अंबिकापुर. छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को हाईकोर्ट बिलासपुर से बड़ी राहत मिली है। तरूनीर संस्था द्वारा अंबिकापुर के सत्तीपारा में स्थित शिवसागर तालाब व मौलवी बांध में सिंहदेव परिवार के स्वामित्व की भूमि को लेकर हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल जनहित याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
अंबिकापुर विधायक व छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के अधिवक्ता संतोष सिंह के साथ उनके कानूनी सलाहकार डॉ जेपी श्रीवास्तव, हेमंत तिवारी ने बताया कि शिवसागर तालाब व मौलवी बांध के खसरा क्रमांक 3467, रकबा 52.6 एकड़ व खसरा क्रमांक 3385 रकबा 2.14 एकड़ कुल 54.20 एकड़ भूमि इन्वेंट्री में राजपरिवार के नाम दर्ज है। यह 54.20 एकड़ भूमि में से सिर्फ 21 एकड़ भूमि ही जलस्रोत के रूप में उपयोग हो रहा था। शेष 33 एकड़ भूमि का मद परिवर्तन करने के लिए टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर सरगुजा को वर्ष 1995 में आवेदन दिया गया था। कलेक्टर सरगुजा द्वारा राजस्व विभाग की टीम गठित कर इसकी जांच कराई गई। कलेक्टर सरगुजा ने पांच नवंबर 1996 के आदेश द्वारा जलक्षेत्र 21 एकड़ को छोड़कर शेष 33.18 एकड़ भूमि का मद परिवर्तित कर दिया गया था। अधिवक्ताओं ने बताया कि इस आदेश के 20 वर्ष बाद तरूनीर समिति के अध्यक्ष कैलाश मिश्रा द्वारा 08 दिसंबर 2016 व 11 अगस्त 2017 को कलेक्टर सरगुजा के समक्ष शिकायत की गई। समिति के एक पदाधिकारी विशाल राय ने राज्य शासन से 24 अक्टूबर 2016 को शिकायत कर इसकी जांच कराए जाने की मांग की थी।
शिकायत में टीएस सिंहदेव व उनके परिवार के सदस्यों पर आरोप था कि उनके द्वारा अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए गलत ढंग से तालाब की भूमि को अपने नाम से दर्ज कराकर क्रय-विक्रय किया जा रहा है। तत्कालीन कलेक्टर भीम सिंह द्वारा इसकी विधिवत तरीके से जांच कराई गई और जांच में पाया गया कि इसमें किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। तालाब का 21 एकड़ यथावत पाया गया।
इसका प्रतिवेदन 22 फरवरी 2017 को राज्य शासन को भेज दिया गया था। उक्त भूमि की जांच रिपोर्ट के पश्चात् भूमि के मद परिवर्तन को लेकर भाजपा नेता आलोक दुबे ने एनजीटी भोपाल में प्रकरण क्रमांक 06/19 प्रस्तुत किया गया। एनजीटी भोपाल ने उक्त भूमि का व्यपवर्तन विधिवत करना पाए जाने पर प्रकरण सात मार्च 2019 को खारिज कर दिया था। एनजीटी ने आलोक दुबे के पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया था। आलोक दुबे ने इस आदेश के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 27 अगस्त 2021 को खारिज कर दिया था।
इधर तरूनीर समिति के उपाध्यक्ष किशन मधेशिया ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हाईकोर्ट बिलासपुर में जनहित याचिका पेश की थी, जिसमें उन्होंने जलस्रोत की भूमि का लैंड यूज बदले जाने को लेकर चुनौती दी थी। अधिवक्ता संतोष सिंह ने बताया कि तरूनीर समिति ने एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तथ्यों को छिपाकर याचिका प्रस्तुत किया गया था। हाईकोर्ट बिलासपुर ने कहा कि यह याचिका व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रस्तुत किया गया है, जनहित का नहीं है।