नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल का दो पूर्व CM के बेटों से मुकाबला

नई दिल्ली।

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग आज तारीखों का एलान कर सकता है। सत्तासीन आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा तीनों ने ही अपने कुछ उम्मीदवारों के नाम का एलान कर दिया है। इनमें जिस सीट की आज हम बात करने जा रहे हैं, वह इस साल का सबसे बड़ा और रोचक मुकाबला हो सकता है।

दरअसल, यह सीट है नई दिल्ली की, जहां से कभी शीला दीक्षित जीतकर मुख्यमंत्री बनी थीं। बाद में इसी नई दिल्ली सीट पर शीला दीक्षित को हराकर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने जीत दर्ज की और वे अब तक इसी सीट से दिल्ली के विधायक बने हुए हैं। इस बार भी आम आदमी पार्टी की तरफ से इस सीट पर अरविंद केजरीवाल ही उम्मीदवार हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने इस सीट पर संदीप दीक्षित को उतारा है। संदीप दीक्षित दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं और केजरीवाल से 11 साल पहले अपनी मां की हार का बदला लेने के लिए मैदान में हैं। इसके अलावा तीसरा नाम भाजपा के प्रत्याशी प्रवेश वर्मा का है। वे खुद भी दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। इन तीन नेताओं के मुकाबले ने नई दिल्ली सीट पर विधानसभा चुनावों को सबसे दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर नई दिल्ली विधानसभा सीट का इतिहास क्या है? इस बार इस सीट से खड़े हो रहे उम्मीदवारों का सियासी इतिहास क्या है? उनकी ताकत कितनी है? इसके अलावा उनकी संपत्ति कितनी है? आइये जानते हैं…

नई दिल्ली विधानसभा सीट का क्या इतिहास?
दिल्ली विधानसभा की 70 सीट में से सबसे अहम सीटों में से एक है नई दिल्ली की विधानसभा सीट। दरअसल, इसका इतिहास और यहां से खड़े होने वाले चेहरे इस सीट को हमेशा से खास बनाते रहे हैं। 1993 में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने से पहले इसे गोले बाजार विधानसभा सीट कहा जाता था। हालांकि, नई दिल्ली की अलग सीट बनने के बाद से ही यहां बड़े-बड़े नेता लगातार अपनी किस्मत आजमाते रहे हैं।

1. पहली बार में ही आई भाजपा के हाथ
1993 से लेकर अब तक नई दिल्ली विधानसभा सीट पर सात बार चुनाव हो चुके हैं। सबसे पहली बार जब इस सीट पर चुनाव हुए थे, तब भारतीय जनता पार्टी के कीर्ति आजाद ने यहीं से कांग्रेस के प्रत्याशी बृज मोहन भामा को शिकस्त दी थी। हालांकि, यह मुकाबला काफी करीबी रहा था और हार-जीत का अंतर 3500 वोटों का था। चौंकाने वाली बात यह है कि इस चुनाव के बाद से भाजपा अब तक नई दिल्ली की सीट को दोबारा नहीं जीत पाई। अगले छह चुनाव में तीन बार कांग्रेस तो तीन बार आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया।

2. फिर कांग्रेस ने मजबूत रखा अपना दावा
इस सीट पर 1998 में हुए दूसरे चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी को जीत मिली थी। शीला दीक्षित तब कांग्रेस में एक कद्दावर नेता की पहचान बना रही थीं। इस जीत ने दिल्ली में उनके दावे को मजबूत किया और पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। शीला दीक्षित ने इसके बाद यहां से दो और बार- 2003 और 2008 में जीत दर्ज की और मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहीं।

3. अरविंद केजरीवाल को नहीं हरा पा रहे कांग्रेस-भाजपा
2013 में दिल्ली विधानसभा के लिए फिर चुनाव कराए गए। इस बार यहां एक नए दल आम आदमी पार्टी ने किस्मत आजमाई और इस सीट से पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को चुनौती देने की ठानी। वे इस चुनौती में सफल भी रहे और उन्होंने शीला दीक्षित और कांग्रेस के 15 साल के शासन को खत्म कर सरकार बनाने में सफलता हासिल की। केजरीवाल की जीत कितनी बड़ी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें एक मुख्यमंत्री के खिलाफ 26 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई थी। केजरीवाल को इस सीट पर 44,269 वोट मिले थे, जबकि शीला दीक्षित को 18,405 वोट हासिल हुए थे। भाजपा के विजेंद्र गुप्ता इस सीट पर 17,952 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे। 2013 में त्रिशंकु विधानसभा बनने के बाद कांग्रेस ने आप को बाहर से समर्थन देकर सरकार बनाई। तब नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीतने वाले अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सीएम बने। हालांकि, 2015 में ही कांग्रेस ने यह समर्थन वापस ले लिया और दिल्ली में फिर चुनाव हुए। इस बार फिर केजरीवाल इसी सीट से चुनाव लड़े और 64 फीसदी वोट हासिल कर बंपर जीत हासिल करने में सफल रहे। केजरीवाल को 57 हजार से ज्यादा वोट मिले और उन्होंने भाजपा की नूपुर शर्मा (25,630) वोट और कांग्रेस की किरण वालिया (4,781 वोट) को आसानी से हरा दिया। इस तरह केजरीवाल लगातार दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल फिर नई दिल्ली सीट से ही उतरे। सात साल की एंटी-इन्कंबेंसी के कारण केजरीवाल (46,758 वोट) के वोटों की संख्या में गिरावट जरूर आई। लेकिन उनकी जीत का मार्जिन 20 हजार वोटों से ऊपर ही रहा। उन्हें इस चुनाव में 61 फीसदी वोट मिले। वहीं भाजपा के सुनील कुमार यादव (25,061) और कांग्रेस के रोमेश सभरवाल (3,220 वोट) यहां से चुनाव हार गए।

