जिस प्रकार कच्ची मिट्टी को जो आकार दिया जाता है वह उसी रूप में ढल जाती है. उसी प्रकार एक व्यक्ति में बाल्यकाल से ही जो संस्कार डाल दिए जाएं, वह बड़ा होकर उसी वैचारिक धरातल पर अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है. यदि किसी व्यक्ति को बचपन से ही भूत-प्रेत का भय दिखाया जाए, जादू-टोने की बात की जाए तो वह बड़ा होकर भी अंधविश्वासी ही बना रहता है.
यह दायित्व माता- पिता एवं शिक्षक का है कि वह बालक में तर्कसंगत व वैज्ञानिक सोच को विकसित करे.भारत में अन्धविश्वास की जड़े काफी गहराई तक फैली है. अब धीरे धीरे शहरों में और युवाओं में इनको लेकर कोई विशवास नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ लोग है जो इन अंधविश्वास में आजाते है और इनसे बचने के लिए बाबा और तांत्रिक के चक्कर में पैसे बर्बाद करते रहते है.
आज हम आपको 10 ऐसे बेतुके अन्धविश्वास से रूबरू कराएंगे जिनका कोई भी मतलब नहीं है लेकिन फिर भी लोग इन्हे मान कर डरते रहते है.
दिन के वक्त, एक उल्लू को देखना अपशगुन है.
किसी समारोह में दीया बुझने का मतलब है कि वहाँ आस-पास दुष्टात्माएँ घूम रही हैं.
घर के फर्श पर छतरी गिरने का मतलब है कि उस घर में किसी का खून होनेवाला है.
बिस्तर पर टोपी रखना अशुभ है.
घंटी की आवाज़ से भूत-प्रेत भाग जाते हैं.
अगर कोई अपने जन्मदिन पर एक ही फूँक में सारी मोमबत्तियां बुझा दे तो उसकी दिल की मुराद पूरी होगी.
झाड़ू को बिस्तर पर टेककर रखने से उसमें रहनेवाली दुष्टात्माएँ बिस्तर पर अपना जादू कर सकती हैं.
काली बिल्ली रास्ता काट दे तो कुछ बुरा होने वाला है.
सीढ़ी के नीचे से गुजरना अपशगुन होता है.
अंत में
तार्किक सोच वाले लोगों को ना तो कोई बहका सकता है, न उसकी प्रतिभा का दुरुपयोग कर सकता है. जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में वह सामंजस्य करना सीखता है. वह सही और गलत की पहचान करके अपनी दिशा तय करता है. परिणामत: संपूर्ण समाज संगठित एवं सुव्यवस्थित हो जाता है.