महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर में उद्धव ठाकरे एक बार फिर मजबूत स्थित में नजर आ रहे हैं। इसके संकेत हाल ही में हुए रैली में मिले, जहां ठाकरे के लिए अलग विशेष कुर्सी लोगों के लिए चर्चा का मुद्दा बन गई। इसके साथ ही सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि क्या महाविकास अघाड़ी उद्धव को विपक्ष के नेता के तौर पर पेश कर रही है? अगर ऐसा है, तो इसकी कई वजह नजर आती हैं।
हालांकि, विशेष कुर्सी के बारे में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने बताया कि पीठदर्द के कारण अलग कुर्सी लगाई गई थी। वहीं, जानकारों का मानना है कि इससे साफ हो गया है कि MVA के तमाम नेताओं के बीच उद्धव बड़े नेता बने हुए हैं। कहा जा रहा है कि खेड़ और मालेगांव में हुए बड़ी रैलियों ने संदेश दे दिए हैं कि पार्टी में फूट के बाद भी उद्धव एमवीए का नेतृत्व करते रहेंगे।
4 वजह
अन्य दलों से अलग शिवसेना का बड़ा आधार ठाकरे परिवार से जुड़ी भावनाएं हैं। कहा जाता है कि दिवंगत बाल ठाकरे को 90 के दशक में यह अहसास हुआ कि उनका संगठन मुंबई और ठाणे से आगे भी बढ़ सकता है, तो उन्होंने मराठी कार्ड के बाद हिंदुत्व विचारधारा पर बात की। परिवार के प्रति वफादारी को शिवसेना में बड़ा फैक्टर माना जाता है।
ऐसे में उद्धव सीटें जिताने में मददगार हो सकते हैं। इसके अलावा एक और वजह बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता समेत कई सदस्य अभी भी उद्धव के साथ हैं, जो संकेत देता है कि उनका संगठन आधार मजबूत है।
बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी
साल 2014 के विधानसभा चुनाव में जब शिवसेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी, तो भारतीय जनता पार्टी को भी उसकी ताकत का अंदाजा हो गया था। इधर, राज ठाकरे भी कजिन उद्धव के सामने टिक नहीं सके। अब हाल ही में आदित्य ठाकरे की रैलियों में भी काफी भीड़ देखी गई। कहा जाता है कि इसके चलते ही कांग्रेस उम्मीदवार ने पुणे (कस्बा पेठ) में जीत हासिल की।
समर्थन
कहा जा रहा है कि शिवसेना के आम कार्यकर्ताओं के बीच उद्धव के लिए समर्थन आज भी है, जो भाजपा और एकनाथ शिंदे की चिंता का विषय है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय में भी ठाकरे के लिए समर्थन में इजाफा हुआ है। बड़ी मुस्लिम आबादी वाले मालेगांव में रैली में उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।
NCP और कांग्रेस का प्लान
हाल ही में हुए कुछ चुनावों में सफलता के बाद एमवीए के साथी राकंपा और कांग्रेस भी विपक्ष के नेता के तौर पर उद्धव को आगे रख सकते हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब राकंपा प्रमुख शरद पवार ने भाजपा या शिवसेना नेता को हमले के लिए आगे किया है। इसका उदाहरण 1996 में शिवसना से कांग्रेस में आए छगन भुजवल और 2011 में भाजपा से एनसीपी में आए धनंजय मुंडे हैं।