परंपरा-शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों में आज भी परंपरा का निर्वहन

बिलासपुर। वसंत पंचमी के दिन से फाग उत्सव शुरू हो जाता है। इस दिन से होली से जुड़े गीत ना केवल प्रारंभ हो जाते हैं वरन गीत गाने के साथ ही लोग तरह-तरह के वाद्ययंत्रों की धुन पर थिरकने लगते हैं। यह परंपरा शहरी व ग्रामीण अंचलों में आज भी कायम है। फाग का जब रंग लोगों पर चढ़ता है तब अबीर गुलाल भी उसी अंदाज में उड़ने लगता है। राधाकृष्ण के प्रेम को गायक अपने अंदाज में गाते हैं और साथी उसी अंदाज में अपनी मस्ती में झूमते और गाते रहते हैं। छत्तीसगढ़ में इस परंपरा का निर्वहन आजतलक जारी है। पुरानी और नई दोनों पीढ़ी इसे अपने अंदाज में मनाने में पूरा भरोसा रखते हैं। फाग की खास बात ये कि इसमें पीढ़ी का अंतर दिखाई नहीं देता। नई हो या फिर पुरानी पीढ़ी,फाग की टोली में जब रमते हैं और रंग गुलाल उड़ता है तब सब एक रंग में डूब जाते हैं। तब यह रंग राधा कृष्ण के प्रेम का रंग होता है। होली के अवसर पर फाग की टोली के बीच गाया जाने वाला एक लोकगीत है। सामान्य रूप से फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है। इन्हें शास्त्रीय संगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है। फाग में गायन के साथ ही राधाकृष्ण के प्रेम के बहाने भक्ति भाव में डूबते इतराते रहते हैं। भक्ति प्रेम की बयार ऐसी चलती है कि जब तक वाद्ययंत्रों के साथ गायक प्रेम की गीत गाते हैं तब तक टोली में शामिल युवा हो या फिर बुजुर्ग झूमते रहते हैं। तब पीढ़ी का अंतर भी समाप्त हो जाता है और एकाकर नजर आते हैं।

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