केजरीवाल सरकार अध्यादेश पर तुरंत चाहती थी रोक, क्यों सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार; क्या दलीलें

नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को राजधानी में अधिकारियों के तबादले और तैनाती से जुड़े अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की ओर से जारी इस अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाने को लेकर फिलहाल किसी तरह का आदेश पारित नहीं किया।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करते हुए केंद्र से जवाब मांगा है। दिल्ली सरकार ने इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए, इसे रद्द करने की मांग की है। साथ ही, याचिका का निपटारा होने तक इस अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की है। अगली सुनवाई पर पक्ष रखने का आदेश पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए केंद्र सरकार को अगली सुनवाई पर अपना पक्ष रखने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 17 जुलाई तय की है। उपराज्यपाल को पार्टी बनाने को कहा पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी को याचिका में संशोधन करने और मामले में उपराज्यपाल को भी पक्षकार बनाने को कहा है।

सुनवाई के दौरान दलील दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा कि केंद्र का यह अध्यादेश दिल्ली के मुख्य सचिव को, दिल्ली की चुनी हुई सरकार की अवहेलना करने की छूट देता है। उन्होंने पीठ से कहा कि ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज आदि द्वारा नियुक्त किए गए स्वतंत्र सलाहकारों को उपराज्यपाल ने हटा दिया। उन्होंने कहा कि इस अदालत ने कितनी बार संसद के अधिनियम पर रोक लगाई है, अध्यादेश की तो बात ही छोड़िए? संविधान पीठ के फैसले को कैसे रद्द किया जा सकता है। यह दलील देते हुए सिंघवी ने अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की।

इस पर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि सलाहकारों को हटाने का फैसला कुछ चौंकाने वाले तथ्यों पर आधारित था। उन्होंने पीठ को बताया कि कुछ चौंकाने वाले तथ्य हैं, जिनके आधार पर सलाहकारों को हटाया गया। इसके बाद सिंघवी ने कहा कि इस पर रोक लगाई जाए क्योंकि वेतन रोक दिया गया है। इस पर मेहता ने कहा कि किसी सलाहकार ने कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया है। इस पर सिंघवी ने कहा कि मैं (दिल्ली सरकार) उनका नियोक्ता हूं। मैंने संपर्क किया है।

यह है मामला
केंद्र सरकार ने ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले, तैनाती को लिए प्राधिकरण गठित करने के उद्देश्य से 19 मई को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023’ जारी किया। केंद्र द्वारा अध्यादेश जारी करने से एक सप्ताह पहले ही शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया।

दिल्ली सरकार का तर्क
दिल्ली सरकार ने याचिका में कहा कि यह अध्यादेश ‘कार्यकारी आदेश का असंवैधानिक इस्तेमाल’ है जो शीर्ष अदालत और संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करने का प्रयास करता है। सरकार ने अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम फैसला आने तक इस पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की है। सरकार ने कहा कि अध्यादेश दिल्ली में कार्यरत सिविल सेवकों का नियंत्रण, चुनी हुई सरकार से छीनकर अनिर्वाचित उपराज्यपाल को दे देता है।

केंद्र को सुनना जरूरी
शीर्ष अदालत ने अध्यादेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा, यह गंभीर मसला है, केंद्र का पक्ष सुने बगैर आदेश पारित नहीं कर सकते।

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