1 करोड़ 47 लाख रुपए से सजा रतलाम में महालक्ष्मी मंदिर, इस दिन प्रसाद में बट जाते हैं जेवर और पैसे

रतलाम

 दीपोत्सव के लिए भक्तों द्वारा दी गई नगदी, जेवर आदि से मध्य प्रदेश के रतलाम में माणकचौक स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर में श्रृंगार पूरा हो गया। धनतेरस पर मंगलवार सुबह करीब 4:30 बजे ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के पट खोले दिए गए।

भक्त भाई दूज तक लगातार दर्शन कर सकेंगे। इससे पहले सोमवार देर रात तक श्रृंगार का कार्य चलता रहा। खास बात यह है कि मंदिर से चार साल बाद समृद्धि पोटली (कुबेर पोटली) का वितरण भी सुबह छह बजे से शुरू हो गया।

भक्तों के दिए आभूषणों से होता है मां का श्रृंगार

महालक्ष्मी मंदिर में हर साल श्रद्धालु अपनी ओर से श्रृंगार के लिए सामग्री देते हैं, जो भाई दूज के बाद वापस कर दी जाती है। नोटों, जेवरों, हीरे-मोती, रत्न आदि से होने वाले विशेष श्रृंगार को देखने देश भर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इसके चलते मंदिर में सुरक्षा के भी विशेष इंतजाम किए जाते हैं।मंदिर परिसर में खास तौर पर गर्भगृह को विशेष रूप से सजाया जाता है।

दीपावली पर्व के समापन पर भाईदूज के दिन प्रसादी के रुपए में भक्तों को उनके नोट और आभूषण लौटा दिए जाते हैं। अभी तक मंदिर में 1 करोड़ 47 लाख रुपए की गिनती हो चुकी है जबकि आभूषणों का अनुमान लगाया जा रहा है कि वह 3 करोड़ से ज्यादा के हैं।

रतलाम के माणक चौक स्थित इस मंदिर में नोटों और आभूषणों से सजावट की शुरुआत इस बार शरद पूर्णिमा पर 14 अक्टूबर से हुई थी। मंदिर में भक्त निशुल्क सेवा भी देते हैं। कोई नोटों की लड़िया बनाता है तो कोई नोट लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की इंट्री करता है। कुछ भक्त दिन से लेकर रात तक सजावट में लगे रहते हैं।

1 से लेकर 500 रुपए तक के नोटों से सजावट 1 रुपए से लेकर 20, 50, 100 और 500 रुपए के नए नोटों से मंदिर को सजाया जाता है। सजावट के लिए रतलाम के अलावा मंदसौर, नीमच, इंदौर, उज्जैन, नागदा, खंडवा, देवास समेत राजस्थान के कोटा से आए भक्तों ने अपनी श्रद्धानुसार राशि जमा कराई है।

महालक्ष्मी के कई भक्त तो ऐसे भी हैं, जो एक साथ 5 लाख रुपए तक मंदिर में रखकर जाते हैं। श्रद्धालुओं द्वारा दिए जाने वाले नोटों से मंदिर के लिए वंदनवार बनाया जाता है। महालक्ष्मी का आकर्षक श्रृंगार कर गर्भगृह को खजाने के रूप में सजाया जाता है।

मंदिर परिसर कुबेर के खजाने के रूप में दिखाई देता है। भक्त अपने घरों की तिजोरी तक मंदिर में सजावट के लिए रख जाते हैं।

कैसे बनती हैं समृद्धि की पोटलियां

मंदिर में समृद्धि पोटलियों को संतों व विद्ववत ब्राह्मणजन द्वारा गणेश अथर्वशीर्ष, श्री सुक्त का पाठ कर मंत्रोच्चार कर अभिमंत्रित किया गया। स्वामी देवस्वरूप महाराज (अखंड ज्ञान आश्रम) स्वामी सुजानजी महाराज, नीलभारतीजी महाराज, महर्षि संजयशिवशंकर दवे, स्वामी राजेन्द्रजी पुरोहित, पं. चेतन शर्मा, पं. जितेंद्र नागर , पं. प्रकाश शर्मा, पं. जीवन पाठक, पं. शैलेन्द्र ओझा, पं.संजय मिश्रा, पं.अशोक, पं.ओमप्रकाश शर्मा, पं.वशिष्ठ, पं.नारायण व्यास सहित गुरुकुल के बटुक विद्यार्थी मौजूद रहे।

