रायपुर। सीबीए की प्रेस वार्ता में वक्ताओं द्वारा बस्तर में तेज़ी से बढ़ रही मुठभेड़ें और आये दिन निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं के समाचारों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। पहले भी फर्जी मुठभेड़े होती थी, पर अब उनकी आवृत्ति ख़तरनाक रूप से बढ़ गई है। कई वारदातों में तो सरकार ने भी माना है कि निर्दोष व्यक्ति मारे गये है, पर वहाँ सरकार ने क्रास फायरिंग का बहाना लेकर माओवादियों को इन मौतों का ज़िम्मेदार बताया, जबकि गाँव वालों का स्पष्ट कहना है कि कोई मुठभेड़ ही नहीं हुई थी, और सुरक्षा बलों ने एक तरफा फायरिंग की थी। हाल ही में हुई बीजापुर के पीड़िया और इतवार गाँव में पुलिस ने कहा कि मुठभेड़ में 12 आदिवासी मारे गए जबकि सच तो यह है कि 12 में से 10 आदिवासी ग्रामीण इन्ही दो गाँव के रहवासी थे और अन्य 2 आदिवासी इन गाँव में मेहमान की तरह आये हुए थे । इन सभी को तेंदु पत्ता संग्रहण करते समय दौड़ा दौड़ा कर गोलियां बरसाई गईं । मृतको के आलावा इन्ही दो गाँव के 6 ग्रामीण आदिवासी घायल हैं जिन्हें भी गोली लगी है और उनका इलाज जारी है। घायलों में एक 16 साल का बच्चा तीन गोलियों का शिकार था जो उस वक्त गाँव में ही मौजूद था जब हम घटना की जाँच करने गए थे। इनके आलावा तक़रीबन 50 से अधिक ग्रामीणों को पुलिस बंधक बनाकर अपने साथ ले गई थी जिनमे से अधिकतर की रिहाई हो गई है और कुछ को जेल भेज दिया गया । इस घटना के तुरंत बाद ग्रामीणों, पत्रकारों द्वारा इस मुठभेड़ पर सवाल उठाये गये पर सरकार की तरफ से सिर्फ सुरक्षा बलों को बधाई देने के अतिरिक्त कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है। यहाँ तक कि थाना गंग्लुर के थाना प्रभारी और जिला पुलिस अधीक्षक ने मृतक और घायल परिवारों की शिकायत तक लेने से इनकार कर दिया । सीबीए का मानना है कि किसी भी निहत्थे व्यक्ति को मारना गलत है, चाहे वह कितना ही बड़ा माओवादी क्यों न हो। सुरक्षा बल केवल आत्म सुरक्षा में ही गोली।
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