रायपुर. सामाजिक कारोबारी और घरेलू कामों में मसरूफियत का कोई अंत नहीं है जितना करो यह सब काम उतना ही बढ़ते जाते हैं सारी उम्र इसी तरह चलती रहती है लेकिन रूह के सुकून के लिए और अपने तसल्ली के लिए इबादत का साथ होना भी जरूरी है माहे रमजान इसके लिए सबसे बेहतर मौका है जब जिंदगी की इबादतो के बकाया को पूरा किया जा सकता है महीने भर की इबादत से सारे साल सुकून और तसल्ली का एहसास मिलता है कोशिश यही होती है की बिना किसी जरूरी काम के घर से ना निकला जाए और ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में बिताये। इस पूरे माह में सिर्फ रोजा, नमाज, तरावी,सेहरी और इफ्तार साथ तिलावत का मांमूल तय है। जरूरतमंद लोगों तक मदद पहुंचाने की भी कोशिश करना चाहिए माहे रमजान की सबसे बड़ी कमाई यही है कि हम किसी तरह अल्लाह को राजी कर ले अल्लाह की रजा मिलेगी तो जिंदगी के गुनाहों से निजात मिल जाएगी।कोशिश यह भी की जानी चाहिए कि हम किसी के मददगार बन जाए और यह ना कर सके तो कम से कम यह कोशिश होना चाहिए कि हमारी वजह से किसी को तकलीफ या नुकसान, परेशानी,दुख,गम ना हो मेरा तो यह मानना है की त्योहारों का निजाम इसलिए बना है कि लोग अपनी भक्ति दौड़ती जिंदगी से कुछ वक्त निकालकर अपने परिवार दोस्तों के साथ खुशियां मनाएं और अल्लाह और ईश्वर को शिद्दत से याद करें रमजान में रोजा रखकर भूख प्यास की शिद्दत को महसूस करना और लोगों की मदद कर उनके चेहरे पर खुशी व मुस्कान ला सके हमें उसका सबक बनना चाहिए रमजान के इस मुबारक मौके पर हमें समाज में भाईचारा,सौहार्द और अपनापन बांटने का संकल्प कर, दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।
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