नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने संदेशखाली में कथित तौर पर महिलाओं के सामूहिक यौन शोषण और जमीन हड़पने के आरोपों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्देश के खिलाफ दायर पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सोमवार को उसी से सवाल पूछा कि आखिर वह आरोपी शेख शाहजहां और अन्य का बचाव क्यों कर रही है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता से मौखिक रूप से यह सवाल पूछा। पीठ ने हालांकि, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी और जयदीप गुप्ता की गुहार स्वीकार करते हुए मामले को जुलाई के लिए (अगली सुनवाई के लिए) सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता के राज्य सरकार को कुछ अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने के लिए दो सप्ताह या फिर एक सप्ताह के लिए मामले के स्थगन की गुहार पर यह निर्देश दिया। पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इससे पहले पूछा कि राज्य सरकार को इस मामले में क्यों परेशान होना चाहिए। अधिवक्ता ने दलील दी कि कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा की गईं कुछ टिप्पणियों की वजह से उसे (सरकार को) शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। शीर्ष अदालत ने मामले को अगली सुनवाई के लिए स्थगित करने के साथ ही स्पष्ट किया कि यहां (उच्चतम न्यायालय) विशेष अनुमति याचिका (राज्य सरकार की) के लंबित रहने का इस्तेमाल किसी भी कार्यवाही को लंबा खींचने या किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में निलंबित तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता शाहजहां और अन्य के खिलाफ महिलाओं के यौन शोषण और जमीन हड़पने के आरोपों की सीबीआई से जांच कराने का 10 अप्रैल को आदेश दिया था। संदेशखाली की कथित घटनाओं को लेकर सात फरवरी 2024 से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किये गए थे। घटना में टीएमसी नेता शेख शाहजहां और उनके सहयोगियों- शिबू हाजरा और सुशांत सरदार उर्फ उत्तम सरदार के खिलाफ छेड़छाड़, बलात्कार और जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगाये गये हैं। शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया कि उच्च न्यायालय इस बात पर ध्यान देने में विफल रहा कि जनहित याचिकाएं दायर करने वालों ने परोक्ष रूप से राजनीतिक लाभ के उद्देश्यों से जनहित याचिकाएं दायर की थीं। राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका के माध्यम से यह भी दलील दी कि उच्च न्यायालय ने पुलिस द्वारा दर्ज की गई 43 प्राथमिकियों को भी नजरअंदाज कर दिया। इनमें 42 मामलों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 सहित विभिन्न दंडात्मक धाराओं के तहत आरोपपत्र दायर किए गए हैं। जमीन हड़पने के सात मामलों में आठ फरवरी 2024 को आरोप पत्र दाखिल किया गया है। इसके अलावा जमीन कब्जा करने के 24 मामले राज्य की पुलिस द्वारा दर्ज किये गये हैं।
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