BSP में अंदरूनी खटपट, मायावती की चाहत अकेले लड़ें चुनाव; पार्टी सांसद कर रहे विपक्षी एकता की बात

नई दिल्ली. बहुजन समाज पार्टी की चीफ और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पहले ही साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अकेले ही मैदान में उतरेगी लेकिन उनकी ही पार्टी में नेता खासकर सांसद चाहते हैं कि पार्टी नीतीश कुमार की मुहिम में शामिल होकर उस मोर्चे के तहत 2024 का लोकसभा चुनाव लड़े।

दरअसल, इस साल के अंत तक आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। इधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी विपक्षी दलों को 2024 के चुनाव के लिए एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं। 2019 में पार्टी ने सपा संग चुनाव लड़ा था।

उत्तर प्रदेश के अमरोहा संसदीय सीट से बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने मंगलवार को 2018 में जेडीएस-कांग्रेस के शपथ ग्रहण समारोह की एक तस्वीर ट्वीट की है, जिसमें कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, मायावती, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी और अली खुद फ्रेम में हैं।

दानिश अली ने मायावती के रुख से अलग हटकर ट्वीट किया है, “कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर 2018 में इसी दिन विधान सौध बेंगलुरु में विपक्षी दलों के दिग्गजों की मेजबानी करना मेरे लिए एक यादगार क्षण था। विपक्षी एकता की आवश्यकता आज पहले से कहीं ज्यादा है। आइए हम सब एकजुट हों।”

दानिश अली ने भले ही खुलकर अपनी बात कही हो लेकिन बसपा के कुछ सांसद पर्दे के पीछे रहकर ही विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं। एक सांसद ने कहा कि विधानसभा और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन भले ही निराशाजनक रहा हो लेकिन यूपी में बसपा के 13% वोट शेयर के बिना विपक्षी एकता का कोई मतलब नहीं बनता है।

2019 में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, मायावती की बसपा और जयंत चौधरी की रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ा था। बसपा को इसका फायदा भी हुआ था। बसपा के खाते में जहां 10 सीटें आई थीं तो सपा को सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल हो सकी थी। कांग्रेस को महज एक सीट पर संतोष करना पड़ा था। राहुल गांधी अपनी पारंपरिक सीट अमेठी से हार गए थे। कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। उस चुनाव में बसपा ने 38, सपा ने 37 और रालोद ने 3 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। अमेठी और रायबरेली सीट पर गठबंधन ने उम्मीदवार नहीं उतारा था।

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