श्रीमती बुधरी बारसे, ग्राम गुड़ियापदर का कैंसर से दिनाँक 4 जनवरी 2023 को स्वर्गवास हो गया था। ये गोण्ड समुदाय से संबंध रखती थीं। गोण्ड समुदाय में मृत्यु के पश्चात मृतक स्तंभ या स्मृति स्तंभ बनाने की प्रथा है, जो सैकड़ों वर्ष पुरानी है।
भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार उपलब्ध लकड़ी, पत्थर, ईंट से मृतक स्तंभ बनाये जाते हैं। गोण्ड समुदाय अपने मृत व्यक्ति के सम्मान में ये चिन्ह बनाते हैं।
पत्थर की बड़ी बड़ी शिलाएँ या लकड़ी के चौड़े तख्तों बनाकर इसमें मृत व्यक्ति की जीवनी का चित्रांकन या गोदाई की जाती है। चित्रांकन या गुदाई करने वाले उस खास समुदाय के ही व्यक्ति हो सकते हैं।
दीप्ति ओग्रे, बिलासपुर की हैं और शोधार्थी के रूप में विगत दो तीन वर्षों से बस्तर के विभिन्न क्षेत्र और यहाँ के आदिवासी समुदाय का अध्ययन कर रहीं हैं।
वे अपने शोध कार्य के लिए जगदलपुर ज़िले के ग्राम गुड़ियापदर में भी लगातार जाती रहती थीं, यहाँ के ग्रामीणों के साथ श्री कोसा बारसे के परिवार से भी घनिष्ठ संबंध बन गया। कोसा बारसे की पत्नि बुधरी बाई इन्हें अपनी बेटी स्वरूप मानने लगी थी, परिवार के समस्त आयोजनों में भी दीप्ति उपस्थित रहती थीं।
अनायास ही बुधरी कैंसर से ग्रसित हो गयीं और दो वर्षों तक लगातार इलाज और शारीरिक पीड़ा सहते हुए 4 जनवरी 2023 को उनका देहांत हो गया।
चूंकि मृतक स्तंभ इस समुदाय में आवश्यक प्रथा है, इसे बनाने का निर्णय लिया गया। चूंकि दीप्ति ओग्रे को इस परिवार में बेटी के रूप में अपना लिया गया था, चूंकि वे गोदना चित्रकला में भी प्रवीन थी, इस कारण परिवार ने इन्हें एक बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी की वे ही अपनी माता समान बुधरी बाई की शिला में चित्रांकन करेंगी।
सामाजिक बैठक कर कोसा बारसे ने ग्राम देवी गुड़ियापदरिन, कालापदरिन, देवी डोकरा,गमरानी एवं पेन पुरखा से आवश्यक अनुमति लेकर दीप्ति ओग्रे को चित्रांकन का आदेश दिया।
दीप्ति ओग्रे का मानना है कि यह उनके जीवन का बेहद भावुक पल था कि उनकी माता स्वरूप बुधरी बाई का स्मृति चिन्ह बनाने का अवसर प्राप्त हुआ। वर्तमान में दीप्ति ओग्रे बादल संस्था (आसना) जगदलपुर में सहायक प्रभारी के पद पर नियुक्ति हैं।