नया शोध भारत की नदी जोड़ो परियोजना पर नए संदेह पैदा करता है

इस साल अक्टूबर में भारतीय वन विभाग ने केन नदी से पानी स्थानांतरित करने की एक परियोजना को अंतिम मंजूरी दे दी, यह मध्य प्रदेश राज्य से होकर पास की बेतवा नदी में बहती है। केन-बेतवा नदी इंटरलिंक, जिसमें केन पर बांध बनाना और बेतवा के लिए एक नहर बिछाना शामिल होगा, 30 प्रस्तावित नदी इंटरलिंक में से पहला माना जाता है, जो भारत की नदी प्रणालियों को मूल रूप से बदल देगा।

मूल रूप से इस विचार की संकल्पना 19वीं शताब्दी में एक ब्रिटिश जनरल और सिंचाई विभाग के इंजीनियर आर्थर कॉटन ने की थी। कॉटन ने बेहतर सिंचाई और नौवहन को सक्षम बनाने के लिए भारत की सभी प्रमुख नदियों को जोड़ने का सुझाव दिया, और इसे देश के एक हिस्से में बाढ़ आने की विरोधाभासी घटना के रूप में देखा गया, जबकि अन्य क्षेत्रों को सूखे का सामना करना पड़ा।

आजादी के बाद जलविद्युत बांधों सहित बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए आधिकारिक उत्साह के बावजूद इस विशेष दृष्टिकोण को कोई महत्व नहीं मिला। 1980 में सिंचाई मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत शामिल) ने ‘जल अधिशेष बेसिनों से पानी की कमी वाले बेसिनों में पानी स्थानांतरित करने के लिए’ एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की, लेकिन सरकार की ओर से आगे इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

हालांकि, 2002 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इसका उल्लेख करते हुए एक भाषण दिया था। इस भाषण के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील, रंजीत लाल ने सितंबर 2002 में एक जनहित याचिका दायर की, और अदालत ने तुरंत एक फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया परियोजना में तेजी लाई जाए।

गुप्त आंकड़ों के आधार पर लिए गए निर्णय

2012 में, सुप्रीम कोर्ट इस पर फिर से एक फैसला सुनाया और अपने फैसले में कहा कि “ये परियोजनाएं राष्ट्रीय हित में हैं, जैसा कि सभी विशेषज्ञों, अधिकांश राज्य सरकारों और विशेष रूप से केंद्र सरकार का सर्वसम्मत विचार है”। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के रूप में जिन पर्यावरण विशेषज्ञों से परियोजना पर परामर्श लिया गया था, उन्होंने नियमित रूप से चिंताएं जताई हैं।

जल क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं के एक नेटवर्क, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के समन्वयक, हिमांशु ठक्कर 2009 से 2011 तक नदी इंटरलिंकिंग पर जल संसाधन मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति के सदस्य थे। उन्होंने द् थर्ड पोल को बताया कि हालांकि समिति के अधिकांश सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे, जो परियोजना से सहमत थे, लेकिन उनके जैसे स्वतंत्र विशेषज्ञ, जल प्रबंधन के अग्रणी राजेंद्र सिंह और वाटरशेड कंजर्वेशनिस्ट विजय परांजपे अक्सर असहमत रहते थे।

ठक्कर के लिए प्रमुख मुद्दों में से एक गुप्त हाइड्रोलॉजिकल आंकड़ों का उपयोग था। उन्होंने कहा कि “जब मैंने विशेषज्ञ समिति के सदस्य के रूप में डेटा मांगा, तो मुझे बताया गया कि केन एक अंतरराष्ट्रीय बेसिन, गंगा बेसिन का हिस्सा है, और [चूंकि] अंतरराष्ट्रीय बेसिन के जल विज्ञान के आंकड़े सरकार के गोपनीय आंकड़े हैं, इसलिए इसे समिति के सदस्यों के लिए भी उपलब्ध नहीं कराया जा सकता। ”

“केन बेसिन और बेतवा बेसिन से संबंधित जल विज्ञान का डेटा न तो सार्वजनिक क्षेत्र में है और न ही इसकी कभी कोई स्वतंत्र सार्वजनिक जांच हुई है। वास्तव में, पिछले चार वर्षों (2023, 2022, 2021, 2020) में केन और बेतवा जिन जिलों से होकर गुजरती हैं, उनमें वर्षा के आंकड़े बहुत अलग नहीं हैं। तो केन बेसिन को अधिशेष जल वाले बेसिन के रूप में क्यों वर्गीकृत किया गया है?

राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) के महानिदेशक भोपाल सिंह, जिन्हें नदी जोड़ो परियोजना सौंपी गई है, इस पर तर्क करते हैं। उन्होंने द् थर्ड पोल को बताया: “परियोजना केन बेसिन में अपस्ट्रीम/डाउनस्ट्रीम आवश्यकताओं, पर्यावरणीय प्रवाह इत्यादि को ध्यान में रखते हुए विस्तृत हाइड्रोलॉजिकल और सिमुलेशन स्टडीज पर आधारित थी।”

सिंह ने कहा, “हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), रुड़की द्वारा किया गया और केंद्रीय जल आयोग द्वारा इसकी जांच और समीक्षा की गई।” एनडब्ल्यूडीए वेबसाइट पर 2003-04 में किए गए एनआईएच अध्ययन के आधार पर एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट है, लेकिन पूरी स्टडी शामिल नहीं है। सिंह ने द् थर्ड पोल को बताया कि “संपूर्ण मॉडलिंग साझा नहीं की जा सकती।”

नया विज्ञान पानी से जुड़े पुराने मॉडलों को उलट सकता है

एक और जरूरी मुद्दा यह है कि विज्ञान जनरल कॉटन के समय से बहुत आगे बढ़ चुका है, और नदियों को जोड़ने का प्रभाव 19वीं शताब्दी की तुलना में कहीं अधिक जटिल हो सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसर और जलवायु अध्ययन में इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम के संयोजक सुबिमल घोष ने बताया कि वायुमंडलीय पानी को पारंपरिक रूप से जल चक्रों में शामिल नहीं किया गया है।

एक हालिया अध्ययन, जिसके घोष सह-लेखक हैंं, ने पाया है कि निकटवर्ती नदी घाटियां अलग-थलग नहीं हैं, और पानी को एक से दूसरे में ले जाने पर वायुमंडलीय पानी के कारण अतिरिक्त प्रभाव पड़ सकता है। अध्ययन इस तथ्य पर आधारित है कि भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के अंत में, जब मिट्टी संतृप्त होती है और वाष्पीकरण-उत्सर्जन (भूमि से वायुमंडल में नमी की आपूर्ति) काफी अधिक होती है, तो पुनर्नवीनीकरण वर्षा मानसून वर्षा में लगभग 25 फीसदी योगदान करती है। यदि एक बेसिन के पानी का उपयोग दूसरे बेसिन को सिंचित करने के लिए किया जाता है, तो बढ़े हुए वाष्पीकरण-उत्सर्जन और हवा के संयोजन से देश के कुछ शुष्क क्षेत्रों में देर से होने वाली मानसूनी बारिश को 12 फीसदी तक कम किया जा सकता है, और अन्य हिस्सों में वर्षा को 10 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है।

घोष ने कहा, “अब हम निश्चित रूप से जानते हैं कि स्थलीय जल चक्र में बदलाव से वायुमंडलीय प्रक्रियाएं प्रभावित हो सकती हैं।” उन्होंने तर्क दिया कि नदी जोड़ जैसी परियोजनाओं के लिए “जल-मौसम संबंधी परिणामों के कठोर मॉडल-निर्देशित मूल्यांकन को शामिल करने की तत्काल आवश्यकता है।”