मंदिर समिति, व्यापारी समिति व श्रीमाली ब्राह्मणसमाजजन ने शृंगार सहित अन्य व्यवस्थाएं संभाली। श्रीमाली ब्राह्मणसमाज के सचिव कुलदीप त्रिवेदी ने बताया कि मंगलवार को ब्रह्ममुहूर्त में पट खुलने के बाद पौने छह बजे आरती होगी। आरती में कलेक्टर राजेश बाथम शामिल होंगे। इसके बाद छह बजे से समृद्धि पोटली का वितरण किया जाएगा।

समृद्धि पोटली में यह सामग्री

मान्यता है कि मंदिर से मिलने वाली समृद्धि पोटली (कुबेर पोटली) को तिजोरी में रखने से वर्षभर व्यापार, घर, परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। श्रृंगार सामग्री भी इसी भाव से श्रद्धालु देते हैं। पोटली में एक सीपी, कोडी, एक रुपये का सिक्का, कमल गट्टा, छोटा शंख, अक्षत होते हैं जो लच्छे से बंधे लिफाफे में होते हैं।

नहीं आएंगे सीएम

धनतेरस के दिन मुख्यमंत्री मोहन यादव के रतलाम आने का कार्यक्रम तय हुआ था। इसके चलते सोमवार को दिन भर कलेेक्टर राजेश बाथम, एसपी अमित कुमार तैयारियों में लगे रहे। दोपहर में सीएम का दौरा निरस्त होने की जानकारी मिलने के बाद मंदिर में सजावट का क्रम भी बदला गया।

रजिस्टर में एंट्री कर टोकन दिया जाता है मंदिर में सजावट के लिए दिए जाने वाले रुपयों में आज तक हेरफेर नहीं हुआ है। नगदी और आभूषण देने वाले भक्तों का नाम, पता और मोबाइल नंबर एक रजिस्टर में लिखा जाता है। देने वाले का पासपोर्ट फोटो नाम के आगे चिपकाया जाता है। राशि लिखकर एक टोकन दिया जाता है। इसी टोकन को देखकर रुपए या आभूषण लौटाए जाते हैं।

पांच दिन तक संपदा माता लक्ष्मी के हवाले महालक्ष्मी मंदिर में गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती माता की प्रतिमाएं हैं। लक्ष्मी की मूर्ति के हाथ में धन की थैली रखी है, जो वैभव का प्रतीक है। मान्यता है कि करीब 200 वर्ष पूर्व राजा रतन सिंह कुल देवी के रूप में माता का पूजन करते थे।

राजा वैभव, निरोगी काया और प्रजा की खुशहाली के लिए पांच दिन तक अपनी संपदा मंदिर में रखकर आराधना कराते थे। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।

मंदिर में महालक्ष्मी के 8 रूप विराजमान रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में माता के 8 रूप अधी लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, लक्ष्मीनारायण, धन लक्ष्मी, विजयालक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी और ऐश्वर्य लक्ष्मी मां विराजमान हैं। गर्भ गृह में महालक्ष्मी के साथ भगवान गणेश और मां सरस्वती की पूजा होती है।

दीपावली के एक सप्ताह पहले से सजावट महालक्ष्मी मंदिर में हर साल दीपावली के एक सप्ताह पहले से सजावट की तैयारी शुरू हो जाती है। इस बार शरद पूर्णिमा से ही यहां रुपए और गहने पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था।

मान्यता है कि जिस व्यक्ति का धन महालक्ष्मी के श्रृंगार में इस्तेमाल होता है, उसके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

4 गार्ड और सीसीटीवी से निगरानी महालक्ष्मी के दरबार में सजने वाले कुबेर के खजाने की सुरक्षा के लिए 4 गार्ड तैनात रहते हैं। सीसीटीवी से भी निगरानी की जाती है। मंदिर के पीछे ही माणक चौक पुलिस थाना है। जहां 24 घंटे फोर्स तैनात रहती है।

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