सुब्रत रॉय: स्टॉक मार्केट में एंट्री की कोशिश से शुरू हुआ था बुरा दौर, यूं गर्दिश में आए सितारे

Sahara Journey: देश के दिग्गज कारोबारी और सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय का 75 साल की उम्र में निधन हो गया। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों को बचत की सीख देने वाले सुब्रत रॉय की जर्नी काफी उतार-चढ़ाव वाली रही है। क्रिकेट मैदान से बॉलीवुड के पेज थ्री तक अपनी छाप छोड़ने वाले सुब्रत रॉय के सितारे प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO) की चाहत की वजह से गर्दिश में आए।

दरअसल, सितंबर 2009 में सेबी को प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO) के लिए आवेदन मिला। शेयर बाजार को रेग्युलेट करने वाली संस्था सेबी के पास यह आवेदन देने वाली कंपनी सहारा समूह की ‘सहारा प्राइम सिटी’ थी। इसके अगले महीने यानी अक्तूबर 2009 में सहारा समूह की दो और कंपनियां- सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाऊसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने भी कंपनी रजिस्ट्रार के पास आईपीओ (रेड हेरिंग प्रोस्पेक्टस) की अर्जी दी। एक साथ 3 आईपीओ के जरिए सहारा समूह शेयर बाजार में एंट्री करना चाहता था लेकिन किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि यही फैसला समूह के पतन की कहानी लिख देगा।

क्रिकेट मैदान पर टीम इंडिया की जर्सी हो या आसमान में उड़ती एयरलाइन या फिर पेज थ्री पार्टी, हर तरफ सहारा का जलवा था। सहारा ने रियल एस्टेट, मीडिया, एंटरटेनमेंट, एविएशन, होटल, फाइनेंस समेत कई बड़े सेक्टर में अपना मुकाम हासिल किया। इस दौरान ना सिर्फ ग्लैमर और सियासत की दुनिया में पैठ जमाई बल्कि छोटे-छोट शहरों तक पहुंच बनाई। सहारा ने उन लोगों को भी बचत करने की सीख दी, जो इसकी परवाह भी नहीं करते थे। छोटे-बड़े हर वर्ग को अपनी आकर्षक ब्याज दर और आसानी से निवेश करने के माध्यम की बदौलत बहुत कम समय में सहारा ने लोगों का भरोसा जीत लिया। अब सहारा समूह का सपना शेयर बाजार में एंट्री का था। इसी सपने को पूरा करने के लिए सहारा की तीन कंपनियों ने सेबी को आईपीओ के लिए अपने दस्तावेज दिए। आपको यहां बता दें कि किसी कंपनी की शेयर बाजार में लिस्टिंग होती है तो उसकी प्रक्रिया आईपीओ लाने की होती है। आईपीओ के जरिए कंपनी में आम लोगों को भी शेयरों को खरीदने का मौका मिलता। सहारा का मकसद भी इसी तरह बाजार में एंट्री का था लेकिन यहीं से मामला बिगड़ता चला गया।

सितंबर-अक्टूबर 2009 में सेबी के पास सहारा की कंपनियों के दस्तावेज पहुंचे। सेबी इन दस्तावेजों की जांच कर रहा था तभी सहारा की दो कंपनियां सवालों के घेरे में आ गईं। इन शिकायतों में गैर-कानूनी तरीके से निवेशकों के साथ आर्थिक लेन-देन का जिक्र किया गया। इसके बाद सेबी एक्टिव मोड में आ गया और बाद की जांच में ये बात सामने आई कि सहारा समूह ने निवेशकों से धन जुटाने के लिए जो तरीका अपनाया उसके लिए सेबी की आज्ञा जरूरी था, जिसका पालन नहीं किया गया। सेबी ने आईपीओ पर रोक लगाई तो सहारा समूह से जवाब भी मांगा। जवाब से असंतुष्ट सेबी ने सहारा की दो कंपनियों से निवेशकों से जुटाए गए फंड वापस करने को कहा। यहीं से सहारा और सेबी के बीच तनातनी भी शुरू हो गई। यह मामला अलग-अलग अदालतों में गया लेकिन आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने भी सहारा से निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपए सेबी में जमा करवाने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा से इस राशि को तीन किस्तों में जमा करवाने का विकल्प दिया। हालांकि, सहारा तीनों किस्तें जमा कराने में असफल रहा तब सेबी ने सहारा समूह के बैंक खाते फ्रीज करने और जायदाद को जब्त करने के आदेश जारी किए। सेबी के बार-बार कहने के बावजूद सहारा ने आदेशों का पालन नहीं किया। एक बार फिर मामला सुप्रीम कोर्ट गया। इस बार सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के खिलाफ अपील की। इसके साथ ही देश छोड़कर जाने की इजाजत नहीं देने को कहा।

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