चीन ने रूस के बड़े-बड़े तेल टैंकरों को ले जा रहे आठ जहाजों के बेड़े को अपने बंदरगाह पर आने से रोक दिया, पुतिन को दिया करारा झटका

बीजिंग
रूस और चीन की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। दुनिया के इन दोनों महाशक्तिशाली देशों के संबंध 1950 के दशक से ही मजबूत रहे हैं। करीब तीन साल पहले जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला, तब भी चीन ने उसकी आलोचना नहीं की। खबर यहां तक आती रही कि यूक्रेन जंग में चीन रूस को बड़े पैमाने पर हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। खुद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद मॉस्को का दौरा किया लेकिन अब एक ऐसी खबर आई है, जिसने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को करारा झटका दिया है।

चीन के सबसे बड़े बंदरगाह के अधिकारियों ने अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण रूस के बड़े-बड़े तेल टैंकरों को ले जा रहे आठ जहाजों के बेड़े को अपने बंदरगाह पर आने से रोक दिया है। रॉयटर्स ने तीन व्यापारियों के हवाले से इस चीनी प्रतिबंध की पुष्टि की है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पूर्वी चीन के शांदोंग पोर्ट ग्रुप ने रूसी तेल टैंकरों के बेड़े पर ये प्रतिबंध लगाया है। इस क्षेत्र में स्थित कई ऑयल रिफाइनरीज विदेशी तेल के प्रमुख आयातक रहे हैं। चीन दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है और फरवरी 2022 के बाद से वह रूसी कच्चे तेलों का सबसे बड़ा आयातक रहा है क्योंकि पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं।

बावजूद इसके चीनी बंदरगाह ने रूसी जहाजों को वहां अनलोडिंग या डॉकिंग करने से रोक दिया है। यह प्रतिबंध सिर्फ शांदोंग बंदरगाह पर नहीं लगाया गया है बल्कि नजदीकी पोर्ट रिझाओ, यंताई और किंगदाओ पर भी है, जिसका संचालन शांदोंग पोर्ट ग्रुप करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन आठ ऑयल टैंकरों पर रोक लगाया गया है, उनमें से हरेक की क्षमता 20 लाख बैरल की है। यानी कुल 160 लाख बैरल क्रूड ऑयल के शिपमेंट को चीन ने बीच समंदर में छोड़ दिया है।

बता दें कि अमेरिका ने प्रतिबंधों को तोड़ने वाले बेड़े को शैडो बेड़ा का नाम दिया है। पिछले महीने ही बाइडेन प्रसासन ने ईरानी शिपमेंट से जुड़ी 35 कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। ईरान से कच्चे तेल का 90 फीसदी निर्यात चीन को किया जाता है। इसके बदले ईरान नकदी ना लेकर माल खरीदता है। जब चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने रूसी बेड़े पर प्रतिबंध लगाने की जानकारी होने से इनकार कर दिया। माना जा रहा है कि चीन की हालिया कार्रवाई अमेरिका में हो रहे सत्ता परिवर्तन के मद्देनजर हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप इसी महीने 20 तारीख को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं। वह पहले ही चीन पर भारी भरकम टैक्स लगाने की बात कह चुके हैं।

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