नई दिल्ली. भारतीय क्रिकेट टीम को पिछले दो दशक में कुछ अच्छे कोच मिले हैं तो कुछ विवादों में रहे हैं, लेकिन सबसे अच्छे कोच कैटेगरी में साउथ अफ्रीका के गैरी कर्स्टन शामिल हैं, जिन्होंने भारत को 2011 के वर्ल्ड कप में जीत दिलाई थी। हालांकि, अब उन्होंने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि जब उन्होंने टीम को ज्वाइन किया था तो सचिन तेंदुलकर इससे बहुत नाखुश थे।
गैरी कर्स्टन को ऐसे समय पर कोच के रूप में नियुक्त किया गया था, जब टीम 2007 में संघर्ष कर रही थी। 2008 में उन्होंने टीम की बागडोर संभाली और फिर भारत की जीत का सिलसिला शुरू हो गया। एडम कोलिंस के साथ द फाइनल वर्ड क्रिकेट पॉडकास्ट में गैरी कर्स्टन ने याद किया कि जब उन्हें दिसंबर 2007 में भारतीय टीम के मुख्य कोच के रूप में नियुक्त किया गया था, तो उन्होंने टीम में ‘बहुत सारी निराशा’ और ‘नाखुशी’ महसूस की थी। सचिन तेंदुलकर ‘ज्यादा दुखी’ थे और उस समय रिटायरमेंट पर विचार कर रहे थे।
उन्होंने कहा, “मेरे लिए तब स्टैंडआउट यह था कि इस प्रतिभाशाली टीम को आगे ले जाने और इसे विश्व की बेहतर टीम में बदलने के लिए किस तरह के नेतृत्व की आवश्यकता थी। उस स्थिति में जाने वाले किसी भी कोच के लिए यह पहेली थी। जब मैंने कमान संभाली थी तो निश्चित तौर पर टीम में काफी डर था। बहुत सारी नाखुशी थी और इसलिए मेरे लिए यह समझना अधिक महत्वपूर्ण था कि प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वे टीम में कहां फिट बैठते हैं और उन्हें किस तरह से खुशी के लिए क्रिकेट खेलना चाहिए।”
उन्होंने आगे बताया, “सचिन शायद मेरे लिए सबसे अलग थे, क्योंकि जब मैं टीम में शामिल हुआ तो वह बहुत नाखुश थे। उसने महसूस किया कि उसके पास ऑफर करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन वह अपने क्रिकेट का आनंद नहीं ले पा रहे थे और उन्हें अपने करियर में एक समय ऐसा भी लगा, जब उन्हें लगा कि उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए। मेरे लिए उनके साथ जुड़ना और उन्हें यह महसूस कराना महत्वपूर्ण था कि टीम को बनाने के लिए उनका बहुत बड़ा योगदान था और उनका योगदान उससे कहीं अधिक था जो उन्हें करने की आवश्यकता थी।”
गैरी कर्स्टन ने अपनी और एमएस धोनी की जोड़ी को भी शानदार बताया और कहा, “कोई भी कोच चाहेगा कि खिलाड़ियों का एक समूह देश के लिए खेल रहा हो, न कि शर्ट के पीछे छपे अपने नाम के लिए। भारत एक कठिन जगह है, जहां बड़े खिलाड़ी के बारे में बहुत अधिक प्रचार किया जाता है और आप अक्सर अपनी व्यक्तिगत जरूरतों में खो जाते हैं। ऐसे में धोनी इस बीच एक नेता के रूप में असाधारण थे, क्योंकि उनका ध्यान टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन करने पर था, वह ट्राफियां जीतना चाहते थे और बड़ी सफलता हासिल करना चाहते थे और वह इसके बारे में बहुत सार्वजनिक थे। धोनी की इस सोच ने बहुत सारे खिलाड़ियों को अपनी लाइन में खींच लिया और काफी सरलता से सचिन ने भी क्रिकेट का आनंद लेना शुरू कर दिया।”