फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार हर वर्ग के जिंदगी में खुशियों का रंग घोल रही है. रोजगार मुहैया कराकर उनके आंगन में खुशियों की बौछार कर रही है. किसानों से लेकर व्ययसायी की भी तकदीर बदली रही है. छोटे-छोटे व्यापारी भी अब सरकार की मदद से नया आयाम लिख रहे हैं. अपने हाथों से खुद की किस्मत पर खुशहाली की छाप छाप छोड़ रहे हैं. कुछ ऐसी ही तस्वीर महासमुंद से आई हैं, जो कह रही हैं अगर मेहनत लग्न से करो तो मंजिल कदम चूमती है. बुनकर परिवार आज साड़ियों से लाखों कमा रहा है. कलरफुल धागों से खुशियों की डोर बुन रहा है.
दरअसल, छत्तीसगढ़ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में हथकरघा उद्योग का रोजगार प्रदान करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है. राज्य में यह उद्योग हाथकरघा बुनाई के परम्परागत धरोहर को अक्षुण्ण बनाये रखने के साथ ही बुनकर समुदाय के सामाजिक, सांस्कृतिक परंपराओं को प्रतिबिंबित करता है.
हथकरघा उद्योग एक मुख्य कुटीर उद्योग के रूप में स्थापित है. हथकरघा उद्योग में रोजगार की विपुल संभावनाओं और हाथकरघा बुनाई की समृद्ध परम्परा, हथकरघा बुनकरों और हथकरघा उद्योग को और अधिक बढ़ावा देने के लिये शासन द्वारा विभिन्न योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित की जा रही है.
सार्वजनिक उपक्रमों में लगने वाले वस्त्र एवं रेडिमेड गारमेंट की पूर्ति छत्तीसगढ़ के बुनकरों के द्वारा उत्पादित हाथकरघा, खादी से वस्त्रों का क्रय करने का अनुरोध सभी विभागों से महाप्रबंधक छत्तीसगढ़ राज्य में हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित ने किया है.
विभागों को वस्त्र प्रदाय के लिए छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित को नोडल एजेंसी अधिकृत किया गया है. छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित रायपुर से शासकीय वस्त्र क्रय के लिये भण्डार क्रय नियम में आवश्यक प्रावधान किये गये हैं.
पूरे छत्तीसगढ़ के साथ ही महासमुंद ज़िले में सैकड़ों परिवार बुनकर एवं महिलाओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बुनाई एवं सिलाई के माध्यम से रोजगार मिल रहा है. पड़ोसी राज्य ओडिशा के अलावा महासमुंद जिले के कुछ हिस्सों में भी संबलपुरी साड़ी का उत्पादन किया जाता है. सरायपाली क्षेत्र के ग्राम अमरकोट, कसडोल सहित कई गांवों के बुनकर परिवार मिलकर हाथ से बुनाई कर संबलपुरी साड़ी बनाने का काम करते हैं.
सरायपाली के ग्राम सिंघोड़ा के संजय मेहेर 40 साल से यह परम्परागत व्यवसाय का कार्य कर रहे। उन्होंने पढ़ाई के दौरान 14 वर्ष की उम्र से बुनकर का काम शुरू किया था. आज उन्हें अपने इस काम में महारथ हासिल है. वे अपने इस बुनकर काम को बखूबी कर अपनी आर्थिक स्थिति पहले से बहुत मज़बूत कर ली है.
वह कहते है कि अपने बुनकर के हुनर से ज़मीन, मकान बनवा लिया है. उनके दादा और पिताजी भी इसी कार्य से जुड़े थे. तब वह ओड़िया साड़ी दो नग टाई-डाई साड़ी बुनकर घूम-घूम कर शहर, गांव और देहात में बेचा करते थे.
अब वह 1000 से 10000 टाई-डाई तक की विभिन्न डिजाइन की हाथ से बुनी संबलपुरी साड़ी बनाने का काम करते है. इस प्रक्रिया से साड़ी बनने तक एक सप्ताह तक का समय लग जाता है. हाथ से बनी संबलपुरी साडिय़ों हजारों रुपए में बाजार में बिकती है.
आज पहले के मुक़ाबले साड़ी की क़ीमत अच्छी मिल रही है. आज 2500-3000 तक एक साड़ी पर आसानी से मिल जाते हैं. अब कही शहर,गांव में बिक्री के लिए नहीं घूमना पड़ता. आसानी से यही से बिक जाती है. अब यह कला न केवल सरायपाली के लोगों के जीविकोपार्जन का साधन है, बल्कि एक पूरे इलाके की अलग पहचान भी बन गया है.