Online Shopping: ऑनलाइन शॉपिंग का तरीका हर दूसरे यूजर को भाता है. घर बैठे मोबाइल और लैपटॉप जैसे डिवाइस की मदद से हजारों प्रोडक्ट्स में से अपनी पसंद का प्रोडक्ट चुनना और पेमेंट के दौरान डिस्काउंट ऑफर्स का फायदा उठाना यूजर को ललचाता है. एक क्लिक में डोर स्टेप डिलिवरी यूजर के लिए समय और मेहनत दोनों को बचाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं, ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट आपको अपने जाल में फंसाने के लिए ऐसी तरकीबों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे एक यूजर चाह कर भी बच नहीं पाता है.
हाल ही में कंज्यूमर मिनिस्ट्री (Ministry of Consumer Affairs) ने पॉपुलर ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट को एक लेटर लिखा है. इस लेटर में सरकार ने इन वेबसाइट्स को डार्क पैटर्न का इस्तेमाल न किए जाने की सख्त हिदायत दी है.
डार्क पैटर्न ऐसे डिजाइन तत्व हैं जो वेबसाइट पर आने वालों को जानबूझकर अस्पष्ट, गुमराह, जबरदस्ती और/या अनजाने में हानिकारक विकल्प बनाने में धोखा देते हैं. डार्क पैटर्न कई प्रकार की साइटों में पाए जा सकते हैं और कई प्रकार के संगठनों द्वारा उपयोग किए जाते हैं. वे भ्रामक रूप से लेबल किए गए बटनों के रूप में होते हैं, ऐसे विकल्प जिन्हें पूर्ववत करना मुश्किल होता है और रंग और छायांकन जैसे ग्राफिकल तत्व जो उपयोगकर्ताओं का ध्यान कुछ विकल्पों की ओर या उनसे दूर ले जाते हैं.
भारत सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग ने ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों से अपने प्लेटफ़ॉर्म के ऑनलाइन इंटरफ़ेस में ऐसे किसी भी डिज़ाइन या पैटर्न को शामिल न का आग्रह किया है जो उपभोक्ता की पसंद को धोखा दे सकता है या उसमें हेरफेर कर सकता है और डार्क पैटर्न की श्रेणी में आ सकता है.
इस विभाग ने ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म को उपभोक्ताओं की पसंद में हेरफेर करने और ‘उपभोक्ता अधिकारों’ के उल्लंघन, जैसा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(9) के तहत वर्णित है, के लिए अपने ऑनलाइन इंटरफ़ेस में डार्क पैटर्न के माध्यम से ‘अनुचित व्यापार प्रथाओं’ में शामिल न होने की सख्ती से सलाह दी है. डार्क पैटर्न में उपभोक्ताओं को उनके सर्वोत्तम हित में विकल्प न चुनने के लिए बरगलाने, विवश करने या प्रभावित करने के लिए रूपरेखा और पसंद का उपयोग करना शामिल है.
ऑनलाइन इंटरफेस में डार्क पैटर्न का उपयोग करने के द्वारा इस तरह के भ्रामक और चालाकीपूर्ण आचरण में संलग्न होने से उपभोक्ताओं के हितों का अनुचित रूप से दोहन किया जाता है और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत यह ‘अनुचित व्यापार प्रथा’ मानी जाती है.