छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में पेड़ों की हत्या

गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में धड़ल्ले से पेड़ों की हत्या हो रही है. हरे-भरे पेड़ों का कत्ल किया जा रहा है. पेड़ों को काटकर बस्तियां बसाई जा रही है. ग्रामीण वन अधिकार पट्टे के लालच में जंगल का जंगल साफ कर रहे हैं. उदंती अभ्यारण और सामान्य वन मंडल क्षेत्र के जंगल में लाखों पेड़ काट दिए गए हैं. बफर जोन में अवैध बस्तियों की भरमार है. रिकॉर्ड के मुताबित 16.59 वर्ग KM पर अवैध कब्जा कर लिया है. लाखों पेड़ काटकर अधिकार मांगने वाले 5 हजार 561 अपात्र की श्रेणी में हैं. पंचायत की मिलीभगत से अवैध कब्जाधारी आवेदन करने में सफल हो जाते हैं. अवैध बस्तियों में मूल भूत सुविधाएं भी मिल रही है. LALLURAM.COM की टीम ने जब इसकी पड़ताल की तो चौंकाने वाले खुलासे हुए. जंगल में बस्तियों की भरमार है.

30 हजार पेड़ काट कर बसी सोरना माल बस्ती

वहीं उदंती सीतानदी अभ्यारण्य के बफर जोन में लगभग 30 हजार पेड़ काट कर 188 हेक्टेयर में बसाए गए सोरना माल बस्ती के खाली होने के बाद LALLURAM.COM की टीम ने पड़ताल की. अभ्यारण्य के भीतर ऐसे अवैध बस्तियों की भरमार है. अभ्यारण्य प्रशासन के पास दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक 1842.54 वर्ग किमी फैले उदंती सीतानदी अभ्यारण्य में 16.59 वर्ग किलोमिटर यानी 1659 हेक्टेयर पर 393 लोगों ने कब्जा किया हुआ है.

डेढ़ लाख से ज्यादा काटे गए पेड़

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 1842 वर्ग किमी में फैले अभ्यारण्य की सीमा में 393 लोगों ने डेढ़ लाख से भी ज्यादा संख्या में पेड़ काट 16.59 वर्ग किमी पर कब्जा किया. असलियत में आंकड़े इससे भी ज्यादा हैं.

अतिक्रण का रकबा बफर की तुलना में ज्यादा

2008 के बाद यह कब्जा हुआ है. दर्ज पीओआर के मुताबिक कब्जाधारियों ने डेढ़ लाख से ज्यादा संख्या में वृक्षों की कटाई की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक अभ्यारण्य के बफर जोन में 798.64 हेक्टेयर पर काबिज 314 के खिलाफ प्रकरण दर्ज है, जबकि वन्य प्राणियों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और सवेदनशील माने जाने वाले कोर जोन में अतिक्रण का रकबा बफर की तुलना में ज्यादा है.

सिर्फ 26 अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई

कब्जाधारियो की संख्या कम है. यहां केवल 79 लोगों ने 860.4160हेक्टेयर वन भूमि को हथिया रखा है. अब तक विभाग ने अरसी कनहार परिक्षेत्र के 26 अतिक्रमणकारियों को बेदखल कर पाई है. कब्जे पर वन अधिकार मांगने वाले 5561आवेदन भी अपात्र पाए गए हैं.

कब्जाधारियों की आई बाढ़

सोरनामाल से इचरादी की बस्ती बड़ी है. हमारी पड़ताल आगे बढ़ी तो हमे सोरनामाल जैसे तौरेंगा रेंज में इचरादी नाम की बस्ती बसी है. यह इलाका साइबिन कछार पंचायत के क्षेत्र में आता है. 2008 में जब वन अधिकार पट्टा वितरण शुरू हुआ तो उस साल केवल 12 परिवार थे. 5 साल पहले बढ़ कर 23 हो गए थे, लेकिन बीते 5 साल में कब्जाधारियों की बाढ़ आ गई.

दूसरे राज्य के लोगों का कब्जा

इलाका ओडिशा के नवरंगपुर जिले के रायघर ब्लॉक के सीमा से लगा हुआ है. पहले आकर बसे ओडिशा के लोग अपने नाते रिश्तेदारों को आकर बसा दिया. अब परिवार की संख्या 60 से ज्यादा है. 250 हेक्टेयर से भी ज्यादा रकबे में वहां के लोग मक्के की खेती करते हैं. जानकारी के मुताबिक रायगढ़ सीमा से लगे झोलाराव, कोदोमाली, उत्तर एंव दक्षिण अभ्यारण्य के कुछ हिस्से में भी अवैध कटाई हुई जो विभाग के रिकार्ड में दर्ज नही हुआ है.

