शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर मंडरा रहा खतरा? ECI की चुप्पी से सस्पेंस बढ़ा

शिवसेना प्रमुख पर उद्धव ठाकरे का कार्यकाल 23 जनवरी को पूरा होने जा रहा है। उनके दल के नेता लगातार दावे कर रहे हैं कि शिवसेना चीफ वही बने रहेंगे लेकिन, दूसरी ओर बागी तेवरों वाले एकनाथ शिंदे गुट के नेताओं का कुछ ही कहना है। उधर, उद्धव की शिवसेना के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने पार्टी को आंतरिक चुनाव कराने या यथास्थिति बनाए रखने पर चुप्पी साधी हुई है। शिवसेना का मुखिया कौन होगा? इस सवाल के बीच असली और नकली शिवसेना पर जंग अभी भी जारी है। चुनाव आयोग ने दोनों दलों को 23 जनवरी से सात दिनों का वक्त दिया है ताकि 30 जनवरी तक सुनवाई हो सके और फरवरी तक फैसला।

शिवसेना में चीफ कौन होगा? इस पर फिर गतिरोध तेज हो गया है। 23 जनवरी को उद्धव ठाकरे का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। हालांकि पूछे जाने पर उद्धव के दल के नेता अनिल परब ने जोर देकर कहा कि ठाकरे पद पर बने रहेंगे क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा कोई विशेष निर्देश नहीं दिया गया है। उन्होंने मीडिया से कहा, “उद्धव ठाकरे पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए शिवसेना पार्टी के अध्यक्ष हैं और रहेंगे।” उन्होंने कहा, ‘पार्टी कार्यकर्ताओं को किसी अनुमति की जरूरत नहीं है। हमने केवल कानूनी औपचारिकताओं का पालन करने के लिए ईसीआई की अनुमति मांगी थी।”

ठाकरे और शिंदे गुट को सात दिन का वक्त
ईसीआई ने शुक्रवार को शिवसेना पार्टी के चुनाव चिन्ह मामले की सुनवाई करते हुए ठाकरे और शिंदे गुटों से 23 जनवरी से सात दिनों में अपना लिखित जवाब देने को कहा और अगली सुनवाई 30 जनवरी के लिए निर्धारित की। जिसके बाद फरवरी में अंतिम आदेश आने की उम्मीद है। उधर, परब का कहना है कि सिर्फ सांसद और विधायकों को छोड़कर राष्ट्रीय कार्यकारिणी और पार्टी संगठन को देखते हुए हमारे पास बहुमत है।

परब ने बताया कि शिंदे गुट ने सादिक अली मामले (1969 में कांग्रेस का विभाजन) का हवाला दिया, लेकिन हमने ईसीआई को बताया कि जब पार्टी में समान विभाजन होता है तो निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या को ध्यान में रखा जाता है। इस मामले में, कोई विभाजन नहीं हुआ है। कुछ सदस्यों ने दलबदल किया है। पार्टी संगठन उद्धव ठाकरे के साथ है।”

परब ने कहा कि 2018 की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद उद्धव ठाकरे के फिर से चुने जाने पर किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया था। उन्होंने कहा कि अब अचानक शिंदे गुट के लोग पार्टी छोड़ने के बाद सवाल उठा रहे हैं। शिवसेना के संविधान में मुखिया नेता (मुख्य नेता) पद का कोई प्रावधान नहीं है। तो सीएम एकनाथ शिंदे का खुद को उस पद पर चुना जाना अमान्य और असंवैधानिक है। पार्टी में कोई फूट नहीं है और धनुष-बाण का चिन्ह और पार्टी का नाम हमारे पास रहेगा।

असली-नकली शिवसेना पर तकरार जारी
शिंदे गुट के वकील निहार ठाकरे ने दिल्ली में मीडिया को बताया कि इसने चुनाव आयोग के सामने तर्क दिया कि यह असली शिवसेना थी, क्योंकि अधिकांश निर्वाचित प्रतिनिधि इसके साथ थे। “एक निर्वाचित पार्टी की मान्यता उसे प्राप्त वोटों पर निर्भर करती है। ऐसे में अगर सबसे ज्यादा चुने हुए प्रतिनिधि हमारे साथ हैं तो हम असली पार्टी हैं। हमें ईसीआई से अच्छे फैसले की उम्मीद है।’

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