जवाब में, एनडब्ल्यूडीए के सिंह ने कहा कि वह एक काल्पनिक अध्ययन पर टिप्पणी नहीं कर सकते। उन्होंने आगे कहा कि “देश में मौसम विज्ञान और जल विज्ञान चक्रों के पैमाने को ध्यान में रखते हुए, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में यह अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण मामूली प्रकृति का है… जहां तक केन-बेतवा नदी को जोड़ने का सवाल है, बाढ़ के अधिकांश जल का उपयोग केन बेसिन में किया जाएगा और कुछ पानी का उपयोग बुंदेलखंड क्षेत्र में मौजूदा टैंकों को फिर से भरने सहित अन्य क्षेत्रों की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाएगा।”

25 अगस्त, 2005: तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (बीच में) ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (बाएं) को केन-बेतवा लिंक परियोजना पर एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक समझौता ज्ञापन सौंपा। (फोटो: अजीत कुमार/ अलामी)

अधिशेष पानी का भ्रम

ठक्कर के अनुसार, एक गहरी समस्या यह हो सकती है कि जल अधिशेष के रूप में वर्गीकृत नदी घाटियों को केवल इसलिए ऐसा माना जाता है, क्योंकि वे कम विकसित हैं। उन्होंने बताया कि ऊपरी केन बेसिन के जिले बड़े पैमाने पर ज्यादा जल की खपत वाली खेती से वंचित हैं, और पानी के भंडारण के लिए कुछ बांध बनाए गए हैं। इसके विपरीत, निचला बेतवा उन खेतिहर जिलों से होकर गुजरता है, जहां पानी की अधिक खपत वाली फसलें उगाई जाती हैं, जहां उचित संख्या में बांध हैं। उन्होंने कहा कि अधिशेष विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में पानी के उपयोग के विभिन्न स्तरों द्वारा निर्मित एक भ्रम मात्र है।

ठक्कर ने कहा, “अब ऊपरी बेतवा क्षेत्र में बांध बनाने की मांग की जा रही है, जिससे मौजूदा निचले बेतवा बेसिन बांधों की कमी हो जाएगी। उस कमी की भरपाई केन बेसिन के पानी से करने का प्रस्ताव है।”

इसके जवाब में सिंह ने कहा कि केन-बेतवा लिंक न केवल पानी के अंतर-बेसिन हस्तांतरण के बारे में है (कॉटन के समय से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों तक नदी को जोड़ने का केंद्रीय आधार), बल्कि बाढ़ के पानी के संरक्षण के बारे में भी है। सिंह ने कहा, अधिकांश वर्षा मानसून के दौरान कुछ दिनों में होती है, और “गैर-मानसूनी अवधि के दौरान केन में शायद ही कोई प्रवाह होता है। कठोर चट्टान और सीमांत जलोढ़ भूभाग के कारण यह क्षेत्र भूजल के मामले में भी बहुत समृद्ध नहीं है। हमें उम्मीद है कि इस परियोजना से क्षेत्र में पानी की उपलब्धता स्थिर होगी और विशेष रूप से सूखे के वर्षों के दौरान जल प्रबंधन में सुधार होगा।”

नदी जोड़ के प्रमुख डाउनस्ट्रीम प्रभाव

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में जल कार्यक्रम के निदेशक दीपिंदर कपूर के अनुसार, पानी के कुल उपयोग के बारे में सिंह का दृष्टिकोण स्वयं सवाल खड़े करता है। कपूर ने कहा, “जितना अधिक नदी का पानी हम कृषि और सिंचाई और शहरी उपभोग के लिए उपयोग करेंगे, समुद्र में जाने के लिए उतना ही कम पानी बचेगा, खासकर प्रायद्वीपीय भारत में, जहां नदियों को हिमालय का पानी नहीं मिलता है।”

वर्ष 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, यदि देश में सभी 30 प्रस्तावित नदी जोड़ परियोजनाओं को पूरी तरह से लागू किया जाता है, तो प्रभावित बेसिनों द्वारा औसत वार्षिक बहाव 73 फीसदी कम हो जाएगा। हालांकि अध्ययन में आर्द्रभूमि और मुहाने पर पड़ने वाले प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो पानी के प्रमुख स्रोतों से वंचित होंगे, समुद्र पर भी बड़े प्रभाव होंगे।

