6 मार्च को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल वित्तमंत्री के रूप में अपना इस कार्यकाल का आखरी बजट करेंगे पेश

रायपुर. छत्तीसगढ़ का बजट सत्र आज से शुरू हो गया है. वहीं 6 मार्च को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल वित्तमंत्री के रूप में अपना इस कार्यकाल का आखरी बजट पेश करेंगे. चुनावी बजट को देखते हुए हर वर्ग इससे उम्मीद लगाए बैठा है और निश्चित रूप से इस बजट में होने वाली घोषणाएं आगामी चुनाव में अपना व्यापक असर छोड़ेंगी. यदि बात की जाए कांग्रेस सरकार के जनघोषणा पत्र 2018 की तो जहां भूपेश सरकार ने अपने अधिकतर वादे पूरे कर दिए हैं, वहीं एक महत्वपूर्ण घोषणा संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण पर अब तक सरकार खरी नहीं उतर पाई है. संविदा कर्मचारी अपने नियमितीकरण की अब तक बाट ही जोह रहे हैं.

प्रदेश में 45000 से अधिक संविदा कर्मचारी स्वास्थ्य विभाग, पंचायत विभाग, कृषि, शिक्षा, महिला बाल विकास, पीडब्लूडी सहित तमाम विभागों मे राज्य योजना एवं केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के अंतर्गत कार्यरत हैं. कांग्रेस पार्टी ने चुनावी घोषणा पत्र वर्ष 2018 मे बड़ा दांव खेलते हुए शासकीय कर्मचारियों के संबंध में विभिन्न घोषणाएं की थी, जिनमें से शिक्षाकर्मियों के संविलियन के लिए 8 वर्ष की अनिवार्य सेवा को 2 वर्ष करने का वादा किया था. उसी प्रकार सभी संविदा, अनियमित कर्मचारियों को नियमितीकरण का वादा भी किया गया था.

कर्मचारी महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सिन्हा एवं सचिव श्रीकांत लास्कर ने कहा, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, मोहन मरकाम, कवासी लखमा ने सार्वजनिक तौर पर सरकार बनने की स्थिति में 10 दिन के भीतर नियमितीकरण करने का वादा 3 जुलाई 2018 को कर्मचारियों के आंदोलन के दौरान किया था, जिससे कर्मचारियों को कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बहुत उम्मीदें बंधी थी. छत्तीसगढ़ सरकार ने संविदा कर्मचारियों की तरह ही कार्य कर रहे शिक्षाकर्मियों को जो शुरुवाती दौर में राजीव गांधी शिक्षा मिशन के कर्मचारी थे और पंचायतों, जनपदों के माध्यम से भर्ती हुए थे उनका संविलियन शिक्षा विभाग में किया गया, लेकिन शासन के और बहुत से विभागों मे कार्यरत संविदा कर्मचारियों के प्रति सरकार का रवैया अभी तक पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ढुलमूल ही रहा है.

कर्मचारी महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सिन्हा एवं सचिव श्रीकांत लास्कर ने कहा, 14 फरवरी 2019 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अनियमित संविदा कर्मचारियों के मंच पे आने वाला साल कर्मचारी मन के बोलकर एक उम्मीद की किरण संविदा कर्मचारियों को दिखाई थी, लेकिन उसके बाद गठित पिंगवा कमेटी और कोरोना दोनों का हाल सिर्फ कर्मचारियों को प्रताड़ित करने वाला ही रहा. पिंगवा कमेटी की रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई और कोरोना काल में अपने जान को जोखिम में डालकर कार्य करने वाले कोरोना योद्धा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कर्मचारी, मनरेगा, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, कृषि, शिक्षा सहित सभी विभाग के कर्मचारियों द्वारा लगातार अपनी मांगों को लेकर मुखर रहे.

सरकार से संवाद स्थापित करने की भरसक कोशिश करते रहे, लेकिन सरकार ने किसी प्रकार का संवाद स्थापित करने की पहल नहीं की. इसके कारण बहुत से आंदोलन हुए और सरकार के प्रतिनिधि अपने बचाव में वादा पूरा करेंगे- पूरा करेंगे, करते रहे. सरकार के वरिष्ठ मंत्री और प्रवक्ता रविंद्र चौबे ने कैबिनेट बैठकों मे निर्णय की बात बार-बार दोहराई, लेकिन कैबिनेट की कई बैठकें हो जाने के बाद भी संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण आज भी अधूरा ही है.

आने वाले बजट के संबंध में छत्तीसगढ़ सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष कौशलेश तिवारी ने कहा, जनमत की सरकार को संविदा कर्मचारियों का वादा पूरा करना जरूरी है, जिससे आमजनता के साथ-साथ कर्मचारियों का भरोसा सरकार पर बना रहे. कर्मचारी महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सिन्हा एवं सचिव श्रीकांत लास्कर ने संयुक्त बयान में कहा, सरकार जिस प्रकार से संविदा कर्मचारियों का शोषण कई वर्षों से नियमितीकरण न देकर करते आ रही है उससे आजादी का वादा कांग्रेस पार्टी ने किया था इसलिए अपने अंतिम बजट में सभी संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण की घोषणा को पूरा करे.

संघ के उपाध्यक्ष संजय सोनी, कोषाध्यक्ष टीकमचंद कौशिक, प्रवक्ता सूरज सिंह, प्रांतीय सदस्य तारकेश्वर साहू, टेकलाल पाटले, विजय यादव, सुदेश यादव, परमेश्वर कौशिक, शेख मुस्तकीम ने कहा, विभिन्न राज्यों की सरकारों ने संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण का उपहार दिया है. उसी प्रकार छत्तीसगढ़ के संवेदनशील मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बजट सत्र में अपना वादा पूरा करे.

संगठन के कर्मचारियों से नियमितीकरण में आने वाले खर्चे संबंधित प्रश्न पर संघ के सदस्यों ने कहा कि सरकार बनने के पूर्व कांग्रेस पार्टी के पास नियमितीकरण के लिए आने वाले बजट का पूरा आकलन था, लेकिन अभी सिर्फ जानकारी मंगाने के नाम पर नियमितीकरण में विलंब किया जा रहा है और सरकार द्वारा त्वरित निर्णय नहीं लेने की स्थिति में अनिश्चिकालीन आंदोलन की रुपरेखा भी तैयार की जा रही है.

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