सरकारी रिकॉर्ड में नाम ही नहीं

इंदागांव रेंज में ही कक्ष क्रमाक 1216 में मेघापारा,1220 से 1229, 1240चिपाड़,1243,1244 मेंगोरामाल नुआगांव के नाम से बस्ती बसा हुआ है. धुरुवागुड़ी बिट के क्रमांक 1237,1238 में बसे 35 घर मिलाकर लगभग 2 हजार एकड़ से भी ज्यादा वन भूमि काबिज करने वाले 100 से भी ज्यादा लोगों के नाम कार्रवाई के सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है.

अवैध बस्तियों में सरकारी योजनाएं लागू

अवैध बस्तियों में सरकारी योजनाएं लागू है, क्योंकि पंचायत से मुहर लग रही है. अवैध बस्तियों को केवल वन विभाग को छोड़ दिया जाए तो अन्य विभागों की योजनाएं आसानी से लागू हो जाती हैं, क्योंकि अवैध कब्जा कराने में स्थानीय प्रमुख ग्रामीणों की भूमिका अहम होती है.

जंगल में कैसे करते हैं कब्जा ?

गांव के बने नियम के मुताबिक बसाहट के पहले ग्राम देवी के सामने पूजा करते हैं, फिर बकरा भात का दावत के आलावा कुछ जगहों पर एकड़ के हिसाब से 10 से 20 हजार तक अतरिक्त खर्च देना होता है. ग्राम के झाखर, पुजारी, पटेल और प्रमुख मान गए तो सरपंच को भी बुजुर्गो के सम्मान में सहमति देना होता है.

कैसे होता है कब्जे का खेल ?

बाहरी कब्जा धारी पंचायत के निवास प्रमाण पत्र के आधार पर अपना आधार पर पता सुधार लेते हैं, क्योंकि वोट की राजनीति में इसे पंचायत नया मोहल्ला और वार्ड घोषित कर देता है. इसी घोषणा के अनुसार आधार कार्ड भी बन जाता है. राशन कार्ड भी बनता है. आसानी से बन जाने वाले इन्हीं दोनों महत्वपूर्ण दस्तावेज के चलते अवैध भूमि पर क्रेड़ा का सोलर लाइट पंप, राशन, पेंशन से लेकर सब कुछ मिल जाता है. इचरादी के अस्थाई स्कूल के बच्चो को एमडीएम और मास्टर की सुविधा शिक्षा के अधिकार के तहत उपलब्ध है. बड़े अवैध बसाहट में पेय जल की व्यवस्था के लिए बोर खनन और नल जल योजना की भी सुविधा है.

अवैध कब्जे का रकबा फाइलों में जा अटका

अधिकार की चाहत रखने वाले अवैध कब्जा का रकबा फाइलों में जा अटका है.
उदंती अभ्यारण्य व सामान्य वन मंडल के वन भूमि का मैनपुर अनुविभाग भर में फैला हुआ है. अवैध कब्जा करने के बाद पंचायत स्तर पर किसी तरह साठ गांठ कर वन भूमि पर काबिज 6085 लोगों ने वन अधिकार पट्टा के लिए शासन से आवेदन किया है.

नियम के मुताबिक 2005 के पूर्व जिनका वन भूमि पर कब्जा है. उसी वर्ष उन पर कार्रवाई दर्ज हुई होगी तो वहीं वन अधिकार की पात्रता रखेगा. मैनपुर जनपद में मौजूद आंकड़ा बताता है कि उन हजारों में से केवल 524 लोग ही इस अधिकार की पात्रता पाए गए. 5, 561 अपात्र पाए गए. पट्टा देने से पूर्व वन, राजस्व, जनपद विभाग के अफसरों के अलावा तीन जनपद सद्स्यो की छान बीन समिति बनती है. इसी समिति के जांच में पाया गया कि 1612 आवेदन 2005 के बाद काबिज भूमि के थे,2368 लोगों ने निर्धारित वर्ष के पूर्व कब्जा होने का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सके.

पंचायत का बड़ा खेला

67 आवेदन में लगे दस्तावेज चौंकाने वाले थे. आवेदन में दिए गए आधार कार्ड में उल्लेख जन्म तारीख के अनुसार आवेदक का उम्र 30 से 40 वर्ष तक का है, लेकिन पंचायत प्रस्ताव और अन्य कॉलम में आवेदक को 60 से 70 वर्ष से काबिज बता दिया गया है. वन अधिकार के लिए किए गए आवेदन बताते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों ने अवैध कटाई की है, जबकि आवेदन के साथ प्रस्तुत दस्तावेज पंचायत स्तर के मिलीभगत को दर्शाता है.

उपनिदेशक सीतानदी अभ्यारण्य वरुण जैन ने कहा कि बेदखल के लिए अवैध कब्जाधारियों को लगातार नोटिस जारी किया गया है. इसरो से प्राप्त सेटेलाइट पिक्चर की मदद से वन अधिकार पट्टा के लिए आए आवेदनों को तस्दीक करते हैं. 2005 के बाद कब्जे वाले सभी के आवेदन निरस्त भी किया जा रहा है.

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