नदी जोड़…. के उपमहाद्वीप में जलवायु और वर्षा के लिए गंभीर दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।

समुद्र में नदी जल के ताजा प्रवाह में उल्लेखनीय गिरावट से बंगाल की खाड़ी में पानी की ऊपरी परत बाधित हो जाएगी, जो कम लवणता और कम घनत्व वाले पानी से बनी है, जो समुद्र की सतह के तापमान को 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक बनाए रखने में मदद करती है। शिव नादर विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित प्रोफेसर और 2019 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा स्थापित एक नई राष्ट्रीय जल नीति मसौदा समिति के पूर्व अध्यक्ष मिहिर शाह ने बताया कि सतह का यह उच्च तापमान कम दबाव वाले क्षेत्र बनाता है और मानसून गतिविधि को तेज करता है।

“(भारतीय) उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग में कम लवणता वाले पानी की इस परत द्वारा वर्षा को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जाता है। नदी जोड़ परियोजना द्वारा प्रस्तावित बड़े पैमाने पर बांध के कारण इस परत में व्यवधान से उप-महाद्वीप में जलवायु और वर्षा के लिए गंभीर दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं, जिससे एक विशाल आबादी की आजीविका खतरे में पड़ सकती है।

नदियां अपने साथ पानी के अलावा और भी बहुत कुछ ले जाती हैं, और नदियों को जोड़ने के लिए बनाए गए नए बांधों द्वारा तलछट को भी रोका जाएगा। यह गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी बेसिन के डेल्टाओं के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, जहां 16 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।

गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा के एक नए अध्ययन में पाया गया कि नदियां वर्तमान में हर साल लगभग 1 अरब टन तलछट बहाती हैं, जो अधिक मानसूनी वर्षा के कारण 21वीं सदी में 34-60 फीसदी तक बढ़ जाएगी। डेल्टा में अधिक तलछट समुद्र के स्तर में वृद्धि को संतुलित करने और स्वाभाविक रूप से डेल्टा को बनाए रखने में मदद करेगी।

लेकिन, जैसा कि 2018 के अध्ययन में बताया गया है, यदि प्रस्तावित नदी जोड़ परियोजनाओं में शामिल सभी बांध बनाए जाते हैं, तो यह तलछट भार 87 फीसदी कम हो जाएगा।

एनडब्ल्यूडीए के सिंह ने इसका जवाब देते हुए कहा कि जलाशयों में तलछट फंसने और डेल्टा पर उनके प्रभाव को “उचित वैज्ञानिक अध्ययन के बिना हमेशा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है।”

यह बताते हुए कि ऐसे प्रभाव “नाममात्र” होंगे, उन्होंने द् थर्ड पोल को बताया कि एनडब्ल्यूडीए ने “जल विज्ञान और पानी की उपलब्धता, मांग पैटर्न, सतह और भूजल अंतःक्रिया पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्रस्तावित नदी जोड़ परियोजनाओं का व्यवस्थित अध्ययन पहले ही शुरू कर दिया है।”

भविष्य की तरफ देखें, तो नवंबर 2023 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में सत्ता में लौट आई है, और नदी जोड़ो को पार्टी के 2019 के आम चुनाव घोषणापत्र में शामिल किया गया है, ऐसा लगता है कि केन-बेतवा लिंक पर काम को योजना की प्रगति के प्रमाण के रूप में प्राथमिकता दी जाएगी।

साभार: https://www.thethirdpole.net/hi/457/126159/

More From Author

कश्मीर हिमस्खलन: जलवायु परिवर्तन से क्या संबंध है?

भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं पर सवालिया निशान लगातीं नई कोयला खदानें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

city24x7.news founded in 2021 is India’s leading Hindi News Portal with the aim of reaching millions of Indians in India and significantly worldwide Indian Diaspora who are eager to stay in touch with India based news and stories in Hindi because of the varied contents presented in an eye pleasing design format.