रायपुर – ” क्रिया योग – संतुलित जीवन की कुंजी” विषय पर 3 दिसंबर रविवार को चौबे कॉलोनी रायपुर स्थित महाराष्ट्र मण्डल में संध्या 5 से 7 बजे तक सार्वजनिक व्याख्यान का आयोजन होने जा रहा है। जिसके वक्ता स्वाकी अच्युतादंद गिरि वायएसएस सन्यासी होगें। इसी किताब ने मशहूर क्रिकेटर विराट कोहली की जिंदगी बदल दी । इसके प्रशंसक न सिर्फ सिने अभिनेता रजनीकांत और स्व स्टीव जॉब्स रहे हैं बल्कि देश विदेश में इस बुक के हजारों प्रशंसक एवं अनुकरण करने वाले हैं ।
विदित हो कि योगी कथामृत के लेखक श्री श्री परमहंस योगानंद हैं जिन्होंने ध्यान और योग विषय पर अपने विचारों एवं अनुभवों को समेटा है।
स्वामी परमहंस योगानंद बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार-प्रसार किया । योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानंद प्रथम भारतीय गुरू थे जिन्होंने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया । योगानंद ने 1920 में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। इसके लिए अमेरिका के लॉस एंजिल्स में अपना मुख्यालय खोला एवं संपूर्ण अमेरिका में अनेक यात्राएं की । उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरंतर विश्वव्यापी कार्य को सार्थक दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत की लाखों प्रतियां बिकी और वह सर्वाधिक बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही । विश्व के कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ है, अपने श्रेणी में विश्व की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब है। इसे एप्पल के संस्थापक स्व स्टीव जॉब्स कई बार पढ़ चुके हैं।
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योगी कथामृत और योगानंद जी के बारे में दुनिया की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली आध्यात्मिक किताबों में से एक है ऑटोबायोग्रफी ऑफ ए योगी। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के महानतम योगियों में से एक परमहंस योगानंद की आत्मकथा 1946 में छपी थी। इसके हिंदी संस्करण का नाम है योगी कथामृत। इंडिया जर्नल ने इसके बारे में कहा था – यह एक ऐसी पुस्तक है जो मन और आत्मा के द्वार खोल देती है। किताब की खासियत है कि यह योगियों के बारे में खुद एक योगी द्वारा लिखी गई किताब है।
इस महान योगी की आत्मकथा की यात्रा पर आगे बढऩे से पहले ज़रूरी है उनकी मृत्यु के एक वाकये का जि़क्र। यह उनकी योगी के तौर पर पूरी जि़ंदगी की गई कमाई की एक झलक है। लॉस एंजिलिस में 7 मार्च 1952 को भारतीय राजदूत बिनय रंजन सेन के सम्मान में हुए भोज के अवसर पर अपना भाषण खत्म करने के बाद संत परमहंस योगानंद ने महासमाधि में प्रवेश किया। फॉरेस्ट लॉन मेमोरियल पार्क में उनके पार्थिव शरीर को अस्थायी रूप से रखा गया था। इस पार्क के निदेशक हैरी टी. रोंवे के अनुसार, मृत्यु के 20 दिन बाद भी न तो उनकी त्वचा का रंग बदला और न उनके शरीर के तंतुओं में कोई शुष्कता आई। उनके मुख की आभा ज्यों की त्यों रही। ऐसा अद्भुत वाकया उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था।
क्यों कहा जाता है योगानंद जी को फादर ऑफ योगा
योगानंदजी को पश्चिमी देशों में फादर ऑफ योगा कहा जाता है । उनके प्रयासों ओर कार्यों से आज क्रिया योग पूरे संसार में फैल चुका है और उसका विस्तार लगातार हो रहा है । योगानंदजी और उनकी संस्था के सम्मान में भारत सरकार ने सबसे पहले सन् 1977 में पहली बार और 7 मार्च 2017 को दूसरी बार डाक टिकट जारी किये गये।