
त्योहारों में महिलाएं अपने मायके और ससुराल के बीच लगातार आना-जाना करती हैं और उनके पास मनोरंजन का समय भी होता है। ;ऐसे समय में फिल्में भी बहुत ज्यादा देखी जाती हैं जहां एक बात और बताना होगा कि छत्तीसगढ़ में जब से भूपेश बघेल की सरकार आई है तब से छत्तीसगढ़ी त्यौहार बड़े उमंग के साथ मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृति को बहुत ज्यादा महत्व मिल रहा है छत्तीसगढ़ियापन जैसे-जैसे बढ़ते जा रहा है वैसे वैसे छत्तीसगढ़ी फिल्मों का क्रेज भी बढ़ते जा रहा है।
छत्तीसगढ़ी गीत संगीत अपनेमाधुर्य के लिए जाना जाता है और इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी सिनेमा भी बहुत पसंद किया जाता है। इधर सरकार ने भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए नई फिल्म नीति की घोषणा की है जिसमें अनुदान के साथ ही कई विषयों में राहत प्रदान की गई है। सरकार की सहयोगी भूमिका से छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने बनाने वाले निर्माता भी उत्साहित हैं और वर्तमान में रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ी फिल्में बनाई जा रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि आने वाले समय में हर हफ्ते दो से तीन छत्तीसगढ़ी फिल्में प्रदर्शित हो सकती हैं इस लिहाज से अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है। यहां पर यह भी बताना उचित होगा कि छत्तीसगढ़ी फिल्में छत्तीसगढ़ में ही शूट होती हैं और यहीं पर गीत संगीत के साथ ही उनके एडिटिंग का काम भी होता है। जबकि भोजपुरी या अन्य भाषा की फिल्मों में मुंबई में ही निर्माण कार्य किया जाता है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों में स्थानीय कलाकारों को भी बहुत ज्यादा अवसर मिला है और यहां की प्रतिभा देश विदेश तक फिल्मों के माध्यम से पहुंची है। वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मकार तपेशजैन कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्में आने वाले समय में और जाता बेहतर होगी और राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान होगी क्योंकि छत्तीसगढ़ में लोहे और कोयले की ही खदान ही नहीं कलाकारों की भी खदान है और कई अवसरों पर छत्तीसगढ़ी कलाकारों ने विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है