छत्तीसगढ़-मनेंद्रगढ़ DFO मनीष कश्यप को महुआ बचाओ अभियान पर मिला अवॉर्ड

मनेंद्रगढ़।

मनेंद्रगढ़ डीएफओ मनीष कश्यप को महुआ बचाओ अभियान के लिए नई दिल्ली में अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया। नेक्स ऑफ गुड फाउंडेशन के संस्थापक अनिल स्वरूप ( रिटायर्ड IAS) और प्रकाश सिंह ( रिटायर्ड IPS, पद्मश्री विजेता) के द्वारा पुरस्कार वितरण किया गया। देश के 120 विभिन्न एनजीओ और अधिकारियों ने अपने अभिनव पहल और प्रभावपूर्ण कार्यों को लेकर आवेदन किया, जिसमें से 22 को चयनित किया गया।

चयन करने के लिए यूपीएससी के पूर्व चेयरमैन दीपक गुप्ता और अधिकारियों की ज्यूरी गठित की गई थी। छत्तीसगढ़ से इस वर्ष आईएफएस मनीष कश्यप और एनजीओ लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन को इसके लिए चुना गया। देश के चार IAS और दो IFS को अवार्ड से सम्मानित किया गया। शेष 16 विभिन्न संस्था और एनजीओ हैं। अब तक 47 गाँव में लगभग 4,500 ग्रामीणों के खेतों और ख़ाली पड़े ज़मीन में 30,000 महुआ के पौधे लगाये जा चुके है। ग्रामीणों में पौधे के साथ ट्रीगार्ड मिलने से इस योजना में जबरदस्त उत्साह है। छत्तीसगढ़ में संभवतः पहली बार महुआ पे इतना विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 10 वर्ष में ही महुआ परिपक्व हो जाता है। एक महुआ के पेड़ से आदिवासी परिवार औसतन 2 क्विंटल फ़ुल और 50 किलो बीज प्राप्त कर लेता है। जिसकी कीमत लगभग 10 हजार है। नये पेड़ से पुनरुत्पादन भी बढ़ेगा और महुआ का उत्पादन भी। इसके अलावा पेड़ बढ़ने से सॉइल इरोशन भी कम होगा और पर्यावरण को भी फायदा होगा। महुआ पेड़ो की घटती संख्या चिंता का विषय है। सबसे बड़ी समस्या इनकी पुनरुत्पादन की है। जंगल में तो महुआ पर्याप्त है पर आदिवासियो के द्वारा अधिक्तर महुआ का संग्रहण गांव के खाली पड़ी जमीन और खेत के मेड़ो पर लगे महुआ से होती है। अगर आप बस्तर और सरगुजा के किसी गांव में जाये तो उनके खेतों के पार और खाली जमीन में सिर्फ बड़े महुआ के पेड़ ही बचे दिखते हैं। छोटे और मध्यम आयु के पेड़ लगभग नगण्य होती हैं। ग्रामीणों के द्वारा महुआ संग्रहण से पहले जमीन साफ करने हेतु आग लगाई जाती है। उसी के कारण एक भी महुआ के पौधे जिंदा नहीं रहते। ग्रामीण महुआ के सभी बीज को भी संग्रहण कर लेते है। ये भी एक कारण है महुआ के ख़त्म होने का। आखिर बड़े महुआ पेड़ कब तक जीवित रह पायेंगे ? छत्तीसगढ़ के महुआ पेड़ बूढ़े हो रहे है। महुआ पेड़ की औसत आयु 60 वर्ष है। अगर जंगल के बाहर इनके पुनरुत्पादन पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये जल्द ही खत्म हो जाएंगे। बस्तर और सरगुजा के आदिवासी अंचल के लिए महुआ का पेड़ विशेष महत्व रखता है। महुआ का पेड़ प्रकृति का दिया हुआ बहुमूल्य पेड़ है। भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है। यह पेड़ आदिवासियों के लिए आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से महत्व रखता है। महुआ का पेड़ भारत के उत्तर, दक्षिण और मध्य के 13 राज्यो में पाया जाता है। महुआ का फूल, फल, बीज, छाल और पत्ती सभी का उपयोग है। आदिवासियों की आय का यह एक प्रमुख श्रोत है। पर पिछले कुछ समय से महुआ के उत्पादन में गिरावट आयी है और नये महुआ के पेड़ तो उग ही नहीं रहे। इसी को देखते हुए “महुआ बचाओ अभियान” की शुरुवात की गई।

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