नई दिल्ली: रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अंतरिक्ष एजेंसी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक अंतरिक्ष यान उतारने का प्रयास कर रही है, यह एक ऐसा मिशन है, जो भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ा सकता है और चंद्रमा पर पानी और बर्फ के बारे में विस्तार से जानकारी दे सकता है, जो संभवतः चंद्रमा के सबसे मूल्यवान संसाधनों में से एक है.
यहां हम आपको चंद्रमा पर जमे हुए पानी की मौजूदगी के बारे में बताने जा रहे हैं . इसके साथ ही हम आपको बताएंगे कि क्यों अंतरिक्ष एजेंसियां और प्राइवेट कंपनियां इसे मून कॉलोनी, लूनर माइनिंग और मंगल ग्रह के संभावित मिशन की प्रमुख कड़ी के रूप में देखती हैं.
1960 के दशक की शुरुआत में, पहली अपोलो लैंडिंग से पहले, वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि चंद्रमा पर पानी मौजूद हो सकता है.
1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में अपोलो क्रू द्वारा एनालिसिस के लिए लौटाए गए नमूने सूखे प्रतीत हुए.
2008 में, ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने नई टेक्नोलॉजी के साथ उन लूनर सैंपल का दोबारा निरीक्षण किया और वॉल्केनिक ग्लास के छोटे मोतियों के अंदर हाइड्रोजन पाया.
2009 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्रयान-1 जांच पर नासा के एक उपकरण ने चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाया.
उसी साल नासा के एक अन्य जांच दल, जो दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा, को चंद्रमा की सतह के नीचे पानी की बर्फ पाई गई.
नासा के पहले के मिशन, 1998 के लूनर प्रॉस्पेक्टर में इस बात के प्रमाण मिले थे कि पानी में बर्फ की सबसे अधिक कॉन्सनट्रेशन साऊथ पोल के छायादार गड्ढों में थी.
चंद्रमा पर पानी क्यों महत्वपूर्ण है?
वैज्ञानिकों को चंद्रमा पर मौजूद सदियों पुराने पानी और बर्फ के क्षेत्रों में अधिक रुचि है, क्योंकि वे लूनर वॉल्केनिक और धूमकेतु द्वारा पृथ्वी पर पहुंचाई गई सामग्री और महासागरों की उत्पत्ति के बारे में बता सकते हैं. यदि चंद्रमा पर पानी/बर्फ पर्याप्त मात्रा में मौजूद है, तो यह पीने के पानी का स्रोत हो सकता है. इसके साथ ही चंद्रमा की खोज के लिए और उपकरणों को ठंडा करने में मदद मिल सकती है. इसे ईंधन और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन के लिए हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए भी तोड़ा जा सकता है, जिससे मार्स या लूनर माइनिंग मिशन में समर्थन मिल सकता है.
कोई भी देश चंद्रमा पर अपने स्वामित्व का दावा नहीं कर सकती
1967 की यूनाइटेड नेशन आउटर स्पेस संधि किसी भी देश को चंद्रमा पर अपने स्वामित्व का दावा करने से रोकती है. ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो कि कमर्शियल ऑपरेशन को रोक देगा. चंद्रमा की खोज और उसके संसाधनों के उपयोग के लिए सिद्धांतों का एक सेट स्थापित करने के लिए अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रयास आर्टेमिस समझौते पर 27 हस्ताक्षरकर्ता हैं. चीन और रूस ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं.
साउथ पोल पर लैंडिंग जटिल क्यों?
चंद्रमा पर लैंडिंग के प्रयास पहले भी विफल रहे हैं. इस सप्ताह रूस का लूना-25 क्राफ्ट दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला था, लेकिन रविवार को वह नियंत्रण से बाहर हो गया और क्रैश हो गया. पिछला भारतीय मिशन 2019 में चंद्रयान -2 द्वारा लक्षित क्षेत्र के पास सुरक्षित रूप से उतरने में विफल रहा था. संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों ने साउथ पोल के लिए मून मिशन की योजना बनाई है.