नई दिल्ली. दिल्ली सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार ने नेशनल कैपिटल टैरिट्री एडमिनिस्ट्रेटिव एरिया में नौकरशाहों के पोस्टिंग-ट्रांसफर को नियंत्रित करके दिल्ली सरकार के साथ म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ऑफ दिल्ली (एमसीडी) से कमतर वाला व्यवहार कर रही है।
दिल्ली की सेवाओं पर अधिकार से जुड़े विवाद की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिम एम आर शाह, कृष्ण मुरारी, हुमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की संवैधानिक पीठ के सामने दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें रखीं। सिंघवी ने कहा कि दिल्ली के 1485 स्क्वॉयर किलोमीटर इलाके के 1400 स्क्वॉयर किलोमीटर को कवर करने वाले एमसीडी को संसदीय कानून अपनी सेवाओं पर नियंत्रण देते हैं।
सिंघवी ने कहा कि यूनियन ऑफ इंडिया ने दिल्ली विधानसभा और दिल्ली की एनसीटी सरकार को नगर निकायों की तुलना में भी बदतर स्थिति में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूनिक केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) है जिसकी अपनी विधानसभा है। संविधान में संशोधन के जरिए ऐसा किया गया था। 9 में से दो अन्य यूटी जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी में भी संसद के पास कानून के जरिए विधानसभा है।
उन्होंने कहा, ‘क्या कोई यह तर्क दे सकता है कि कानून द्वारा बनाई गई विधायिका जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी को नौकरशाही पर पूरा नियंत्रण है और संविधान संसोधन के जरिए बनाई गई सरकार को सेवाओं पर पूरा अधिकार नहीं हो सकता है।’ सिंघवी ने कहा कि लोकतंत्र में सुचारू शासन के लिए नौकरशाह, जो सरकार की नीतियों को लागू करते हैं, मंत्रियों के प्रति जवाबदेह हैं, जो विधानसभा के प्रति जवाबदेह हैं। जिसका हर सदस्य उस जनता के प्रति जवाबदेह है जिसने उन्हें चुना है।
सिंघवी ने दलील दी, ‘दिल्ली विधानसभा और सरकार का लिस्ट-II के सब्जेक्ट, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड पर कोई कंट्रोल नहीं है। यदि केंद्र नौकरशाही की पोस्टिंग, ट्रांसफर को भी नियंत्रित करे तो यह ऐसा होगा कि बाबू काम दिल्ली सरकार के लिए कर रहे हैं, लेकिन उनका मास्टर कोई और है। यह एक उदासीन और अवज्ञाकारी नौकरशाही का निर्माण करेगा जो शासन को असंभव बना देगा।’उन्होंने कहा कि यह मुख्य वजह है कि क्यों एनसीटीडी में ‘सेवाओं’ पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण हो।