नई दिल्ली । कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की जाति जनगणना की मांग और बिहार में इसतरह की कवायद के बाद 84 फीसदी लोगों के ओबीसी, एससी और एसटी होने की बातों को चिन्हिंत करना वास्तव में भाजपा के हिंदू वोट को तोड़ने की एक चाल है। कांग्रेस नेता की मांग राजद, जद (यू) और समाजवादी पार्टी जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों के क्षेत्रिय क्षत्रपों की पुरानी रणनीति को ही एक स्टेप आगे ले जाने की कवायद है।
हिंदी बेल्ट की पार्टियां हिंदू मतदाता एकीकरण को तोड़ने और मंडल राजनीति युग को वापस लाने के लिए जाति जनगणना की मांग करते रहे हैं। इसतरह से इन्हें लुभाने वाले दल वापस अपने पाले में लाना चाहते हैं।
भाजपा की राजनीति इसके विपरीत रही है, विभिन्न योजनाओं और हिंदुत्व के कमंडल के साथ-साथ कोर राष्ट्रवाद के माध्यम से सभी जातियों को कल्याण-वाद की एक छतरी के नीचे जोड़ा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ लोग देश को जाति के नाम पर बांटना चाहते हैं। राहुल गांधी ने सबसे पहले साल की शुरुआत में कर्नाटक चुनाव के दौरान कोलार की अपनी रैली में जाति जनगणना का मुद्दा उठाया था। पिछले हफ्ते उन्होंने कहा था कि जाति जनगणना देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा है और अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तब पहला कदम उठाएगी।
याद हो कि कांग्रेस 2011 में विचार करने तक लगभग 60 वर्षों तक इस तरह के अध्ययन के खिलाफ रही थी, जिस पर भी प्रकाश नहीं डाला गया। इसका उदाहरण लें और गौर करें कि 1951 और 2011 के बीच, जवाहरलाल नेहरू जैसे कांग्रेसी प्रधानमंत्री जाति जनगणना के खिलाफ थे, जबकि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। भारत में आखिरी बार जाति जनगणना अंग्रेजों द्वारा हुई थी। 2011 में भी, यह राजद जैसे कांग्रेस के सहयोगी ही थे जिन्होंने जाति जनगणना कराने के लिए यूपीए पर दबाव डाला, जिससे कांग्रेस की दशकों से ऐसा न करने की घोषित नीति की स्थिति पलट गई। 2011 में पी चिदंबरम, आनंद शर्मा और पवन कुमार बंसल जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने जाति जनगणना पर आपत्ति जाहिर की थी और मंत्रियों का एक समूह (जीओएम) इस पर कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा।
4,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाले सर्वेक्षण को पूरा करने में पांच साल लगे लेकिन इसमें तकनीकी खामियां थीं और यह कभी सार्वजनिक नहीं हुआ। कर्नाटक में 2015 में कमीशनिंग के बावजूद, 2018 तक सिद्धारमैया ने जाति जनगणना रिपोर्ट जारी नहीं की। उन्होंने अभी तक अपने वर्तमान कार्यकाल में इस सार्वजनिक नहीं किया है। इसके बजाय मोदी सरकार ने सभी के लिए सामाजिक कल्याण लाभ लागू किए हैं, और कुछ अनुमानों के अनुसार, ओबीसी सहित पिछड़े समूहों को इससे सबसे अधिक लाभ हुआ है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि अभी देश में तथाकथित 50 प्रतिशत अनारक्षित पाई भी उच्च जातियों के लिए आरक्षित नहीं है, लेकिन पिछड़े समुदाय भी ओबीसी के लिए लगभग 50 प्रतिशत आरक्षित पाई के अलावा इसके लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।