मॉस्को कीव. विनाश! युद्ध का क्या नतीजा निकला, इसका सटीक जवाब यह एक शब्द ही हो सकता है। यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग का एक साल पूरा हो गया है और उसका कुल हासिल अब तक यही दिख रहा है। भले ही रूस दावा करे कि उसने 4 प्रांतों का विलय कर लिया है और जेलेंस्की दावा करें कि यूक्रेन ने आत्मसम्मान को बचाए रखा है। लेकिन सच यही है कि इस जंग में यूक्रेनी जनता घास की तरह कुचली गई है। रूस और पश्चिमी देशों के लिए शक्ति संतुलन का जरिया बना यह युद्ध यूक्रेन के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ है। सस्ती मेडिकल शिक्षा, गेहूं जैसे खाद्यान्न की वर्ल्ड कैपिटल कहलाने वाले इस देश में चारों ओर इन दिनों बर्बादी, गरीबी का आलम है।
आम जनजीवन ठप है और बंकरों में लोग बसेरा डाले हुए हैं। इस जंग से कितना विनाश हुआ है, उसे कुछ आंकड़ों से भी हम समझ सकते हैं। इस जंग में अब तक 6900 नागरिक भी मारे गए हैं, जबकि रूस और यूक्रेन के 2.8 लाख सैनिक भी जान गंवा चुके हैं। पश्चिमी देशों के अनुमानों के मुताबिक जंग में 1.8 लाख सैनिक रूस के ही मारे गए हैं, जबकि 1 लाख यूक्रेनी सैनिक समरभूमि से जिंदा नहीं लौटे। इसके अलावा यूक्रेन में कुल 63 लाख लोगों को बेघर होना पड़ा है। इन लोगों को पलायन करके देश में ही किसी ठिकाने पर रहना पड़ रहा है या फिर पड़ोस के पोलैंड और जर्मनी जैसे देशों का रुख कर गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग का कहना है कि इस जंग से दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा विस्थापन का संकट पैदा हुआ है। हालांकि पोलैंड और जर्मनी विस्थापितों को जगह देने में दरियादिली दिखाई है। पोलैंड ने 15 लाख और जर्मनी ने 10 लाख से ज्यादा लोगों को शरण दी है। यही नहीं इस संकट ने यूक्रेनियों को बड़ी संख्या में गरीबी के दलदल में भी धकेल दिया है। यूक्रेन में 40 फीसदी नागरिक मानवीय सहायता के भरोसे पर हैं। इसके अलावा 60 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो गरीबी में जी रहे हैं। वहीं 139 अरब डॉलर का इन्फ्रास्ट्रक्चर का नुकसान भी यूक्रेन को झेलना पड़ा है। इस तरह हुई जान और माल की हानि से उबरने में यूक्रेन को लंबा अरसा लग सकता है।