ग्वालियर। जैसे ही शनिवार शाम भाजपा की प्रत्याशियों की पांचवीं सूची जारी हुई लंबे समय से चंबल सहित मध्य प्रदेश में चल रही उस चर्चा पर भी पूर्ण विराम लग गया, जिसमें लोग एक दूसरे से पूछ रहे थे कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को किस सीट से भाजपा चुनाव मैदान में उतारेगी। 25 वर्षों में यह पहली बार है कि सिंधिया घराने का कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं है।
जब से पहली सूची में केंद्रीय मंत्री और सांसदों को उतारा गया तभी से हर गली-चौपाल पर चुनावी चर्चा में बस एक ही चर्चा थी कि महाराज यानी ज्योतिरादित्य कहां से उतारे जाएंगे। इस बीच यशोधरा राजे के विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद यह चर्चा और तेज हो गई कि इस चुनाव में महल(सिंधिया आवास) से कौन चुनाव लड़ेगा। वह इसलिए भी क्योंकि यहां की राजनीति महल से हमेशा से ही प्रभावित रही है।
इंटरनेट मीडिया पर तैर रही प्रत्याशियों की तमाम असली-नकली सूचियों में यहां के लोग सबसे पहला नाम ढूंढ रहे थे … सिंधिया। उनके समर्थकों और विरोधियों में एक ही उत्सुकता थी कि जब इस बार रण में भाजपा ने मुख्यमंत्री के दावेदार हर चेहरे को चुनाव में उतार दिया है तो फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम क्यों नहीं है।
अब जबकि सिंधिया चुनावी रण में नहीं हैं तो समर्थकों को डर है कि उनके प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं भी कमजोर पड़ जाएंगी और वह दिल्ली के नेता ही कहलाएंगे। सिंधिया के समर्थकों का यह डर कुछ हद तक सही भी हो सकता है।
महल से जुड़े लोग या समर्थक इस बार किसी भी कीमत पर उन्हें किसी मुश्किल सीट पर नहीं देखना चाहते थे। शिवपुरी के अलावा सिंधिया के पास ग्वालियर शहर की दो सीटें दक्षिण और पूर्व भी विकल्प के रूप में मौजूद थीं। समर्थक चाहते थे कि ज्योतिरादित्य दक्षिण से चुनाव लड़ें क्योंकि पिछली बार यहां भाजपा महज 121 वोटों से चुनाव हारी थी। साथ ही यहां मराठा वोट भी अधिक संख्या में हैं। ग्वालियर पूर्व से महापौर के पति और कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार टक्कर दे सकते थे।
सिंधिया परिवार के चुनाव लड़ने की ऊहापोह के बीच कांग्रेस ने फ्रंट फुट पर आकर शिवपुरी में जो शाट खेला उससे भी महल की मुश्किलें बढ़ गई थीं। दरअसल शिवपुरी की परंपरागत सीट महल के कब्जे में रही है। 25 वर्षों से खुद ज्योतिरादित्य की बुआ यशोधरा राजे चुनाव लड़ रही थीं।