World Press Freedom Day 2023: भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। हालांकि स्वतंत्र प्रेस को इंदिरा गांधी के शासन के दौरान बड़ा झटका लगा था। जब उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को 25 जून 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति घोषित करने की सलाह दी। 26 जून 1975 की तड़के ऑल इंडिया रेडियो पर इंदिरा गांधी ने कहा, राष्ट्रपति ने इमरजेंसी की घोषणा की है। घबराने की कोई बात नहीं है। देश में आंतरिक अशांति को कंट्रोल करने के लिए 21 महीने का आपातकाल लगाया गया था। जिसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया और प्रेस की स्वतंत्रता भी वापस ले ली। सभी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय समाचारों पर रोक लगाते हुए तत्कालीन पीएम ने कई विदेशी पत्रकारों और संवाददाताओं को निष्कासित कर दिया। जबकि 40 से अधिक भारतीय पत्रकारों से मान्यता वापस ले ली।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रेस पर प्रतिबंध क्यों लगाया, यह एक बहस का मुद्दा है। कई इतिहासकारों का मानना है कि उन्हें उनकी सरकार की बढ़ती आलोचनाओं से खतरा था। उन्हें डर था कि मीडिया जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का समर्थन कर रहा है। हालांकि इंदिरा ने आरोप लगाया कि विदेशी ताकतें उनकी सरकार को अस्थिर करने और देश को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। पूर्व पीएम ने अपने कदम का बचाव करते हुए कहा था कि जेपी आंदोलन के कारण देश की सुरक्षा खतरे में है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रेस पर प्रतिबंध क्यों लगाया, यह एक बहस का मुद्दा है। कई इतिहासकारों का मानना है कि उन्हें उनकी सरकार की बढ़ती आलोचनाओं से खतरा था। उन्हें डर था कि मीडिया जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का समर्थन कर रहा है। हालांकि इंदिरा ने आरोप लगाया कि विदेशी ताकतें उनकी सरकार को अस्थिर करने और देश को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। पूर्व पीएम ने अपने कदम का बचाव करते हुए कहा था कि जेपी आंदोलन के कारण देश की सुरक्षा खतरे में है।
संविधान का अनुच्छेद 19(1) (a) सभी भारतीयों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार की गारंटी देता है। हालांकि अनुच्छेद 19(2) इस स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाता है। इसमें कहा गया है कि खंड (1) के उपखंड (ए) में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा, या राज्य को कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा। जहां तक कि ऐसा कानून प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लगाता है। इंदिरा गांधी सरकार ने इसका इस्तेमाल प्रेस पर प्रतिबंध लगाने और डेढ़ साल से अधिक समय तक इसे नियंत्रित करने के लिए किया।
इंदिरा गांधी सरकार ने प्रेस को इमरजेंसी के दौरान जरूरी दिशा-निर्देश दिए थे। हिम्मत की पूर्व संपादक कल्पना शर्मा ने कहा कि मीडिया संगठनों को अफवाहों पर ध्यान न देने और मुख्य प्रेस सलाहकार की अनुमति के बाद ही स्टोरी प्रकाशित करने के लिए कहा गया था। समाचार को सेंसर करने के लिए मुख्य प्रेस सलाहकार का पद सृजित किया गया था। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के अनुसार शर्मा ने कहा, जहां खबर स्पष्ट रूप से खतरनाक है। वहां समाचार पत्र मुख्य प्रेस सलाहकार को स्वयं दबाकर उनकी सहायता करेंगे। इसके अलावा सरकार ने सरकारी विज्ञापनों के आवंटन का उपयोग करके मीडिया संगठनों, विशेष रूप से समाचार पत्रों में हेरफेर किया। उस समय न्यूज पेपर राजस्व के लिए सरकारी विज्ञापनों पर अधिक निर्भर थे। जिससे उनके लिए अपना व्यवसाय चलाना मुश्किल हो गया था। वहीं पत्रकारों को भी धमकी दी गई थी।