सचिन पायलट के तेवरों में आख़िर मिर्च-मसाला किसका? विवाद से पायलट को फायदा

जयपुर. राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के तीखे तेवर बरकरार है। पायलट ने एक बार फिर सीएम गहलोत को निशाने पर लेकर संकेत दिया है कि वह झुकने के लिए तैयार नहीं है। पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के करप्शन की जांच चाहते हैं। राजनीतिक विश्लेषक सचिन पायलट की नाराजगी के अलग-अलग सियासी मायने निकाल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट को लम्बे समय से पार्टी ने कोई पद नहीं दिया। न सरकार में और न राज्य के संगठन में। पायलट इसकी बात को लेकर नाराज बताए जा रहे हैं। हालांकि,सचिन पायलट अपनी तरफ ऐसी कोई डिमांड नहीं रखी है। लेकिन पायलट चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान उनकी मांगों पर विचार करें। पायसट संगठन में बराबर की हिस्सेदारी चाहते है। जानकारों का कहना है कि इससे पहले जब-जब सचिन पालयट ने तेवर तल्ख किए है। पार्टी आलाकमान ने उनकी मांगों के आगे झुकता रहा है। पायलट के समर्थकों को सरकार और संगठन में बड़े पद मिले हैं। अब पायलट की कवायद है कि जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में उनके समर्थकों को ज्यादा तरजीह मिले। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विवाद से पायलट को हमेशा फायदा मिलता रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों पर बहुत ज्यादा भरोसा जताते रहे हैं। क्योंकि एक तो पायलट के पास विधायकों की संख्या ज्यादा नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। ऐसे में पायलट पार्टी आलकमान से मोलभाव चाहते हैं। पायलट चाहते है कि उनके समर्थकों को संगठन में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी दी जाए। जानकारों का कहना है कि पायलट इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं। यही वजह है कि एक सप्ताह के भीतर ही दूसरी बार पायलट ने सीएम अशोक गहलोत को निशाने पर ले लिया। हालांकि, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा पायलट की हरकतों को पार्टी विरोधी गतिविधियां बता चुके हैं। लेकिन पायलट के तेवरों से लगता है कि वह झुकने के लिए तैयार नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पायलट के बढ़ते तेवरों से पार्टी आलाकमान इस पूरे विवाद को निपटाने और कांग्रेस को नुकसान से बचाने के लिए आलाकमान यह निर्णय भी कर सकता है कि पायलट को पीसीसी चीफ बना दिया जाए। वहीं 2023 चुनाव के लिए सचिन पायलट को फ्री हैंड दिया जाए। मगर इसकी संभावना कम लगती है, क्योंकि लगता नहीं पायलट इसके लिए राजी होंगे। इसके अलावा एक समस्या ये भी है कि अगर उनके नेतृत्व में पार्टी हार जाती है तो ये उनके लिए नुकसानदायक होगा। हालांकि, सीएम गहलोत पायलट को फिर से पीसीसी चीफ नहीं बनने देंगे। ऐसा माना जा रहा है।

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