रायपुर. खरसिया-सक्ती रोड के पास ग्राम उल्दा की गुफा में वैष्णो देवी विराजित हैं. देखने में ये भी जम्मू के कटरा में स्थित गुफा की तरह ही है. यह गुफा भी जंगल, ऊंचे पहाड़ और कलकल बहते झरने के बीच से घिरा हुआ है, जिसके बारे में प्रदेश के बहुत कम लोग ही जानते हैं पर स्थानीय लोगों के बीच इसकी पहचान छत्तीसगढ़ के वैष्णो देवी धाम के रूप में है. यहां भी हर नवरात्रि पर्व पर मेला लगता है. रायगढ़ जिले के तहसील मुख्यालय खरसिया से बारह किलामीटर की दूरी पर बोतल्दा की पहाड़ी पर ग्राम उल्दा में मां वैष्णो देवी का हूबहू वैसा ही मंदिर है, जैसा जम्मू-कटरा में माता का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है.
मंदिर के पुजारी के अनुसार 32 साल पहले वैष्णो देवी धाम से यहां एक संत आए थे, जिन्होंने ग्रामीणों से कहा कि उन्हें देवी ने स्वप्न दिया कि इस स्थान पर एक गुफा में वे विराजित हैं. ग्रामीणों के सहयोग से संत ने जंगल में गुफा की तलाश की. काफी खोजबीन के बाद गुफा नजर आई, अंदर जाकर देखते ही सभी आश्चर्यचकित हो गए. दरअसल, यहां कटरा स्थित पिंडी के स्वरूप में मां वैष्णो विराजमान थीं.
प्रकृति की सुंदर तस्वीर
पहाड़ी में मां वैष्णो देवी का मंदिर और पास ही बहता प्राकृतिक झरना बरबस ही भक्तों को अपनी ओर खींच ले आता है. नवरात्रों में ग्रामीण अंचल से ही नहीं वरन दूर दूर से लोग इस मनोरम स्थान पर माता के दर्शनों के लिए आते हैं. माना जाता है, जो भक्त अपनी फरियाद लेकर कटरा तक नहीं जा पाते, माता ने उनके लिए छत्तीसगढ़ में अपना दरबार लगाया है.
9 दिनों तक लगता है मेला
नवरात्रि में यहां 9 दिनों तक मेला सा लगता है, तो अटूट लंगर भी लगा रहता है. जिस में प्रतिदिन हजारों भक्त मां के आशीर्वाद स्वरुप प्रसाद प्राप्त करते हैं. दिनो दिन माता के इस दरबार की प्रसिद्ध बढ़ती चली जा रही है. इस दरबार को और आकर्षक एवं मनोरम बनाने के लिए लगभग 1 किलोमीटर के दायरे में भगवान की सुंदर प्रतिमाएं बनी है.
गुफाओं में ऐतिहासिक शैलचित्र
वहीं नजदीकी ही ग्राम बरगढ़ में अंचल का प्रसिद्ध शिवालय सिद्धेश्वर धाम है, तो सूती-घाट के नजदीक ग्राम पतरापाली-उल्दा की पहाड़ियों में भंवरखोल नामक प्रसिद्ध शैलाश्रय है. जिसकी दीवारों पर मत्स्य-कन्या, जंगली भैंसा, भालू, मानव हथेली और भारतीय संस्कृति के शुभंकर स्वास्तिक चिन्ह भी अंकित हैं. वहीं बोतल्दा की गुफा में भी आकर्षक शैलचित्र जो हैं, जो ऐतिहासिक हैं.