इस बार मैदान में उतरे लोगों की सियासी ताकत कितनी?
1. अरविंद केजरीवाल
इस बार नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल फिर मैदान में हैं। बीती तीन जीत ने उनकी सियासी ताकत को लेकर काफी खुलासे पहले ही कर दिए हैं। हालांकि, उनकी निजी जिंदगी और संपत्ति के बारे में भी बात करना जरूरी है। 2020 में चुनाव से पहले दिए गए उनके हलफनामें उनकी (अरविंद और उनकी पत्नी की) कुल संपत्ति 3 करोड़ 44 लाख 42 हजार 870 रुपये बताई गई थी। उनके पास कुल कैश 22,000 रुपये, बैंक में जमा 33 लाख 29 हजार रुपये, बॉन्ड-स्टॉक्स के तौर पर 15 लाख 31 हजार रुपये, 6 लाख 20 हजार के करीब मोटर वाहनों में और 12 लाख 40 हजार रुपये की ज्वैलरी शामिल थी। यानी केजरीवाल और उनकी पत्नी के पास 2020 के चुनाव से पहले 67 लाख रुपये की संपत्ति चल संपत्ति थी। इतना ही नहीं केजरीवाल के पास 1 करोड़ 77 लाख रुपये की गाजियाबाद में मकान की जमीन भी है। गुरुग्राम में भी उनका एक करोड़ रुपये का एक फ्लैट है। इस लिहाज से उनके पास कुल 2 करोड़ 77 लाख रुपये की अचल संपत्ति भी है। उन पर 2020 तक कुल 13 केस दर्ज थे, जिनमें से कई केस दिल्ली से लेकर असम और उत्तर प्रदेश से लेकर गोवा तक में दर्ज हैं।

2. संदीप दीक्षित
नई दिल्ली सीट से कांग्रेस पार्टी ने पूर्व सांसद एवं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है। पार्टी को भरोसा है कि संदीप यहां से अरविंद केजरीवाल को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। उनकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे 2004 और 2009 में पार्टी के टिकट पर जीतकर लोकसभा सांसद रहे हैं। हालांकि, 2014 में मोदी लहर के दौरान उन्हें अपनी यह सीट गंवानी पड़ी। बाद में पार्टी ने उन्हें संगठन में ही पद सौंपे। हालांकि, शीला दीक्षित के दिल्ली सीएम पद से हटने के बाद कांग्रेस में संदीप दीक्षित धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए।

अब विधानसभा चुनाव लड़ने की वजह बताते हैं दीक्षित?
संदीप बताते हैं, देखिये अब 'आप' और 'भाजपा' को लोग अच्छी तरह जान चुके हैं। लोगों को यह बात मालूम हो गई है कि मौजूदा सरकार कुछ नहीं कर रही। शीला दीक्षित के समय में बनी योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। दिल्ली में कहां पर नए स्कूल और कालेज बने हैं। संदीप ने बताया, इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी अपना वो वोट बैंक, जिस पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा कर लिया था, वापस हासिल करने में सफल होगी।

