बेंगलुरु में हुई बैठक से बदल गई कांग्रेस की फिजा, ड्राइविंग सीट पर कब्जा; कैसे बढ़ेगा सफर

नई दिल्ली. बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक में यह तो तय हो गया है कि इस गठबंधन की ड्राइविंग सीट कांग्रेस को ही मिलने जा रही है। बीते 9 सालों में राजनीतिक उतार-चढ़ाव की गवाह रही कांग्रेस एक बार फिर विपक्ष में यह रुतबा हासिल कर लेगी, कुछ समय पहले तक किसी को यकीन नहीं था। हालांकि बेंगलुरु की बैठक ने साबित कर दिया कि एक छाते के नीचे राज्यों में भिड़ने वाले दलों को भी साथ लाना केवल कांग्रेस के लिए ही संभव था। विपक्षी एकता की कवायद पर गौर करें तो ममता बनर्जी और नीतीश कुमार काफी पहले से ऐक्टिव थे। हालांकि कांग्रेस ने कभी किसी और के नेतृत्व में आगे बढ़ना स्वीकार नहीं किया था।

ममता बनर्जी भी करने लगीं राहुल गांधी की तारीफ
एक समय था जब राहुल गांधी ममता बनर्जी को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. वहीं बेंगलुरु की बैठक में ममता बनर्जी ने राहुल गांधी को ‘हम सबके चहेते राहुल जी’ कहकर संबोधित किया। इसके अलावा ममता बनर्जी मीटिंग से इतर आधे घंटे तक सोनिया गांधी से खड़े-खड़े ही बात करती रहीं। हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस और टीएमसी के कार्यकर्ता भिड़े हुए थे। बावजूद इसके कांग्रेस की रणनीति रंग लाई और ममता बनर्जी ने अपने गिले-शिकवे छोड़कर विपक्षी एकता गठबंधन (INDIA) का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया।

बंगाल में विधानसभा के चुनाव के बाद ममता बनर्जी की भाजपा विरोधी छवि और मजबूत हो गई थी। इसके बाद ममता बनर्जी और नीतीश कुमार दोनों ने ही देशभर में विपक्ष को साथ लाने का अभियान शुरू किया। एक तरफ नीतीश कुमार ने नेताओं से मिलना शुरू किया तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने। उस दौरान ऐसा लगता था कि ममता बनर्जी कांग्रेस को अलग करके विपक्ष का गठबंधन बनाना चाहती हैं। लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस को मिला समर्थन असर दिखाने लगा। कांग्रेस को एनसीपी, शिवसेना (यूबीटी) और अन्य कई दलों का समर्थन मिला तो ममता को शांत होना पड़ गया।

पटना की बैठक में भी कांग्रेस ने दिखाई अपनी अहमियत
कांग्रेस की रणनीति की खास बात यह रही कि उसने कभी अपनी अहमियत कम करने पर सहमित नहीं जताई। पहली बार जब बिहार में विपक्षी दलों की बैठक रखी गई तो कांग्रेस ने आने से इनकार कर दिया। हुआ यह कि बैठक ही कैंसल करनी पड़ गई। बाद में दूसरी तारीख तय की गई तो मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी पहुंचे। इससे साबित होता है कि कांग्रेस के बिना विपक्षी गठबंधन अधूरा रह जाता, इसका अंदाजा सभी दलों को हो गया था। ऐसे में कांग्रेस को साथ लेकर चलना ही चारा था। लेकिन दूसरी बैठक की मेजबानी कांग्रेस ने की और फिर तो फिजा ही बदल गई। अब यही कहा जा रहा है कि INDIA गठबंधन का नेतृत्व सोनिया गांधी के हाथ में रहेगा।

कैसे विपक्षी एकता के छाते के नीचे आए अरविंद केजरीवाल
विपक्षी मोर्चा बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल को साधना सबसे टेढ़ी खीर दिखाई दे रहा था। हालांकि नीतीश कुमार की पहल रंग लाई और फिर केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस के साथ देने के वादे के बाद आम आदमी पार्टी भी साथ आ गई। भले ही दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भिड़ते रहे हों लेकिन वे आम चुनाव के लिए एक छाते के नीचे आ खड़े हुए। इसके पीछे भी कांग्रेस की ही रणनीति बताई जाती है। कांग्रेस को पता था कि उसके लिए अरविंद केजरीवाल को सहमत कराना मुश्किल है इसलिए नीतीश कुमार के सहारे यह काम किया गया।

बेंगलुरु की बैठक के बाद यह तो क्लियर हो गया कि राज्यों में विरोध के बावजूद सभी 26 दल महागठबंधन में कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार हैं। अब अगली बैठक मुंबई में होनी है। यहां एनसीपी समेत महाविकास अघाड़ी के दल बैठक की मेजबानी करेंगे। इस बैठक में भी कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा। अब मुश्किल केवल चुनाव से पहले सीट शेयरिंग या फिर पीएम पद के दावेदार को लेकर आ सकती है। हालांकि अगर रणनीति अच्छी रही तो कांग्रेस इसमें भी बाजी मार ले जाएगी। हार और जीत का फैसला तो चुनाव के बाद होगा पर यह तय है कि कांग्रेस अपना रुतबा वापस पाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

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