बिलासपुर। प्राकृतिक रहवास औरापानी से जिस घायल गिद्ध को इलाज के लिए कानन पेंडारी जू लाया गया था, वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया है। स्वस्थ होने के बाद पांच माह के इस गिद्ध को रहवास के पास छोड़ा गया तो वह उड़ान भरकर परिवार के पास चला गया। विलुप्त प्राय इस प्रजाति को टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने एक नई जिंदगी दी है। गिद्ध को उड़ान भरते देख वन अफसरों ने भी राहत की सांस ली। औरापानी में गिद्धों का प्राकृतिक रहवास है, जहां से उनके संरक्षण के लिए टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने हर संभव प्रयास कर रहा है। बेहतर मानिटरिंग के लिए एक गिद्ध मित्र दल भी बनाया गया। दल के सदस्य पूरे समय गिद्धों की निगरानी करते हैं। उन्हें जरा भी तकलीफ महसूस होती है तो इसकी जानकारी अधिकारियों को देकर उनके मार्गदर्शन पर तकलीफों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसी सतर्कता का नतीजा है कि पांच माह का गिद्ध पूरी तरह स्वस्थ होकर घर वापसी की। सप्ताहभर पहले यह गिद्ध उड़ने में असमर्थ था। कहीं कोई चोट के निशान नहीं थे। इसी वजह से प्रबंधन की चिंता बढ़ गई और यही सोचने लगे कि आखिर कौन सी दिक्कत है, जिसके कारण उड़ान भरने में असमर्थ है। अचानकमार टाइगर रिजर्व से भारतीय गिद्ध को रेस्क्यू किया गया। इसके बाद इलाज के लिए कानन पेंडारी जू लाया गया। यहां जांच में पता चला कि वह शारीरिक रूप से कमजोर है। शायद आहार की कमी इसकी वजह हो सकती थी। जू में रखकर गिद्ध के आहार दिया गया। इसके अलावा दवाइयां भी दीं गई, ताकि वह जल्द स्वस्थ हो जाए। इलाज की यह विधि कारगर रही और वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया। गिद्ध आज स्वस्थ है तो इसमें अचानकमार टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर मनोज पांडेय व डिप्टी डायरेक्टर गणेश यूआर की अहम भूमिका है। जिन्होंने जोखिम उठाने के बजाय तत्काल रेस्क्यू कर कानन पेंडारी जू में लेकर जाने के निर्देश दिए। इन सात दिनों में उन्होंने प्रतिदिन जू के वन्य प्राणी चिकित्सकों से हाल भी जाना। अफसरों की मानिटरिंग के कारण जू प्रबंधन ने इलाज में पूरी सावधानी बरती। इसके कारण ही गिद्ध पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने प्राकृतिक रहवास में लौट सका। अचानकमार टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर गणेश यूआर का कहना है कि गिद्ध को प्राकृतिक रहवास पर छोड़ने से पहले एक एल्युमिनियम रिंग के साथ टैग किया गया है। यह गिद्ध की गतिविधियों और पुन: देखने की व्यवस्था को अपडेट करने मददगार साबित होगा। इसके साथ गिद्धों के खाने के आवासीय स्थानों को खोजने में भी सहायक भी होगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय गिद्धों की संख्या में भरी गिरावट के पश्चात इस गंभीर खतरे की श्रेणी में आने वाली इस प्रजाति के संरक्षण में रेस्क्यू की बहुत ही महत्वपूर्ण अहमियत है। अचानकमार टाइगर रिजर्व के वल्चर कंजेर्वेशन एसोसिएट अभिजीत शर्मा का कहना है कि गिद्ध 50 से 60 वर्ष तक जीवित रहते हैं। यदि वह किसी कारणवश घायल या अस्वस्थ हो गए हैं और सही समय पर रेस्क्यू और उपचार किया जाए हो उनकी जान बचाई जा सकती है। संरक्षण में इस तरह की पहल बेहतर कदम होता है। गिद्ध संरक्षण सुनिश्चित करने प्रबंधन की ओर से औरापानी के आसपास एक प्रोविजनल वल्चर सेफ जोन का भी गठन किया गया है।
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