नई दिल्ली. भारत में पहली बार ‘दुश्मनों की संपत्तियों’ का सर्वे होने जा रहा है। सर्वे के बाद इन संपत्तियों से सरकार कमाई का रास्ता निकालेगी। इस सर्वे का उद्देश्य है कि युद्ध के बाद जिन लोगों ने चीन या फिर पाकिस्तान की नागरिकता ले ली थी उनकी संपत्तियों को सरकार अपने कब्जे में लेकर उनका उपयोग करे। डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ डिफेंस एस्टेट्स (DGDE)इस काम में सक्रिय है। वह इन संपत्तियों का ब्योरा इकट्ठा करेगा और फिर इनकी कीमत निकलवाएगा। देश में ऐसी 12 हजार से ज्यादा संपत्तियां हैं।
गृह मंत्रालय के अंतरगत इस काम के लिए कस्टोडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टीज फॉर इंडिया (CEPI) बनाई गई है। एक अधिकारी ने बताया, ‘यह सर्वे का काम उत्तर प्रदेश से शुरू किया गया है। ज्यादातर ऐसी संपत्तियां उत्तर प्रदेश में ही हैं।’ सरकार ने 2020 में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत एक मंत्रियों का समूह बनाया था जो कि इन संपत्तियों की निगरानी कर रहा था। लोगों के पाकिस्तान और चीन चले जाने के बाद ये संपत्तियां यहां लावारिश रह गईं। जानकारी के मुताबिक इस तरह कम 12,611 संपत्तियां हैं जो कि 20 प्रदेशों में फैली हैं। इनमें से 12485 पाकिस्तानी नागरिकों की हैं जबकि 126 चीनियों की हैं। ज्यादातर ऐसी प्रॉपर्टी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हैं। दिसंबर 2022 में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि डीजीडीई रक्षा मंत्रालय से इतर डीजीडीई यह सर्वे करेगा। गृह मंत्रालय ने इसके लिए आग्रह किया है। डीजीडीई आम तौर पर कैंट इलाकों की भूमि अधिग्रहण और प्रबंधन का काम करता है।
सरकार को उम्मीद है कि इन संपत्तियों से कम से कम 1 लाख करोड़ रुपये की कमाई होगी। सीईपीआई ने 2018-19 में भी इन संपत्तियों से धन निकाला था। 152 कंपनियों में इसे निवेश किया गया था। बीते पांच साल से निवेश के जरिए इन संपत्तियों से सरकार पैसा कमा रही है। अधिकारियों का कहना है कि इन संपत्तियों के संबंध में कई तरह की शिकायतें मिल रही हैं। बहुत सारे लोग इनपर झूठा दावा कर रहे हैं। इसके लिए फास्ट ट्रैक प्रक्रिया का सहारा लिया जा रहा है। पिछले साल जून में सीबीआई ने 53 लोगों के खिलाफ चार केस दर्ज किए थे। इसमें कई राज्य सरकार के अधिकारी भी थे जो कि इन संपत्तियों पर कब्जा करना चाहते थे।