पुरुषों के कम रोने पर कई तरह की कहावतें प्रचलित हैं। जैसे मर्द को दर्द नहीं होता। मर्द आंसू नहीं बहाते वगैरह। जब कोई लड़का रोता है तो लोग अक्सर उसको चुप करवाने के लिए बोल देते हैं कि क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो। हालांकि साइंस की मानें तो पुरुषों के जल्दी न रो पाने के पीछे वजह उनका रफ ऐंड टफ होना नहीं बल्कि कुछ और ही है। हॉलैंड में एक रिसर्चर महिला और पुरुषों के आंसुओं पर शोध भी कर चुके हैं। यहां जानिएं महिलाएं क्यों ज्यादा रोती हैं और पुरुष क्यों नहीं।
हॉरमोन है जिम्मेदार
किसी दुख को हैंडल करने का सबका अपना तरीका होता है। कुछ लोग आंसू बहा लेते हैं तो कुछ लोग दर्द को अंदर ही दबाए रहते हैं। फिर भी अगर महिलाओं और पुरुषों की तुलना की जाए तो यह माना जाता है कि औरतों को जल्दी रोना आ जाता है जबकि पुरुष बहुत कम रोते हैं। समाज इस बात को कई चीजों से जोड़कर देखता है लेकिन वैज्ञानिक इसकी वजह एक हॉरमोन को मानते हैं।
महिलाओं को रुलाता है यह हॉरमोन
हॉलैंड के प्रोफेसर Ad Vingerhoets ने इंसान के आंसुओं पर एक स्टडी की। इसमें पता चला कि महिलाएं साल में 30 से 64 बार रोती हैं जबकि पुरुष 6 से 17 बार। इस बारे में एक साइकोलॉजिस्ट जॉर्जिया रे ने बताया कि इसके पीछे वजह फिजियोलॉजिकल है। उन्होंने बताया कि पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा प्रोलैक्टिन हॉरमोन कम होता है। यह हॉरमोन इमोशनल होने पर निकलने वाले आंसुओं के लिए जिम्मेदार होता है। वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हॉरमोन होता है जो उन्हें रोने से रोकता है। वहीं कल्चरल रीजन भी है कि मेल को फीमेल से ज्यादा स्ट्रॉन्ग माना जाता है और उनके रोने को समाज कमजोर होने की निशानी के रूप में देखता है।