वाशिंग्टन: वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) को थोड़ा और प्रोग्रेसिव होना चाहिए और उसे और दूसरे देशों की आवाजों को भी सुनना चाहिए. IMF की सालाना बैठक में शामिल होने और वर्ल्ड बैंक के साथ मीटिंग करने वॉशिंगटन पहुंची वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये बात कही है.
‘दूसरे देशों की भी सुने WTO’
टॉप अमेरिकी थिंक टैंक पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि WTO को दूसरे देशों को भी मौका देना चाहिए, जो सिर्फ सुनना नही बल्कि कुछ अलग कहना चाहते हैं, WTO को इन देशों के साथ न्यायसंगत होने की जरूरत है.
सीतारमण ने कहा कि ‘मैंने, सौभाग्य से या दुर्भाग्य से 2014 और 2017 के बीच भारत के वाणिज्य मंत्री के रूप में WTO के साथ कुछ समय बिताया है. इसे उन देशों की आवाज सुनने के लिए और अधिक मौका देना होगा, जिनके पास कहने के लिए कुछ अलग है, उन्हें केवल सुनना नहीं है. विश्व व्यापार संगठन के लिए आज का संदेश यही है कि उसे थोड़ा ज्यादा खुलापन को अपनाना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि – ‘वास्तव में, मैं WTO के संदर्भ में बात नहीं कर रही हूं, लेकिन अमेरिकी वाणिज्य सचिव (SIC), कैथरीन ताय के शब्दों को याद करना सही रहेगा, उन्होंने हाल ही में बात की थी और मैं बहुत, बहुत प्रभावित हुई थी. अगर मैं उन शब्द का इस्तेमाल कर सकूं, जो वास्तव में पारंपरिक व्यापारिक दृष्टिकोण है. बाजार के उदारीकरण का वास्तव में मतलब क्या है? टैरिफ कटौती के बारे में असल में इसका क्या अर्थ होना चाहिए?’
बाजार का उदारीकरण किस हद तक
निर्मला सीतारमण ने कहा कि ‘ये अब सच है, देश इसे जरूर देखते हैं. ये एक ऐसा समय है जब देश देख रहे हैं कि आप किस हद तक बाजार उदारीकरण चाहते हैं. अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ा है, और अमेरिकी सचिव वाणिज्य ने यही कहा है, और अगर ऐसा कुछ है जो संयुक्त राज्य अमेरिका की वाणिज्य सचिव महसूस करती हैं, तो मैंने 2014 और 2015 में भी ऐसा ही महसूस किया था. शायद मेरी अभिव्यक्ति को ग्लोबल मीडिया में कभी जगह नहीं मिली थी, लेकिन ग्लोबल साउथ के कई देशों में भी ऐसी ही भावना है.’
‘ये वास्तव में क्या है? उदारीकरण कहां तक है? किस हद तक टैरिफ में कमी होनी चाहिए? हम भारत में सभी कम विकसित देशों, ग्लोबल साउथ के लिए, अगर आप उनसे पूछेंगे तो अमेरिकी वाणिज्य सचिव की तरह ही राय मिलेगी, लेकिन भारत में, हमने पहले ही सभी कम विकसित देशों के लिए कोटा-फ्री, टैरिफ-फ्री ट्रेडिंग पॉलिसी बनाई है.
‘इसलिए कोई भी देश, मान लें कि अफ्रीका या कहीं से भी, प्रशांत द्वीप समूह या ऐसे देश जो आकांक्षी हैं, कम आय वाले देश इनमें से किसी भी प्रतिबंध के बिना भारत को निर्यात कर सकते हैं. इसलिए, जहां ये संभव है, हम खुल रहे हैं, लेकिन साथ ही, हमें यह देखने की जरूरत है कि भारत का पुनर्निर्माण कैसे हो गया है क्योंकि अगर आप MFN (Most-Favoured-Nation) रूट से जाते हैं, तो आप बाजार में सक्षम लोगों के लिए खुलते हैं, और वो आपका देश नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि न केवल भारत में, बल्कि कई देशों में भी समुदायों की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता नाकाम हो गई है.’
ग्लोबलाइजेशन को ज्यादा पारदर्शी बनाने की जरूरत
ग्लोबलाइजेशन को लेकर निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत ग्लोबलाइजेशन के फायदों को उलटने की कोशिश नहीं कर रहा है, बल्कि इसे और ज्यादा पारदर्शी बनाने पर जोर देने के लिए कह रहा है. बहुत लंबे समय से भारत अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. ‘हमारे पास एक बड़ा क्षेत्र है, हम फाइनल कंज्यूमर गुड्स का भी इंपोर्ट नहीं करते हैं, जिनकी मैन्युफैक्चरिंग करने में हम सक्षम हैं. हालांकि, जब कीमतों में ऊंच-नीच या कंपटीशन, जो आपके खरीद फैसलों पर असर डालते हैं, तब आप उन चीजों को खरीदना छोड़ देते हैं जो आप खुद बना सकते हैं, क्योंकि ये आपको कहीं ज्यादा सस्ता पड़ता है.
सीतारमण ने कहा कि आइए भारत में निर्माण कीजिए, केवल भारत के लिए नहीं बल्कि भारत से बाहर एक्सपोर्ट करिए, इसके लिए हम प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव स्कीम लेकर आए हैं, खासतौर पर 13 क्षेत्रों के लिए, जो कि प्रायोरिटी सेक्टर हैं, सनराइज सेक्टरक्स हैं, जिसमें भारत पहले कुछ भी प्रोड्यूस नहीं करता था. ऐसा करके भारत, इनमें से कई बड़े बल्क मैन्युफैक्चरिंग गुड्स को उत्पादन करने की उम्मीद करता है, जो कि भारत की डिमांड को पूरा करने के साथ साथ घरेलू डिमांड को भी पूरा करता है.