कितनी है संपत्ति, आपराधिक केस कितने?
संदीप दीक्षित ने आखिरी बार पूर्वी दिल्ली से 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा था। तब उन्होंने अपने हलफनामे में कुल संपत्ति 7.3 करोड़ रुपये बताई थी, जो कि 2009 के 1.8 करोड़ रुपये की संपत्ति से करीब पांच गुना ज्यादा थी। उन्होंने अपनी और पत्नी की चल संपत्ति 1.6 करोड़ रुपये बताई थी। इसमें उनके पास कैश में 39 हजार रुपये और बैंक अकाउंट में करीब 12 लाख रुपये की राशि बताई गई थी। बॉन्ड्स और स्टॉक्स में उनके पास 11 लाख के करीब राशि थी। उनके पास पोस्टल सेविंग्स, एनएसएस में 13.20 लाख और एलआईसी समेत अन्य बीमा पॉलिसी में 7.75 लाख रुपये थे। इसके अलावा उनके पास 11.76 लाख रुपये की छह गाड़ियां बताई गई थीं, जिनमें निसान माइक्रा से लेकर महिंद्रा बोलेरो कार तक शामिल थीं। इसके अलावा उनके पास 31.2 लाख की ज्वैलरी भी थी। दूसरी तरफ उनकी अचल संपत्ति करीब 6 करोड़ रुपये के करीब बताई गई थी, जिसमें 4.54 करोड़ रुपये की कृषि भूमि। 1.21 करोड़ रुपये की रिहायशी इमारत थी। इतना ही नहीं उनके ऊपर 88.72 लाख रुपये से ज्यादा का कर्ज भी था।

3. प्रवेश वर्मा
भाजपा ने अपनी पहली सूची में ही प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाने का एलान कर दिया। उनके नाम की घोषणा भाजपा के लिए कितना बड़ा कदम थी, यह इसी बात से पता चलता है कि यहां से उनके लड़ने की चर्चा पिछले महीने से ही चल रही थी।  इस सीट से पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता, ओबीसी मोर्चा अध्यक्ष सुनील यादव और आम आदमी पार्टी से भाजपा में शामिल हुए विनोद बिन्नी दावेदारी ठोक रहे थे। हालांकि, सभी को पीछे करते हुए प्रवेश वर्मा ने इस सीट पर अपनी दावेदारी सुनिश्चित की। दरअसल, इस हाई प्रोफाइल सीट पर अरविंद केजरीवाल और संदीप दीक्षित को हराने वाला चेहरा दिल्ली में मुख्यमंत्री पद का अगला दावेदार भी हो सकता है। पिछले छह बार से लगातार इसी सीट पर जीतने वाला प्रत्याशी राजधानी की बागडोर संभाल रहा है। ऐसे में इस बार भी भाजपा के लिए इस सीट पर बड़ा चेहरा उतारना जरूरी था। प्रवेश वर्मा भी यहां के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे हैं। उनके पिता साहेब सिंह वर्मा फरवरी 1996 से अक्तूबर 1998 के बीच दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री रहे। प्रवेश वर्मा ने दिल्ली में पहली बार 2013 में विधानसभा चुनाव ही लड़ा था। तब वे महरौली सीट से खड़े हुए और उन्होंने योगानंद शास्त्री को हराया था, जो कि दिल्ली विधानसभा में स्पीकर भी रह चुके थे। 2014 में उन्होंने पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके अलावा 2019 में वे लगातार दूसरी बार सांसद बने। उन्होंने पश्चिमी दिल्ली से ही आम आदमी पार्टी के महाबल मिश्रा को 5.78 लाख वोट से हराया, जो कि सबसे बड़ी जीत में शामिल रही। यह दिल्ली में वोटों के लिहाज से सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड है।

संपत्ति कितनी, आपराधिक केस कितने?
2019 में प्रवेश वर्मा ने अपनी संपत्ति 15 करोड़ 51 लाख 95 हजार रुपये घोषित की थी। यह 2014 के लोकसभा चुनाव में घोषित 10 करोड़ 72 लाख 35 हजार की संपत्ति से डेढ़ गुना ज्यादा थी। उनके और उनकी पत्नी के पास तब 2019 में 3.77 लाख रुपये से ज्यादा रकम कैश में थी। इसके अलावा बैंक में 80.74 लाख रुपये, बॉन्ड्स-स्टॉक्स में 50 हजार रुपये, 61 लाख से ज्यादा की एलआईसी व अन्य बीमा पॉलिसी थीं। इसके अलावा प्रवेश वर्मा और उनकी पत्नी के पास 30 लाख कीमत से ज्यादा की दो गाड़ियां थीं, जिनमें एक फॉर्च्यूनर और एक बलेनो कार शामिल है। उनके पास 65 लाख 27 हजार की ज्वैलरी और 53.21 लाख की अन्य चल संपत्तियां थीं। वहीं, अचल संपत्ति की बात करें तो प्रवेश के पास 4.55 करोड़ की कृषि भूमि। 4.80 करोड़ की गैर-कृषि उपयोग वाली भूमि, 2 करोड़ से अधिक की एक कमर्शियल बिल्डिंग और 95 लाख से ज्यादा का फ्लैट भी था। इस लिहाज से उनकी (प्रवेश और उनकी पत्नी की) कुल संपत्ति 15 करोड़ रुपये से ज्यादा रिकॉर्ड हुई।

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