भाजपा एक तरफ हिंदुत्व और विकास के मुद्दे पर लगातार केंद्र की सत्ता में बनी हुई है तो वहीं हिंदी बेल्ट कहे जाने वाले यूपी और बिहार में उसके खिलाफ सामाजिक गोलबंदी की कोशिशें विपक्षी दलों ने तेज कर दी है। भाजपा के हिंदुत्व को कमंडल राजनीति की बढ़त माना जा रहा है और उसकी काट के लिए विपक्षी दल मंडल-2 लाने की कोशिश में हैं। बिहार में जातीय जनगणना का ऐलान हो या फिर आरक्षण खत्म करने की साजिश के आरोप लगाना, इन मुद्दों के उभार ने ऐसे ही संकेत दिए हैं। अब इसी कड़ी में बिहार के मंत्री चंद्रशेखर के रामचरितमानस पर दिए एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है।
बिहार से शुरू हुए इस विवाद ने अब यूपी तक में राजनीति तेज कर दी है। सपा नेता स्वामीप्रसाद मौर्य ने पहले इस ग्रंथ को दलितों के खिलाफ बता दिया तो अब अखिलेश यादव का कहना है कि वह योगी आदित्यनाथ से विवादित चौपाई पर सवाल पूछेंगे। वह पूछेंगे कि उन्हें इस चौपाई के मुताबिक शूद्र माना जाएगा या फिर नहीं। यही नहीं लखनऊ में कुछ उपद्रवी तत्वों ने तो रामचरितमानस की प्रतियों को ही जला दिया। इस पूरे विवाद पर एक तरफ भाजपा सपा और आरजेडी जैसे दलों पर हिंदुओं के अपमान का आरोप लगा रही है तो वहीं इन दलों ने पूरे विवाद को दलित और पिछड़ों के अपमान से जोड़ा है।
साफ है कि जातीय जनगणना, आरक्षण और अब रामचरितमानस विवाद के जरिए विपक्ष मंडल-2 की कोशिश में है। उसे लगता है कि अब भाजपा की काट के लिए यही जरूरी है कि हिंदुओं के बीच ही सवर्ण बनाम पिछड़ा कर दिया जाए। अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव के दौरान भी ऐसी कोशिशें की थीं। उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान समेत कई पिछड़े नेताओं को पार्टी में शामिल किया था। इसके अलावा वह खुद को भी लगातार यादव और पिछड़ा नेता बताते रहे हैं। साफ है कि वह भाजपा के हिंदुत्व कार्ड पर बैकफुट पर आने की बजाय ओबीसी और दलित गोलबंदी करने की कोशिश में हैं।
सपा की कार्यकारिणी में भी ब्राह्मणों से किनारा, पिछड़ों को तवज्जो
बिहार में भी आरजेडी ने चंद्रशेखर के बयान पर कोई सफाई नहीं दी। अखिलेश यादव ने सपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन में भी अपनी राजनीति के संकेत दिए हैं। उन्होंने अपनी टीम में एक भी राष्ट्रीय महासचिव किसी ब्राह्मण या ठाकुर नेता को नहीं बनाया है। इसकी बजाय बलराम यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा जैसे पिछड़े नेताओं को उन्होंने प्रमोशन दिया है। साफ है कि अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता ओबीसी बिरादरियों का एक गुलदस्ता तैयार करना चाहते हैं, जिसमें सभी जातियों का समावेश हो। खैर, देखना होगा कि 2024 के आम चुनाव में विपक्ष की यह रणनीति कितना रंग लाती है या फिर हाल 2022 के यूपी चुनाव जैसा ही होगा।