अलवर : झुर्रियों से भरे चेहरे पर एक-दूसरे से बिछड़ने का डर और अकेलेपन की चिंता साफ महसूस की जा सकती है…मन में केवल एक विचार कि- अभी तो बच गए, लेकिन कुछ समय बाद क्या होगा…क्या होगा जब एक कोई अकेला रह जाएगा…क्या होगा जब भूखों मरने की नौबत आएगी…दरअसल ये वो अनकहे सवाल हैं, जो मौत की पटरियाें से वापस लौटे बुजुर्ग दंपती के मन में बिजली के तरह कौंध रहे होंगे… हम केवल उन्हें महसूस कर सकते हैं।
पैरों की लड़खड़ाहट बता रही थी कि जिंदगी अब बोझ लगने लगी है और किसी मंजिल पर पहुंचने की कोई चाह नहीं है… इस बीच कुछ सौ मीटर दूर से आ रही गरीब रथ ट्रेन की गड़गड़ाहट महसूस हो रही है, लेकिन बुजुर्ग के चेहरे के भाव अब भी बेफिक्रे वाले हैं। शायद वो जिंदगी के पार जाने का मन बना चुके हैं…इन सब के बीच रेलवे के कुछ कर्मचारी पटरियों को दुरुस्त करने के काम में आम दिनों की तरह व्यस्त है… इनमें से एक मुकेश (ट्रैकमैन) की निगाह इस बुजुर्ग दंपती पर पड़ती है और वह बुदबुदाता है कि लोग ट्रैक पर क्याें चलते हैं?
अचानक ही वह चौंक जाता है… और तेजी से उस बुजुर्ग जोड़े की तरफ दौड़ पड़ता है जो पटरियों पर लेटने की कोशिश कर रहा था… उसके साथी कुछ समझे उससे पहले जोर-जोर से आवाज आती है…हटो..हटो..ट्रेन आ रही है…उसके कुछ साथी भी उस दिशा में दौड़ पड़ते है…वहीं… मुकेश दूर से धीमी गति से आती ट्रेन के लोको पायलट को भी रुकने का इशारा करता है… लोग बुजुर्गों के पास पहुंचते हैं और समझाइश कर उन्हें ट्रैक से हटा देते हैं…
लेकिन उनकी बताई कहानी वहां मौजूद लोगों को झकझोर देती है…उन्होंने वहां खड़े लोगों से जिद की ….हमें एक साथ मरने दो, हम जीना नहीं चाहते…
दरअसल, बुजुर्ग बाबू सिंह (82) और छोटी देवी (80) जिंदगी के अकेलेपन से परेशान होकर सुसाइड करने निकले थे। मामला अलवर के हसन खां मेवात नगर का है।
दंपती ने बताया कि वे भरतपुर के कुम्हेर के किशनपुरा गांव के रहने वाले हैं। उनकी कोई संतान नहीं है। ऐसे में अलवर शहर में ही करीब दस साल पहले आकर रहने लगे। पास में ही झुग्गी बनाकर अपना ठिकाना बना लिया।
बुजुर्ग बाबू सिंह ने मुकेश को बताया कि वे चौकीदारी का काम करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में उन्हें संभालने वाला कोई नहीं है और अब वे चौकीदारी कर थक चुके हैं। उन्हें लगा कि दोनों में से यदि किसी एक की पहले मौत हो गई तो उनका जीवन आगे कैसे निकलेगा। ऐसे में दोनों ने साथ में मरने की सोची।
वे बाेले कि- चौकीदारी का काम करने का दम नहीं रहा है। हमारा अपना कोई नहीं है। न संतान है न अपने परिवार का कोई चाहता है। भरतपुर के कुम्हेर के किशनपुरा गांव में उनके चाचा-ताऊ के परिवार हैं, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं है। न अब खुद का घर है न कोई उनको संभालने वाला। इसलिए उम्र के आखिरी पड़ाव में दोनों एक साथ भगवान के घर जाने के लिए पटरी पर आकर सो गए।
बुजुर्ग को रेलवे की पटरी से हटाने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता अश्वनी जावली को सूचना मिली। वे उन्हें डबल फाटक के पास स्थित गुरुनानक आसरा वृद्धाश्रम ले गए। यहां दोनों को रखा गया है। अश्वनी जावली ने बताया कि हमनें बुजुर्गों की काउंसिलिंग की है। हमने कह दिया कि आपके हम बच्चे हैं। एल्डर हेल्पलाइन ऐसे लोगों के लिए काम करती है। मैं भी उसका हिस्सा हूं।
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